विपक्षी एकता विपक्ष की आवश्यकता,

डॉ. ओपी मिश्र


अमूमन इतिहास में अपने आप को दोहराता है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यदि विपक्षी पार्टियां एक होकर 1977 का इतिहास दोहराते हैं तो कोई नई बात नहीं है। पाठकों को याद होगा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब 1975 में आपातकाल लगाया था तो 1977 के चुनाव से पहले सारे विपक्ष दल एक होकर इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे थे और उन्हें धूल चटा दी थी। शायद इसी परंपरा को आगे बढ़ाने की कवायद इन दिनों चल रही है। फर्क यह है कि उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी जबकि इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। उस समय के गठबंधन में कांग्रेस को हराने के लिए तत्कालीन जनसंघ जो आज की BJP है, वह भी शामिल थी। ठीक उसी तरह BJP को हराने के लिए बनने वाले गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल है।

वैसे TMC प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सपा प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख तथा पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जैसे करीब आधा दर्जन नेता कांग्रेस को ‘माइनस’ करके विपक्षी एकता का झंडा उठाना चाहते थे। लेकिन शायद बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार इन नेताओं को यह समझाने में कामयाब रहे कि कांग्रेस को हासिये पर डालकर जो विपक्षी एकता बनेगी उतनी मारक नहीं होगी जितनी कांग्रेस को मिलाने के बाद हो सकती है। बिहार से नीतिश कुमार तथा तेजस्वी यादव का कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का निमंत्रण स्वीकार कर दिल्ली आना इसी कड़ी का एक महत्वपूर्ण अंग है। अब तक नितीश कुमार दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष के अलावा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलकर विपक्षी एकता पर चर्चा कर चुके हैं।

बृहस्पतिवार को NCP  प्रमुख शरद पवार भी राहुल गांधी से मिल चुके हैं। उधर बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने CPM नेता सीताराम येचुरी से भी भेंट कर चर्चा की है। विपक्षी एकता मे सबसे बड़ी दिक्कत उत्तर प्रदेश है। जहां 80 लोकसभा सीटें हैं जिसमें सपा के पास पांच, बसपा के पास दस तथा BJP के पास 62 और सहयोगी दल के पास तीन सीटें हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार तथा महाराष्ट्र तीन ऐसे राज्य हैं जहां 162 सीट लोकसभा की है। यानि लोकसभा सीटों की एक बहुत बड़ी संख्या। अगर वास्तव में विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देना चाहता है ,तो उसे सबसे पहले इन 62 सीटों पर फोकस करना होगा। इन तीनों राज्यों में बिहार एक ऐसा राज्य है जहां BJP बगैर किसी स्थानीय क्षत्रप को मिलाएं कोई बड़ा चमत्कार नहीं कर सकती। इस समय बिहार में BJP के साथ प्रत्यक्ष रूप से कोई दल नहीं है। ऐसे में BJP यहां कोई चमत्कार कर पाएगी कहा नहीं जा सकता। रही बात उत्तर प्रदेश की तो यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में BJP की पूर्ण बहुमत की सरकार चल रही है। लेकिन यदि 2024 में सपा, बसपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो BJP के लिए मुश्किल हो जाएगी?  वैसे BJP की यही कोशिश होगी कि यह तीनों मिलने ना पाए।

इसलिए इसके लिए उसके पास तमाम प्रशासनिक मशीनरी है जो विपक्षी एकता रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। अगर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की उपलब्धियों पर बात करें तो यहां के नौजवान में काफी आक्रोश है। लेकिन यह आक्रोश इतना भी बड़ा नहीं है कि अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के उठते ज्वार को कम कर सके। पाठक यह बात भली-भांति जानते हैं कि अयोध्या का मंदिर जनसामान्य के लिए लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी में आम आदमी के लिए खोल दिया जाएगा। और यह शुभ कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों द्वारा संपन्न होगा। अब देखना यह होगा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव के समय राम मंदिर ट्रेंड करता है या महंगाई , बेरोजगारी, सरकारी नौकरी और भ्रष्टाचार। राम मंदिर ट्रेंड कर गया तो BJP 2019 का अपना 62 का आंकड़ा पार कर सकती है और यदि विपक्ष के आरोप ट्रेंड किए तो BJP 62 से घटकर 12 पर आ सकती है।

लेकिन यह हो पाएगा इसकी संभावना बहुत कम है। क्योंकि विपक्षी नेता दूध के धुले कतई नहीं है। विपक्ष को इन बातों को भी ध्यान में रखना होगा कि कभी कुछ भी हो सकता है। इतिहास गवाह है कि 1994 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार के ‘बोफोर्स’ ने निगल लिया था यद्यपि बाद में वे दोषमुक्त साबित हुए लेकिन तब तक सरकार उनके हाथ से जा चुकी थी। अब अगर हम महाराष्ट्र की बात करें तो वहां लोकसभा की 42 सीटें हैं और यहां भी अगर कांग्रेस, NCP नेता उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा तो BJP का बिस्तर गोल हो सकता है। बिस्तर लगातार कैसे बिछा रहे BJP अभी से ताना-बाना बुन रही है लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उसके लिए कितने लाभदायक साबित हो सकते हैं कहा नहीं जा सकता, क्योंकि पार्टी में टूटन होगा और सरकार बन जाना अलग बात होती है। और मतदाता से पार्टी के पक्ष में मतदान कराना अलग ‘ट्रिक’ होती है।

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से इस बाबत बात की तो उनका कहना था कि यह इंपॉर्टेंट नहीं है कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा? इंपॉर्टेंट यह है कि विपक्षी एकता किस तरह होगी, किन शर्तो पर होगी, किन मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाएगा तथा किसको कितनी सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलेंगी? उनका कहना था कि अगर लोकतंत्र बचाना है तो तानाशाही के खिलाफ सभी को एक साथ मिलकर खड़ा होना होगा। ED और IT से जुड़े सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि सत्ता का दुरुपयोग ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता। उनका जवाब था कि समय आने पर दूध और पानी का अंतर समझ में आ जाएगा।

 

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