मोदी के भरोसे जीत की आस से कई सांसद निराश

  • मोदी के भरोसे जीत की आस से कई सांसद निराश
  • पूर्वांचल और अवध क्षेत्र की जनता ने भाजपा को दिया करारा झटका
  • जनहित के मुद्दों को दरकिनार कर केंद्र सरकार का बखान करना पड़ा भारी

राकेश यादव

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी को अपने दम पर बहुमत हासिल करने के मंसूबे पर प्रदेश की जनता ने पानी फेर दिया। प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में लगभग आधी सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे जीत की आस लगाए कई सांसदों और मंत्रियों को निराश होना पड़ा।

यूपी में संविधान, आरक्षण पर खतरा, बेरोजगारी, पेपर लीक और महंगाई जैसे मुद्दों ने भाजपा के लिए मुश्किल हालात पैदा किए तो वर्तमान सांसदों से नाराजगी और गैर यादव पिछड़ी जातियों के छिटकने ने इसमें खास का काम किया।

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यूपी में माहौल इस कदर भाजपा के खिलाफ गया कि स्मृति ईरानी, महेंद्र नाथ पांडेय, संजीव बालियान, अजय मिश्रा टेनी, भानु प्रताप वर्मा और कौशल किशोर जैसे केंद्रीय मंत्री चुनाव हार गए। कई बार से चुनाव जीतती आ रहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी भी चुनाव हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में हुआ है।

भाजपा के लिए सबसे चौंकाने वाली हार अयोध्या लोकसभा सीट की रही है। अयोध्या से दो बार के सांसद लल्लू सिंह को समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने पटखनी दी है। माना जा रहा था कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद न केवल अयोध्या की बल्कि आसपास की भी लोकसभा सीटों पर भाजपा आसानी से जीत दर्ज करेगी।

अवध क्षेत्र में राजधानी लखनऊ को छोड़कर पड़ोसी जिले बाराबंकी, सीतापुर, लखीमपुर, सुल्तानपुर, रायबरेली, अमेठी, अयोध्या, अंबेडकरनगर, प्रतापगढ़, कौशांबी, श्रावस्ती, संतकबीरनगर और बस्ती लोकसभा से भाजपा हार गई है।इसके अलावा पूर्वांचल में वाराणसी के आसपास की सीटें घोसी, लालगंज, आजमगढ़, मछली शहर, चंदौली, जौनपुर और बलिया में भी भाजपा हार गई है।

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इस बार भाजपा के खिलाफ मतदाताओं का नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजधानी की लखनऊ लोकसभा से रक्षा मंत्री राजनाथ को लाखों नहीं बल्कि कुछ हजार वोटों से जीत मिली है। यह बीते 15 सालों में लखनऊ में भाजपा को मिली सबसे कम वोट की जीत है। इतना ही नहीं वाराणसी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली जीत पहले के मुकाबले इस बार काफी कमजोर रही है। रायबरेली से राहुल गांधी ने लगभग चार लाख वोटों से, मैनपुरी से डिंपल यादव 2.21 लाख तो कन्नौज से अखिलेश यादव ने पौने दो लाख वोट से जीत दर्ज की।

भाजपा की कमजोर हालात के पीछे संविधान और आरक्षण को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन का सघन चुनाव अभियान और जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए व्यूह रचना करना रहा है। इस बार इंडिया गठबंधन ने बड़ी तादाद में गैर यादव पिछड़ों को टिकट देकर भाजपा का समीकरण बिगाड़ा तो बहुत कम तादाद में मुसलमानों को मैदान में उतार कर ध्रुवीकरण नहीं होने दिया। भीषण गर्मी में हुए चुनाव में शहरी और सवर्ण मतदाताओं ने मतदान भी कम किया और लगातार जीत से आश्वस्त भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उदासीनता ने भी काम खराब किया। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने की दशा में बड़ी तादाद में दलित वोट भी इस बार संविधान बचाओ मुहिम के नाम पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को मिले। बड़ी तादाद में पुराने सांसदों को रिपीट करने का भी खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा।

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