दो टूक : सनातन की सियासत पर संग्राम क्यों

राजेश श्रीवास्तव

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं विकास के दावे और वादों पर बात होने की बजाय सनातन, धर्म और संस्कृति पर सियासी बहस छिड़ गई है। हिदुओं के लिए भावनात्मक रुप से बड़े मुद्दे को विपक्ष ने खुद ही बीजेपी को थमा दिया है। यानी गेम उस पिच पर आ गई है, जिसकी बीजेपी परफ़ेक्ट खिलाड़ी है। मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी इस मुद्दे पर बड़ी आक्रामक हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मध्यप्रदेश की सरजमीं से सनातन पर तल्ख तेवर से पार्टी का एजेंडा सेट कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गर्जना बता रही है कि मध्यप्रदेश में इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव के साथ अगले साल होने वाले आम चुनाव का एजेंडा क्या है।

दरअसल इंडिया पर प्रहार के साथ ‘सनातन’ के रथ पर सवार होकर भाजपा अपना बेड़ा पार करना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विपक्षी गठबंधन। दरअसल, घमंडिया गठबंधन है, जो सनातन को खंड-खंड करना चाहता है। यही इनका हिडन एजेंडा है। मोदी के साथ सीएम शिवराज भी सनातन एजेंडे के साथ चुनावी रथ पर सवार हैं। सनातन पर देश में जल रही आग को मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव तक पार्टी बुझने देना नहीं चाहती। लेकिन सनातन पर पूरे देश में जुबानी जंग और सियासी रार का चुनाव में किसको कितना फायदा होगा? ये अभी दूर की कौड़ी है। लेकिन यह समझना होगा कि इसकी सियासत का आखिर मतलब क्या है।

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में लगभग 166 दिन बचे हैं, और जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, चुनावी राजनीति का रंग गहरा होता जा रहा है, फिलहाल सनातन को लेकर संग्राम मचा हुआ है, विपक्ष ने जो महागठबंधन बनाया है उसमें डीएमके भी शामिल है, और डीएमके के नेता और तमिलनाडु सरकार में मंत्री उदयनिधि ने सनातन को खत्म कर देने वाला बयान दिया था। अब उसी डीएमके के दूसरे नेता ए राजा ने सनातन को खत्म करने वाला बयान दिया है । इस मुद्दे पर संग्राम शुरू हुआ था स्टालिन के विवाद से। चुनाव आयोग कहता है धर्म के नाम वोट नहीं मांग सकते लेकिन सनातन धर्म पर सियासी वोट अपील पुराना है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने सनातन उन्मूलन सम्मेलन में ऐसा बयान दिया, जिस पर बवाल मच गया। उन्होंने कहा, सनातन का सिर्फ विरोध नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि, इसे समाप्त ही कर देना चाहिए।

सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है । लेकिन स्टालिन को यह नहीं पता था कि वह जो बयान दे रहे हैं वह ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए मुसीबत का सबब न रहा है। दिलचस्प तो यह भी है कि अभी भी ‘इंडिया’ गठबंधन के नेता इससे बचने का नहीं प्रयास कर रहे बल्कि वह बीजेपी की लोकप्रिय पिच पर जाकर गुगली ख्ोलने की कोशिश कर रहे हैं। उनको पता होना चाहिए कि यह पिच भाजपा की है। आखिर जिस देश में 8० फीसद जनता माने या न माने लेकिन वह है तो सनातनी ही।
उदाहरण के लिए आपको एक रियल स्टोरी बताता हूं अभी दो दिन पहले मैं एक कांग्रेस के नेता से मिला तो वह भी स्टालिन के बयान-‘सनातन धर्म को समूल नष्ट कर देना चाहिए’ दोहराने लगे लेकिन पता चला कि नेताजी कमरे में यह भाषण दे रहे थे।

लेकिन उनकी पत्नी दिन-रात पूजा में व्यस्त रहती हंै और तो और उनके पिता और भाई सभी पूरे कर्मकांडी हैं और भगवान में सच्ची आस्था रखते हैं। कहने का आशय यह है कि अगर आपको सनातन पर बोलने वाले कुछ चंद लोग मिल भी जायेंगे तो यह तय मान लीजिये कि वह अपने घरवालों को नहीं रोक पा रहे तो समाज को कैसे रोक पायेंगे। इसका आशय यह है कि सनातन पर विपक्ष के नेता जितना बोलेंगे उतना नुकसान उन्हें आने वाले दिनों में होगा। आपको एक और दिलचस्प पहलू जानना चाहिए कि तमिलनाडु समेत दक्षिणी भारत में धर्म पर बोलने पर जितना असर पड़ना चाहिए वह तो पड़ेगा ही और उसका परिणाम आने वाले पांच राज्यों के चुनाव में पता चलेगा लेकिन इसका उससे भी ज्यादा खामियाजा हिंदी पट्टी के राज्यों में ‘इंडिया’ के नेताओं को उठाना पड़ सकता है।

भाजपा 198० में बनी। भाजपा के पहले अधिवेशन में प्रस्ताव पास हुआ था कि भाजपा हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुत्व की बात करेगी। मुझे लगता है कि भाजपा अपने जन्म से ही स्पष्ट थी कि हम इसकी बात करेंगे तो उत्तर भारत में हम एक बड़ा वोट बैंक तैयार करेंगे। कांग्रेस उस पिच पर भाजपा को परास्त नहीं कर पाई। मुझे लगता है कि यह मुद्दा भाजपा के पक्ष में जाएगा। विपक्ष अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। हो सकता है दक्षिण भारत में यह विपक्ष के लिए ये फायदेमंद हो, लेकिन उत्तर भारत में यह भाजपा के पक्ष में जाएगा। भले ही विपक्ष इस मामले को दबाने की कोशिश करे, भाजपा इसे लोकसभा चुनाव तक भुनाने की कोशिश करेगी। मुझे लगता है कि यह मुद्दा जरूर रहेगा। जिस मुद्दे से राजनीतिक दलों को फायदा दिखता है, उसे वो आगे बढ़ाते हैं। भाजपा इस मुद्दे को आगे लेकर जाएगी। विपक्ष भी इसे इस नजरिये देख रहा है कि भाजपा के साथ जो दलित और पिछड़ा वोटर है वो शायद इससे टूटकर उसके साथ आ सकता है। इसलिए वो भी इसे उठाएगा।

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