Gyanvapi Masjid controversy : वाराणसी अदालत ने हिंदू पक्ष की मांग की खारिज, शिवलिंग की नहीं होगी कार्बन डेटिंग

नया लुक ब्यूरो


ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग या वैज्ञानिक विधि होगी या नहीं, इस मामले में वाराणसी की जिला अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने हिंदू पक्ष की तरफ से की गई कार्बन डेटिंग की मांग को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। कोर्ट ने मांग को खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जहां कथित शिवलिंग पाया गया है, उसे सुरक्षित रखा जाए। ऐसे में अगर कार्बन डेटिंग के दौरान कथित शिवलिंग को क्षति पहुंचती है तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा।

ऐसा होने से आम जनता की धार्मिक भावनाओं को भी चोट पहुंच सकती है। इससे पहले वाराणसी की कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को दरकिनार कर श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी केस को सुनवाई के योग्य माना था। इसके बाद से इस मामले में सुनवाई चल रही है। इसी बीच हिंदू पक्ष की 4 वादी महिलाओं ने याचिका दायर कर कार्बन डेटिंग कराने की मांग की थी। इस मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. हालांकि, श्रृंगार गौरी में पूजा की अनुमति को लेकर दायर केस पर सुनवाई जारी रहेगी।

बता दें कि किसी वस्तु की उम्र और समय निर्धारण की विधि को कार्बन डेटिंग कहते हैं। इससे 20 हजार साल पुरानी वस्तुओं की उम्र का पता लगाया जा सकता है. कार्बन डेटिंग विधि की खोज 1949 में की गई थी। इसलिए हिंदू पक्ष शिवलिंग की उम्र का पता लगवाने के पक्ष में है। यह पूरा मामला मस्जिद की दीवार से सटी श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना की इजाजत की मांग से शुरू हुआ था, जो शिवलिंग के दावे तक पहुंचा है। दरअसल, हिंदू पक्ष जिसे शिवलिंग कह रहा है उसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है। हिंदू पक्ष की मांग था कि कथित शिवलिंग की जांच के लिए कार्बन डेटिंग कराई जाए। ताकि उसकी उम्र का पता चले और फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। कार्बन डेटिंग की मांग चार महिलाओं ने की थी।

जिसके बाद शुक्रवार को वाराणसी के जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत इस मामले में फैसला सुनाया है। गौरतलब है कि इसी साल मई में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराया गया था। जिस पर हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि मस्जिद के वजूखाने में बीच में एक कथित शिवलिंग मिला है। जिसपर मुस्लिम पक्ष की तरफ से उसे मात्र फव्वारा बताया गया था। इस पर हिंदू पक्ष ने शिवलिंग की जांच के लिए कार्बन डेटिंग कराने के साथ-साथ वैज्ञानिक जांच कराई जाने की मांग की थी, जिससे उसकी उम्र का पता चल सके। साथ ही शिवलिंग को कोई नुकसान भी न हो। गौरतलब है कि किसी वस्तु की उम्र और समय का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग कराई जाती है। इससे 20 हजार साल पुरानी वस्तुओं की उम्र का पता लगाया जा सकता है।

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