स्वतः संज्ञान जैसी अवधारणा से फैली आमजन में न्याय की आशा

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी
              डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

लेखक भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं. आप अहिंसा आयोग और अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।


स्वतः संज्ञान की अवधारणा एक मौलिक ताकत है। यह अवधारणा जब विकसित हुई तब इसके उपयोग उस मात्रा में नहीं हुए जितना होना चाहिए लेकिन जब देश और दुनिया में अनेकों ऐसे मामले हैं जिन्हें लोग कहने में डरते हैं। रिपोर्ट करने में संकोच करते हैं। जनहित की बात भी नहीं उठाते तो ऐसे में स्वतः संज्ञान जैसी अवधारणाएँ समाज के लिए वरदान बन जाती हैं। भारतीय संविधान हमारी जीवन संस्कृति का संवाहक है। न्याय व्यवस्था से निःसन्देह हमारे देश की जनता यह उम्मीद करती है की उसके हक़ सुरक्षित और संरक्षित होंगे और वे गरिमामय जिंदगी लोकतांत्रिक तरीके से जीने के लिए सुखद अवसर के भागीदार होंगे। आज़ादी के अमृत पर्व से अब हम आगे बढ़ चुके हैं। हमारे देश की यह खूबसूरती है की वह एक शानदार लोकतन्त्र को आगे बढ़ाते हुए भारतीय मानस को स्व-बोध के साथ जीने और गरिमामय जीवन का हिस्सा बना रहा है।

इन सबके बीच भारत के इस विस्तृत भूभाग पर अनेकों ऐसी घटनाएँ घटती हैं जो अप्रत्याशित होती हैं। ये घटनाएँ अकल्पनीय भी होती हैं। इसमें मनुष्य की ही क्षति होती है। मनुष्यता की क्षति होती है। मूल्यों की क्षति होती है और अतिक्रमण के शिकार लोगों को अनेकों प्रकार के कष्ट सहन करने पड़ जाते हैं। ऐसे समय में व्यक्ति-मनुष्य यह देखता है कि उसके पीछे कौन खड़ा है? ऐसी विषम परिस्थिति में उसकी सुध लेने वाला कोई है भी या नहीं? विषम परिस्थितियों में न्याय मांगते लोग जब अपने पीछे किसी ऐसे स्तम्भ का हाथ देखते हैं जो उनके हित की लड़ाई में सहयोगी बन बैठा हो तो उनके अंधेरे जीवन में एक रौशनी सी आ जाती है और वे उम्मीद से अपने होने का पुनः एहसास करने लगते हैं। भारत का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग इस दिशा में सान 1993 से ऐसी पहल करते हुए भारत की जनता के साथ है जिसके लिए आयोग की तारीफ की जानी चाहिए।

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आयोग ने स्वतः संज्ञान लेकर भारत की जनता और संस्थाओं को यह बताया कि तुम्हारी विपरीत परिस्थिति में केवल तुम अकेले नहीं हो बल्कि पीछे हम भी आपके समस्त न्याय के लिए तुम्हारे साथ खड़े हैं। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना 1993 में हुई और 24 जून 93 को ही आयोग जमाल अफ़गानी के मामले को स्वतः संज्ञान लिया। उन दिनों आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा थे। वह आयोग के प्रथम अध्यक्ष थे। उन्होंने सबसे पहली बार आयोग की अपनी उपस्थिति इस प्रकार के इनिशिएटिव के माध्यम से दर्ज़ की। वर्ष 1993 से वर्ष 2023 की अपनी यात्रा में आयोग ने चालू वित्तीय वर्ष में पंजीकृत स्वप्रेरणा से मामलों की सूची में 5 अप्रैल 2022 से अब तक की 75 स्वतः प्रेरणा से संज्ञान ली गई केस का ज़िक्र अपनी वेबसाइट पर किया है। अहम बात यह है कि अब तक सन 1993 से अब तक 2685 केस स्वतः संज्ञान के रूप में लिया है, जो कि उदाहरणीय संख्या है। इस वर्ष की केवल संख्या देखि जाए तो वह भी कम नहीं है।

