•बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
एक बार फिर आओ मां रणचंडी!
बढ़े पाप को खा जाओ रणचंडी।।
राक्षस कुल बढ़ते जाते हैं,
पापी सभी कहर ढाते हैं।
सत्य बोलने वाले डरते,
ढोंगी अब बढ़ते जाते हैं।।
भटक रहे है लोग,
इन्हे सन्मार्ग दिखाओ!!
महाश्मशान कालिके आओ!
अट्टहास कर रोर मचाओ।
जो नृशंश है अन्यायी हैं..
कन्याओं को बहकाते हैं।
अबलाओं की करें न इज्जत।
गुंडागर्दी अपनाते हैं।।
दुष्ट दलन कर न्याय करो तुम,
दुर्बल जन परिताप हरो तुम!
बिगड़ा पर्यावरण निरंतर,
बिगड़ रहे है लोग निरंतर।।
युवा वर्ग भ्रमजाल मे घिरा।।
जीवन मे संघर्ष कर रहा।
हो अशांत दिग्भ्रमित हो रहा।
सभी ओर नैराश्य दिख रहा।।
हे करुणामयि ! इन्हें संभालो।
जीने का सम्मान सिखाओ।।
मां दुर्गे! करता आवाहन!
सिंह वाहिनी कर दो गर्जन।।
मधु कैटभ फिर जाग गए है।
मानवता के वाट लगे हैं।।
जाति जाति मे अंतर बढ़ता।
स्वार्थी सत्तासीन होरहा।
मानवता की ज्योति जगाओ!
करुणामयि संसार बसाओ!!
नव विवाहिता भाग रही हैं।
अपने पति को मार रही है।।
मित्र बन रहे लोभी लंपट।
दोनो कुल संहार रही है।।
बसे गृहस्थी श्रेष्ठ जनों की ,
ऐसी संस्कृति पुन: बसाओ!!!
पाप बढ़े होरहा अवर्षण।
अन्न बिना चिंतातुर जीवन।।
बिन वर्षा आगे क्या होगा?
चटकी धरती बिखरा तन मन।।
हरियाली अब फिर से लाओ
हे मां शाकम्भरी! बचाओ!!
