- बिछ गई है बिसात, सत्ता की चाभी अपने हाथ चाहता है ईसाई मिशनरी
रंजन कुमार सिंह
क्या चर्च बिहार में सत्ता की चाभी अपने हाथ मे चाहता है? बिहार में राजद सुप्रीमो के मौजूदा पारिवारिक माहौल और तेजस्वी के लगातार 10 जनपथ की परिक्रमा से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि ईसाई मिशनरी तेजस्वी की ईसाई पत्नी को बिहार की बागडोर सौंपने की दिशा में संजीदगी से सक्रिय है। बिहार की कुर्सी पे चर्च आगामी दस सालों के भीतर कब्जा चाहता है और तेजस्वी की पत्नी रैचेल आयरिश गोडिन्हो को बिहार का सीएम बनाना चाहता है। इस दिशा ने हालिया मामला राजद के टिकट बंटवारे के समय दिखा। लालू द्वारा टिकट बंटवारे की घोषणा होते ही तेजस्वी दिल्ली से फौरन लौट पड़े और अपने पिता और पार्टी सुप्रीमो लालू द्वारा उम्मीदवारों को दिए गए सारे टिकट्स आनन फानन में रद्द कर दिये। मंशा साफ है कि विपरीत परिस्थितियों में तेजस्वी को कुर्सी छोड़नी पड़े तो अपनी कठपुतली को कुर्सी पर बिठाने में कोई विरोध के स्वर न उठें। लिहाजा इस चुनाव में कैंडिडेट वैसा हो जो अपना हो। पार्टी का या लालू का शुभचिंतक न हो।
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चर्च की इसी योजना को अमलीजामा पहनाने की दिशा में एक जरूरी कदम लालू के दूसरे सुपुत्र तेजप्रताप को पार्टी और घर से बाहर का रास्ता दिखाना भी है। चर्च को अंदर बाहर कहीं कोई विरोध नहीं चाहिए। इसी कड़ी में लालू परिवार का सबसे मजबूत वारिस तेज को पार्टी और परिवार से बाहर कर दिया गया। लालू प्रसाद की दोनों बेटिया मीसा और रागिनी भी दोनों खुल के तेजस्वी के विरोध में हैं। मतलब लगभग उनको भी हाशिये पे डाल के परिवार और पार्टी से बाहर करने की तैयारी पूरी कर ली गई है।
हाल में चुनावी टिकट बंटवारे में लालू ने खुद जिन ख़ास बड़े वरिष्ठ नेताओं को पार्टी का सिंबल दिया तेजस्वी ने सबको रद्द कर दिया। बुला के बोला “सिंबल वापस करो, टिकट अब तेजस्वी देगा लालू नहीं। इस कदम से लालू को भी हाशिये पे डाला जा रहा है। दूसरी तरफ तेजस्वी पालतू कुत्ते के तरह कांग्रेस और राहुल से मिलने दिल्ली के चक्कर काट रहा है जबकि खुद कांग्रेस वाले बिहार में इस बात से डर रहे हैं कि राजद बड़ी पार्टी है, कहीं अकेले उतर गयी चुनाव में तो कांग्रेस को एक सीट भी नहीं मिलेगी। लेकिन उसके बाद भी तेजस्वी अज्ञात दबाव अथवा प्रलोभन में कांग्रेस और 10 जनपथ के सामने नतमस्तक हुआ पड़ा है।
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अब एक बात समझिए। तेजस्वी को सब तरफ से अकेला किया जा रहा है। लालू की जिंदगी बहुत लम्बी है नहीं। न सेहत है। जेल जाने की तलवार भी लटक रही है। राबड़ी की इतनी काबिलियत नहीं है कि वो किसी से दो बात अपने दिमाग से कर सके। तेजस्वी आज नहीं तो कल घोटालो में जेल जायेगा। जमानत पे बाहर आ भी गया तो चुनाव नहीं लड़ सकेगा। तो पार्टी की कमान किसके हाथ में जाएगी? अब इन सब को मिला के समेटीये तो चर्च की बिसात समझ आ जाती है। गाँधी परिवार और उसमे सोनिया की आमद और उसके बाद के घटनाक्रम से समझ आ जायेगा कि कौन सी कहानी दोहराई जा रही है। बिहार झारखण्ड ओडिशा और छत्तीसगढ़ चार राज्यों में चर्च की ताकत समझिये। नक़्शे पर एक देश की कल्पना कीजिये इन चार राज्यों को मिला कर और इसको जोड़िए। नार्थ ईस्ट से जहां चर्च पहले ही कब्ज़ा कर चुका है और 60 से 90 प्रतिशत आबादी इसाई है।
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जिओपॉलिटिक्स के प्लान कई दशकों के भविष्य को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं। बिहार वालों ने कभी इस नजरिये से सोचा नहीं। सोचना शुरू कर दीजिये या भविष्य में हल्लेलुइया बोलना और जिंदगी भर कमाई का 10 प्रतिशत चर्च को देने और आज से भी बदतर गरीबी में जीने की तैयारी कर लीजिये। क्युकी चर्च जब सत्ता में आता है, ये सब लाता है, समझिये साजिश बहुत गहरी है। समय रहते नहीं समझे तो राजेडी से बिहार का अगला चीफ मिनिस्टर रैचेल आयरिश गोडिन्हो का बनना तय है।