आयोग की ओर से साल 2023 में ही स्वतः संज्ञान केस की संख्या 25 है। इन सभी मामलों को संज्ञान में लाने में सामान्य जन, अखबार, रैपोर्टियर, टीवी और दूसरे महत्वपूर्ण लोग हैं किन्तु खबरे चला दी जाएँ या प्रकाशित कर दी जाएँ या चिट्ठी लिख दी जाए या रिपोर्ट कर दिया जाए उससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता, आयोग ने उसे स्वीकार किया या आयोग ने स्वतः सूत्रों से उन विषयों को अपने दिमाग का हिस्सा बनाया यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। मानव अधिकार आयोग की सक्रियता इससे प्रकट होती है। अब तक आयोग के सामने जितनी भी केस आयीं उसकी संख्या 21 लाख 85 हज़ार 76 है, उसमें से 21 लाख 71 हज़ार 690 का निस्तारण किया  गया है। आयोग निःसन्देह एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। यह भले ही लोग सवाल करें कि आयोग क्या करता है, कुछ तो नहीं करता है लेकिन ऐसी बात नहीं है आयोग निरंतर सबके बीच में है और आयोग का प्रयास प्रशंसनीय और अभिनंदनीय है। अभिनंदन इसलिए भी किया जाना चाहिए क्योंकि यदि हम आयोग के प्रति सकारात्मक होंगे तो आयोग भी हमारे साथ सकारात्मक भाव से होगा।

यह सक्रियता अब आयोग की तो है बल्कि सच्चे मैने में हमारे स्वस्थ लोकतंत्र के संवाहकों की है, ऐसा कहना ज्यादा तर्कसनगत लगता है। बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान के दायरे में रहकर इससे पोषित स्वायत्त संस्थाओं से यह आशा की थी कि वे पाने उत्तरदायित्वों का निर्वहन निष्ठापूर्वक करके सामाजिक न्याय की संकल्पना को मजबूत बनाएँगे। आयोग निःसन्देह इस दिशा में आगे बढ़कर संविधान का सम्मान किया है और अपने स्वतः संज्ञान जैसी पहल से सबके भीतर स्थान बनाया है।सबसे ज्यादा प्रशंसा आयोग की आज इसलिए भी की जानी चाहिए क्योंकि इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा अपने मात्र दो सहयोगियों डॉ. ज्ञानेश्वर मनोहर मुले और राजीव जैन के साथ नेतृत्व करते हुए आयोग की प्रतिष्ठा को बढ़ा रहे हैं। उनके सफल नेतृत्व में आयोग रचनात्मक पहल, सृजनात्मक कर्म और सुव्यवस्थित लक्ष्य की ओर अग्रसर है। स्वतः संज्ञान के मामले में आयोग की अपनी मंशा साफ झलकती है कि वह मानवीय संवेदनाओं के प्रति बहुत ही गहरे जुड़ा हुआ है। साल 2023 के कुछेक महीने में 23 केस को स्वतः संज्ञान के दायरे में लाकर न्याय करने की पहल वास्तव में हमें उम्मेद से भर देती है। भारत की जनता ऐसी पहल को अपने कवच के रूप में देखे तो कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बात नहीं होगी।

दुनिया में ऐसी स्वतः संज्ञान की एक लंबी परंपरा न्याय-तंत्र में है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय भी विश्व की अनेक घटनाओं को स्वतः संज्ञान लेकर उस पर उचित कार्रवाई की पहल करता है। वह अपने रैपोर्टियर के माध्यम से अध्ययन करता है। संबंधित देश को उस घटना पर उचित फैसले लेने, नैतिक साहस दिखाने और उचित कार्रवाई का दबाव बनाता है। हाल के समय में रोहिंग्या के मामला हो या अफगानिस्तान में महिलाओं के ऊपर प्रतिबंधों का मामला हो या फिर क्यों न यूक्रेन युद्ध के ही हताहत लोगों के मामले हों, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय कई बार स्वतः संज्ञान लिया है और अपने विशेष दूत के माध्यम से अनेकों पहल करने की कोशिश की है। इस प्रकार के मामले यदि स्वतः संज्ञान में लेकर नहीं निपटाए जाएंगे तो मानवता पीड़ा में ही रहने को मजबूर हो जाएगी। भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा इसलिए इस दिशा में सकारात्मक और सक्रिय भूमिका निराश लोगों के जीवन में आशा का दीप प्रज्ज्वलित कर रही है।

