- बिखरी हुयी ताकत को इकट्ठा कर सियासी संदेश देने की मंशा
- अपने वोट बैंक को ‘हारी हूंँ-टूटी नहीं’ बताने की मंशा
अनिल उपाध्याय
लखनऊ। राजधानी में गुरुवार नौ अक्टूबर को श्रीकांशीराम स्मारक स्थल पर बसपा चीफ मायावती की होने वाली रैली कहीं यूपी की सियासत में उनकी‘ कमबैक रैली’तो नहीं है! कहीं मायवती बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर होने वाली इस रैली के बहाने लाखों कार्यकर्ताओं की ‘बड़ी जुटान’कर अपनी बिखरी हुयी ताकत को इकट्ठा कर सियासी संदेश तो देना नहीं चाहती हैं। इस रैली में पाँच लाख से ज्यादा कार्यकर्ताओ के आने की उम्मीद जतायी जा रही है। सियासी गलियारों में कहा तो ये भी जा रहा है कि बहन जी इस रैली के बहाने भतीने आनन्द को ‘Re-Launch’भी करेंगी।

बताते चलें कि साल 2012 में सत्ता से बाहर होने के बाद मायावती ने विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले इसी तरह नौ अक्तूबर 2021 को मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल लखनऊ में बड़ी रैली कर अपनी ताकत का इजहार किया था। इसल मेगा रैली के कबाद भी फरवरी 2022 को हुए राज्य के विधानसभा चुनाव में करारी हार मिली।

इस हार के बाद BSP चीफ ने कोई भी सार्वजनिक कार्यक्रम करने से परहेज किया। इसकके बाद 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में तो बसपा (BSP) की स्थिति और भी बदतर हो गई। बहुजन समाज पार्टी (BSP) एक सीट जीतने में नाकाम रहीं और इस हार ने बसपा कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ दिया। इन दो हार के बाद मायावती एक बार फिर इस रैली के बहाने अपने बेस वोट बैंक औचर कॉडर के लोगों में जान फूंकने की कोशिश कर रही हैं।

कहा तो यह भी जा रहा है कि BSP चीफ इस रैली के बहाने अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर से‘Re-Launch’करने की तैयारी कर रही हैं। वैसे तो वे आनन्द को तमाम राज्यों की जिम्मेदारियां देकर आजमा चुकी हैं, लेकिन वे अभी तक उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से सक्रिय नहीं हुए हैं। सियासी पंडित मानते हैं कि मायावती यूपी में 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले आकाश को पूरी तरह से सक्रिय करना चाहती हैं। आकाश पढ़े लिखे युवा में ऐसे में उन्हें मंच पर लाकर दलित समाज में यह संदेश देने की कोशिश होगी कि उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। अब बसपा की कमान कॉडर के युवा आकाश के हाथों में है।
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ये बात सबको पता है कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में दलित वोटबैंक में जबरदस्त सेंधमारी हुईं थी और इस वोटबैंक पर बसपा का एकाधिकार खिसकता हुआ दिखा। दरअसल यह वोट बैंक मायावती की जमापूंजी है। ऐसे में जाहिर है कि अपने समाज के वोटबैंक को सहेजेने के लिए वे कांशीराम की पुण्यतिथि पर बड़ी रैली कर कर रही हैं। कोशिश तो यही होगी कि इस बहाने यह संदेश भी दिया जाए कि मायावती हार के बाद भी टूटी नहीं हैं।
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