अफ़साना जीने का कितना अजीब है,

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

हृदय के अच्छे लोग अक़्लमंद होने
के बावजूद भी गच्चा खा जाते हैं,
इसलिये कि वे सभी पर हृदय से
अच्छा होने का विश्वास कर लेते हैं।

मैने कभी नहीं सोचा,मैं प्रसिद्धि पाऊँ,
आप चार दोस्त मुझे पहचानते हो,
मेरे लिए बस इतना ही काफी है कि
आप अच्छे से मेरी परवाह करते हो ।

अच्छे के साथ अच्छा, बुरे के साथ
भी अच्छा करूँ यही फ़ितरत मेरी है,
हाँ, जिसकी जितनी जरूरत है उतना
पहचाना मुझे, यह फ़ितरत उनकी है।

अफ़साना जीने का कितना अजीब है,
दिन गुज़ारना तो मुश्किल हो रहा है,
पर साल दर साल बीतते जा रहे हैं,
हर बर्थडे पर उम्र के पल घट जाते हैं।

कितनी अजीब सी है यह जिन्दगी,
कभी हों क़ायल, कभी हो दिल्लगी,
सफलता मिलने से कुछ पीछे छूटते,
और न मिले तो खुद पीछे छूट जाते।

जमीं पर अक्सर बैठना आता मुझे,
अपनी क्षमता का पता जो है मुझे,
सागर ने सिखाया जीने का तरीक़ा,
शांत स्थिर रहकर लहरों में बहना।

जीवन में ग़लतियाँ किससे नहीं होती
ऐसा भी नहीं मुझसे गलती नहीं होती
पर यह सत्य है मैं धोखा नहीं देता,
फरेब नहीं कोई यही ख़ासियत मेरी।

क्यों जलते हैं कुछ लोग यूँ मुझसे,
मुझे नहीं मालूम कि मेरे अंदाज से,
या उनके मन में कोई स्पर्धा है मुझसे,
जीवन में और कितना बदलूँ खुद से।

कहाँ सुकून मिलता है इस दुनिया में,
सोचता हूँ सुकून की बात ही न करूँ,
क्योंकि जीवन की इस आपाधापी में
वक्त के साथ सुकून कहाँ से पाऊँ ।

सोचता हूँ एक समय था बचपन का,
जब हँसकर उठते थे हर सुबह और
अब तो अक्सर प्रतिदिन बिना हँसे ही
सुबह, दोपहर और शाम हो जाती है।

दोस्ती निभाते हुये कहाँ आ गये हम
स्वयं को भूल ही गये अपनों को पाते,
कुछ लोग हैं जो हम पर हैं मुस्कुराते
आदित्य हम तो थक गए दर्द छुपाते।

 

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