स्क्रीन टाइम का बढ़ना खतरनाक, सोशल मीडिया फूहड़बाजी का अड्डा

  • कक्षा नौ से 12 के विद्यार्थियों ने लिया भाषण प्रतियोगिता में हिस्सा
  • दर्जनों प्रताभियों के बीच रितु और काजल ने मारी बाजी

जमशेदपुर। स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट और नेचर फाउंडेशन के तत्वावधान में चल रहे चतुर्थ बाल मेला के छठे दिन डिजिटल युग में बचपन और सोशल मीडिया और पहचान का संकट विषयक भाषण प्रतियोगिता हुई। दरअसल, यह भाषण प्रतियोगिता बच्चों के मंथन का केंद्र बन गई और बहुत सारी बातें सामने आईं।  इस प्रतियोगिता रुपी मंथन में एक प्रतिभागी ने कहा कि अकेलापन, तनाव, चिड़चिड़ापन, अवसाद इन्हीं बीमारियों से जूझ रहे हैं आज के बच्चे। अब इन्हें क्रिकेट का बल्ला नहीं, मोबाइल पर अंगुलियां चलाकर कई तरह के खेल खेलते हैं। जो असली खेल है, बच्चे वही नहीं खेल रहे हैं। ये वर्जुअल दुनिया के गुलाम होकर रह गये हैं। असली खेल खेलने से क्या हासिल होता है, इन्हें नहीं पता। बचपन में बच्चे क्यों परेशान हैं, यह चिंता का विषय है।

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एक अन्य प्रतिभागी ने कहा कि डिजिटल युग ने हमारा बचपन बदल कर रख दिया है। पहले बच्चे जल्दी उठते थे, खेलते थे, मित्रों से मिलते थे, लोगों से बात करते थे। अब वाट्सएप्प पर चैटिंग होती है। फोन पर बातें होती हैं। लोगों का एक-दूसरे से मिलना-जुलना बंद हो गया। वीडियो कॉल पर शिक्षा मिल रही है, नंबर भी आ रहा है परीक्षा में पर वो ज्ञान नहीं मिल पाता, जो कक्षा में मिलता था। साइबर बुलिंग से बचना होगा। ये कुल मिलाकर बच्चों को परेशान ही करता है। एक प्रतिभागी ने कहा कि आज के बच्चों का जीवन पहले ही दिन से फेडअप हो जाता है। बच्चे प्राकृतिक जीवन नहीं जी पा रहे हैं।  शारीरिक तौर पर कमजोर हो रहे हैं। आंखें खराब हो रही हैं। चार से छह घंटे तक बच्चे स्क्रीन में टाइम दे रहे हैं। दरअसल, अब दो दुनिया हो गई हैं। वास्तविक और डिजिटल। हमें वास्तविक दुनिया में जाना है, डिजिटल की अच्छाईयों के साथ।

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प्रतिभागियों का कहना था कि डिजिटल दुनिया के पहले किताबों की दुनिया ती जिसमें बेपनाह मोहब्बत थी, खुशबू थी, कच्ची-पक्की और खुरदरी मिट्टी की दुनिया थी। अब तकनीकी का जमाना है। लेकिन, यह तकनीकी का जमाना हमें अंधेरे में ले जा रहा है। हमें माटी की महक चाहिए, खुशबू चाहिए। कहा गया कि डिजिटल दुनिया ने सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों फर्क पैदा किये हैं। चयन हमारा होना चाहिए कि हम किस परिवर्तन के साथ हैं। शोध बताते हैं कि डिजिटल दुनिया में शारीरिक मेहनत कम हो गई है, वर्जुअलटी बढ़ती जा रही है। यह ठीक नहीं। मिट्टियों में खेलना, शोर मचाना, छुप्पम-छुपाई खेलना भी एक दौर था। अब स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है। मिट्टी से हमें खुशबू के स्थान पर अब दुर्गंध आने लगी है। मोबाइल के चक्कर में बच्चे अपने माता-पिता से लड़ जाते हैं। दृष्टि बदलेगी तो सृष्टि भी बदलेगी। मोबाइल से दूर रहेंगे तो जीवन सुखी, शांत और सुहेला हो जाएगा।  प्रतिभागियों ने कहा कि ये डिजिटल युग का ही कमाल है कि एक क्लिक में आप दुनिया भर की सारी सूचनाएं प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन, यह डिजिटल युग का अभिशाप है कि एक क्लिक में ही आपके बैंक खाते का पूरा धन साफ भी हो जाता है। चुनना आपको है कि सही क्या है, कैसे है।

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प्रतिभागियों ने अपने भाषण में सोशल मीडिया के इस्तेमाल को खतरनाक माना। इनका कहना था कि अब नौजवानों पर इसका कुप्रभाव पड़ रहा है। सोशल मीडिया चलाने वाले वर्जुअल दुनिया में कुछ इस कदर रम गये कि उन्हें अपने आस-पास की कोई खोज-खबर नहीं होती। सोशल मीडिया हमारी पर्सनाल्टी को ज्यादातर डैश ही कर रहा है। प्रेम प्यार का फूहड़ प्रयास सोशल मीडिया पर होता है। यह कितना घटिया है। प्रेम-प्यार दिखाने के लिए थोड़े ही होते हैं। बहुतायत में लोग अपनी काल्पनिक इमेज सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं। बेशक ये बेहद आकर्षक होते हैं और इनके फालोअर्स की संख्या भी बढ़ती चली जाती है लेकिन वास्तविक जानकारी मिलने के बाद चीजें खराब होती चली जाती हैं। सोशल मीडिया पर खुदकुशी जैसी हरकतें नकारात्मक संदेश देती हैं। प्रतिभागियों ने कहा कि बड़ा सवाल यह है कि सोशल मीडिया हम चला रहे हैं या फिर हमें सोशल मीडिया चला रहा है? फर्जी नाम, फोटो से आखिर लोगों को मिलेगा क्या? सोशल मीडिया का इस्तेमाल बेहद सोच-समझ कर करने की जरूरत है। जरूरी दस्तावेज हरगिज सोशल मीडिया पर शेयर न करें। इस मंथन के बाद कक्षा 9 और 10 के जिन प्रतिभागियों ने पुरस्कार जीते, उनमें प्रथम स्थान पर रितु कुमारी, द्वितीय स्थान पर कुमारी श्रद्धा गोसाईं और तृतीय स्थान पर अभिजीत पांडेय रहे। इसी प्रकार कक्षा 11 और 12 के जिन प्रतिभागियों को पुरस्कार मिला, उनमें प्रथम स्थान पर काजल कुमारी, द्वितीय स्थान पर रौशनी कुमारी और तृतीय स्थान पर लक्ष्मी महतो रहीं। विजेता प्रतिभागियों को रिटायर्ड आईपीएस संजय रंजन और वरीय जदयू नेता धर्मेंद्र तिवारी ने पुरस्कृत किया।

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