स्वतः संज्ञान की इस अभीष्ट के माध्यम से भारत के मानव अधिकार आयोग की मानवाधिकारवादी होने की बात झलकती है। इस रणनीति में यद्यपि स्वतः संज्ञान के मामले थोड़े ज्यादा संख्या में होंगे तो न्याय की तस्वीर और निखरेगी, ऐसा माना जा रहा है। लोगों के आशाओं को बल मिलेगा। इसलिए ऐसा लगता है कि स्वतः संज्ञान अधिक बढ़ाया जाना आवश्यक है। इसकी संख्या में बढ़ोतरी अपेक्षित है। उस पर कार्यवाही और उससे प्रतिफल ज्यादा अपेक्षित है क्योंकि यह तो उन मूक लोगों की आवाज़ का हिस्सा है जो किसी घटना से या तो निरीह स्थिति में पहुँच चुके हैं या ज्यादा ही पीड़ित व अतिक्रमित जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। मजबूरी के बरक्स मजबूती का हाथ बढ़ाने वाली पहल स्वतः संज्ञान है, तो इसकी संख्या में बढ़ोतरी आवश्यक लगती है।

केवल आयोग ही क्यों जागरूक समाज की भी ज़िम्मेदारी है कि वह ऐसे मामलों को आयोग के संज्ञान में लाये ताकि लोगों को न्याय मिल सके। उनके जीवन की प्रत्याशा में बढ़ोतरी हो सके। फिर भी एनएचआरसी के इस पहल को हमें मनुष्यता, लोकतन्त्र या प्रकृति संरक्षण की दिशा से जोड़कर देखने की आवश्यकता है जिससे आयोग का मनोबल बढ़े और वह और अधिक सक्रिय होकर कार्य करे। भारत कि न्यायपालिका ने भी अनेकों स्वतः संज्ञान में केस लेकर उसपर कड़ी कार्यवाही की है और उसके सकारात्मक परिणाम आए हैं किन्तु एनएचआरसी ने अकेले स्वतः संज्ञान को इतना महत्वपूर्ण माना और वह नित्य ऐसे उदाहरण के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर रही है इससे भारत की जनता के बीच एक मैसेज है कि उसका इस भारत में खोज-खबर लेने वाला कोई है, किसी को निराश होने की आवश्यकता नहीं है। हाँ, एक बात ज़रूर कहना ज़रूरी है कि अधिकांश ऐसे मामले स्वतः संज्ञान में तब आते हैं जब वह घटना किसी मीडिया का हिस्सा बनकर चर्चित होती है या फिर किसी जागरूक द्वारा उसे आयोग के मानसपटल पर लाया जाता है, इसको थोड़ा अधिक प्रभावी उपक्रम में तब्दील करने की अवश्यकता है।

एनएचआरसी जमीनी स्तर पर इस प्रकार की घटनाओं से कैसे ज्यादा जुड़ सकता है, इस पर ज़रूर नए सिरे से सोचने की अवश्यकता है। जब दुनिया के अनेकों देशों में स्थापित एनएचआरसी कुछ ज्यादा परिणाम नहीं दे रहे हैं और उनके यहाँ मानवाधिकारों के हनन की निरंतरता बनी हुई है तो ऐसे समय में निःसन्देह भारत के 75 वर्षीय लोकतन्त्र की महान यात्रा में एनएचआरसी के अब तक के स्वतः संज्ञान के मामले ऐतिहासिक और बहुत संतोषजनक प्रतिफल देने वाले पहल में शामिल है। आयोग की स्थापना के साथ यह अपेक्षा की गयी थी कि भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग अपनी मर्यादा के साथ भारत की जनता का मित्र साबित होगा, उसकी गरिमा का संबल बनेगा और वह इस दिशा में उल्लेखनीय योगदान देकर उन मंसूबों पर खरा उतरने की कोशिश में स्वतः संज्ञान जैसे पहल के साथ आगे बढ़ा है तो यह उसके होने का बोध है। भारत हमेशा संभावनाओं में विश्वास करता है। वह आशावादी है। सफलता में श्रेय नहीं लेता है और सेवा में रुचि दर्शाता है तो उसका एक जिम्मेदार आयोग आगे भी भारत की जनता का हितैसी साबित हो, यही हर भारतीय चाहता भी है।

पता: यूजीसी-एचआरडीसी, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर-470003 मध्य प्रदेश

मो. 9818759757 ईमेल: [email protected]

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