DM के आदेश को पुलिस ने दिखाया ठेंगा

अपनी जमीन पाने के जसीमुन को लड़नी पड़ेगी कानूनी लंबी लड़ाई


नया लुक ब्यूरो


सिद्धार्थनगर। अगर आप सोचते हैं कि किसी भी प्रकार की शिकायत मुख्यमंत्री के शिकायती पोर्टल पर भेजने से उसका निस्तारण हो जाता है तो यह आपकी भूल है। शिकायतों के निस्तारण के मामले में सिर्फ व्यवस्था बदली है, सिस्टम नहीं। कोई एक बता दे कि उसे तहसील दिवस, समाधान दिवस या थाना दिवस से कोई लाभ मिला हो। दरअसल पीड़ितों को और पीड़ित करने के लिए इस तरह की दो एक चैनल भर स्थापित कर दी गई है। आम जनता या जरुरतमंदों को इससे कोई फायदा मिलने वाला नहीं है।

उदाहरण तो सैकड़ों है लेकिन एक उदाहरण यहां जरूर देना चाहुंगा जिसे जानकर आप यह मानने को मजबूर होंगे हमारे सरकारों के बनाए यह सिस्टम कितने धोखेबाज हैं। मामला सिद्धार्थनगर जिले के थाना शोहरत गढ़ के ग्राम रोमनदेई का है। यहां की एक महिला जसीमुन पत्नी हसाबुद्दीन ने गांव के अख्तर हुसेन नामक व्यक्ति से चार मंडी जमीन बैनामा लिया। उसके साल भर बाद गांव के महबूब ने भी उसी शख्स से उतना ही रकबा बैनामा करा लिया यह जानते हुए कि मौके पर पहले बैनामे दार की खरीदी जमीन के अलावा कोई जमीन बची नहीं है। कानून भी कहता है कि एक जमीन धोखे से चाहे जितनी बार बिक्री की गई हो,उसपर पहला हक पहले बैनामे दार का ही है।

कूटरचित दूसरा बैनामे दार बेइमान सिस्टम से भलीभांति परिचित था जबकि पहली बैनामे दार जसीमुन को कानून पर भरोसा था। जसीमुन ने अपने खरीदे जमीन पर फलदार वृक्ष लगाए थे। दूसरे बैनामे दार अर्थात महबूब ने उसे उखाड़ कर फेंक दिया। मामला मुकामी थाना शोहरत गढ़ तक गया पुलिस मौके पर आई और सच्चाई जानकर चली गई फिर नहीं आई। इसके बाद जसीमुन DM के यहां गई।DM ने जांच करवाई, मामला जसीमुन के पक्ष में सही पाया गया। DM ने पुलिस को लिखा भी कि वादिनी की निजी भूमि पर कोई हस्तक्षेप न हो। वादिनी जसीमुन थाने का चक्कर लगाती रहीं, पुलिस आश्वासन का घुट्टी पिलाती रही। थकहार कर जसीमुन ने अपनी फरियाद मुख्यमंत्री के शिकायती पोर्टल पर की। यहां से थाने से लेकर DM तक की आख्या बटोर कर मामला निस्तारित करार दे दिया गया।

खेल यह है कि वादनी ने अपनी भूमि पर वृक्ष लगाया जिसे विपक्षी ने उखाड़ फेंका जिसकी शिकायत थाने पर की गई, पुलिस ने कोई प्राथमिक नहीं दर्ज की। DM ने आदेश दिया कि वादिनी के भूमि पर कोई हस्तक्षेप न हो। पुलिस ने हस्तक्षेप रोकने की जगह निहायत फर्जी तरीके से दोनों पक्षों को पुलिस रिकार्ड में पाबंद कर दिया। पुलिस यह सब इसलिए करती रही ताकि विपक्षी को किसी न्यायालय से स्टे मिल जाए और वह न्यायालय में मामला विचाराधीन कहकर अपना पिंड छुड़ा ले। न्यायालय से स्टे मिलना बड़ी बात नहीं,वह तो मिल ही जाता है। ऐसा ही जसीमुन के साथ हुआ। विपक्षी ने किसी न्यायालय से एन केन प्रकारेण कथित तौर पर स्टे प्राप्त  लिया नतीजतन जसीमुन को जो न्याय थाने से या DM के आदेश पर मिलने वाला था, पुलिस ने जान बूझकर इस मामले को इस तरह उलझाई कि जसीमुन को अपनी जमीन अब लंबी कानूनी लड़ाई के बाद ही हासिल हो सकेगा।

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