पुलिस: एक राष्ट्र-मगर किस्में दो!!

के. विक्रम राव


रामपुर सदर के तत्कालीन क्षेत्र अधिकारी (विद्या किशोर शर्मा) को रिश्वत लेने के आरोप में उनके मूल पद पर वापस कर दिया गया है। उन पर रामपुर में पोस्टिंग के दौरान रिश्वत लेने का इल्जाम लगा था। आरोप सही पाए जाने पर जांच के बाद कार्यवाही की गई है। विद्या किशोर शर्मा को पुलिस मे सब इंस्पेक्टर SI के पद पर नियुक्त किया गया था। पदोन्नति मिलने के बाद उन्हें डिप्टी एसपी के पद पर तैनात किया गया था। उनकी भर्ती पीएसी में प्लाटून कमांडर सब इंस्पेक्टर पद पर हुई थी। फिर 30 अक्टूबर 2018 को वह डिप्टी SP  बनाया गया था। रामपुर में तैनाती के दौरान उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। एक महिला ने आरोप लगाया था कि एक अस्पताल के संचालक विनोद यादव और तत्कालीन इंस्पेक्टर रामवीर यादव ने उसके साथ गैंग रेप किया, इसमें पुलिस ने कार्यवाही नहीं की। इस मामले में पाँच लाख की घूस लेते हुए विद्या किशोर शर्मा का एक वीडियो अफसरों के संज्ञान में आया। आरोपी इंस्पेक्टर रामवीर यादव और अस्पताल संचालक विनोद यादव पर प्राथमिकी दर्ज कर ली गई और सीओ को सस्पेंड कर दिया गया। योगी आदित्यनाथ  के आदेश पर शासन ने इसकी जांच एएसपी मुरादाबाद से करवाई। भ्रष्टाचार के आरोप सही पाए गए। योगी जी ने डिप्टी एसपी को फिर से सब इंस्पेक्टर (एसआई) बनाने का निर्देश दिया है।

यूपी और केरल पुलिसिया व्यवस्था पर तुलनात्मक टिप्पणी यूपी के 120 श्रमजीवी पत्रकार द्वारा की गई थी। वह याद आई। बात अगस्त 1980 की है। हमारे IFWJ के राष्ट्रीय सम्मेलन को कोचीन (एनीकुलम) में ही रहा था। दो रेल डिब्बों में बैठकर पूरे यूपी के साथी चले। रेल मंत्री पं. कमलापति त्रिपाठी ने यात्रा सुविधायें कराई थी। तब मैं IFWJ का राष्ट्रीय प्रधान सचिव था। दैनिक पेट्रीयट के संवाददाता स्वर्गीय सलाउद्दीन उस्मान, पायनियर के समाचार संपादक स्व. कृष्ण शंकर और जनमोर्चा संपादक शीतला सिंह साथ सभी केरल चले थे।

शाम ढले सभी साथी कोचीन बाजार में सैर पर चले। मेरे पूछने पर कि गंगा-गोमती तट से इस सागर तट में क्या फर्क है? सभी की राय थी कि महिलाएं निडर घूम रहीं है। पुलिस कंधे पर सिर्फ छड़ी टांगे ड्यूटी बजा रहें हैं। शस्त्र है ही नहीं। पत्रकारों को तब यकीन आया कि समाज भी सभ्य है। केरल में सादारता शतप्रतिशत है, नारी शिक्षा खासकर। हमारे सम्मेलन का उदघाटन करने मार्क्सवादी मुख्यमंत्री ई के नायनार आए थे। सफेद लुंगी तथा सादी कमीज के पहने, सुरक्षा गार्ड के बिना। मैंने किस्सा बताया। हम जब सम्मेलन के लिए सीएम को आमंत्रित करने हम लोग गए थे, तो उनके बंगले मे एक युवक को वे बुरी तरह डांट रहे थे। मैंने कारण पूछा। मुख्यमंत्री का जवाब था : “रुपए मांग रहा था। मैंने कहा पहली तारीख को आना देखूंगा। अभी मांग रहा था। कहाँ से दूंगा? मेरे पास है ही नहीं। महीने के अंत मे वेतन मिलेगा। यह मेरा बेटा है। मासिक पाकेट मनी मांग रहा है।” अब आश्चर्य तो होगा ही। तुलना करें लालू यादव और तेजस्वी की। यूपी बिहार के जननायकों से अर्थात रम्या और विद्या किशोर शर्मा जैसे केरल तथा यूपी के पुलिस वाले की कारीगरी समझ आ गयी होगी।

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