करवाचौथ: सुहागिनों के मान का भान कराता है यह पर्व

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर 2022 को रखा जाएगा। सुहागिनों के लिए करवा चौथ सभी व्रतों में अधिक महत्व रखता है। अपने सुहाग की रक्षा, दीर्घायु और खुशहाली के लिए महिलाएं सुबह से लेकर रात चांद निकलने तक अन्न, जल का त्याग कर करवा चौथ का व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस दिन जो पत्नी पूर्ण विश्वास के साथ माता करवा की पूजा करती हैं उसके पति पर कभी कोई आंच नहीं आती।

करवा चौथ की तिथि

करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को  मनाया जाता है। इस साल करवा चौथ की तिथि 13 अक्टूबर को रात 01 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 14 अक्टूबर को सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार करवा चौथ का उपवास 13 अक्टूबर को ही रखा जाएगा।

करवा चौथ का शुभ मुहूर्त

अमृत काल मुहूर्त- शाम 04 बजकर 08 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 50 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 21 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 07 मिनट तक

ब्रह्म मुहूर्त- शाम 04 बजकर 17 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 05 बजकर 06 मिनट तक

करवा चौथ की पूजन विधि

सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और पूजा घर की सफ़ाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें। यह व्रत सूर्य अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए। संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें। पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे। चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएं साथ पूजा करें। पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएं। चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।

Karva Chauth Special: सुहागिनों का कठोर व्रत : पति की दीर्घायु और सुख समृद्धि के साथ अखंड सौभाग्यवती का मिलता है आशीर्वाद

कैसे शुरू हुई करवा चौथ व्रत की परंपरा?

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध शुरू हो गया। जंग के मैदान में दानव देवताओं पर हावी हो गए थे। युद्ध में सभी देवताओं को संकट में देख उनकी पत्नियां विचलित होने लगीं। पति के प्राणों की रक्षा के उपाय हेतु सभी स्त्रियां ब्रह्मदेव के पास पहुंची। ब्रह्मा जी ने देवताओं की पत्नियों से करवा चौथ व्रत करने को कहा। ब्रह्मदेव बोले कि इस व्रत के प्रभाव से देवताओं पर कोई आंच नहीं आएगी और युद्ध में वह जीत प्राप्त करेंगे। ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी ने कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप करवा माता ने देवताओं के प्राणों की रक्षा की और वह युद्घ में विजय हुए।

करवा चौथ की कथा

एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात्रि को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला – व्रत तोड़ लो, चांद निकल आया है। बहन को भाई की चतुराई समझ में नहीं आई और उसने खाने का निवाला खा लिया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया।

महाभारत काल में किसने किया था करवा चौथ व्रत

महाभारत काल में भी इस व्रत का महत्व मिलता है। एक प्रसंग के अनुसार जब पांडवों पर संकट के बादल मंडराए थे तो द्रोपदी ने श्रीकृष्ण द्वारा बताए करवा चौथ व्रत की पूजा की थी। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को संकटों से छुटकारा मिला था।

पति की लंबी उम्र की कामना के लिए विवाहित महिलाएं करती हैं करवा चौथ का व्रत

करवा चौथ के दिन सुहागिनें क्या न करेंदेर तक न सोएं

करवा चौथ व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर सरगी खाना चाहिए। व्रती करवा चौथ में देर तक न सोएं साथ ही दिन के समय भी सोना नहीं चाहिए। व्रत का दिन भजन कीर्तन करने और शंकर-पार्वती के स्मरण में व्यतीत करें। इस व्रत में सरगी का विशेष महत्व है। देर तक सोने से सरगी खाने का समय निकल सकता है।

सुहाग की वस्तु

करवा चौथ में सुहागिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती है। ध्यान रहे कि इस दिन सुहाग की कोई वस्तु पहनते समय टूट जाए तो उसे कूड़दान में न फेंके। इन्हें बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। साथ ही इस दिन किसी से उधार लेकर मांग में सिंदूर न लगाएं। न ही अपना सिंदूर और श्रृंगार का सामान किसी दूसरी महिला को दें।

सफेद चीजों का दान वर्जित

करवा चौथ सुहाग का पर्व है। इस व्रत में सुहाग से जुड़ी वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है। ऐसे में इस दिन सफेद रंग की चीजों (दूध, दही, चावल, सफेद मिठाई, वस्त्र) का दान करने की भूल न करें।

सिलाई-कढ़ाई

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्रती को इस दिन किभी भी धारदार चीजों का इस्तेमालन नहीं करना चाहिए। इस दिन सिलाई-कढ़ाई जिसमें कैंची का उपयोग होता है वह गलती से भी न करें। ऐसा करना अपशगुन माना जाता है।

विवाद न करें

करवा चौथ व्रत का फल तभी मिलता है जब व्रती का पूरा ध्यान ईश्वर की भक्ति में हो। इस दिन किसी को अपशब्द न कहें, विवाद से दूरी बनाएं। खासकर पति से वाद-विवाद न करें। ये बात पति पर भी लागू होती है।


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