रंजन कुमार सिंह
पहली भारतीय गायिका जिनकी आवाज़ (गायन) एलपी रिकॉर्ड्स पर दर्ज हुई। अपने समय की शाही महफ़िलों की सबसे शानदार और महँगी गवैया कलाकार। गांधी तक शोहरत पहुँची तो गांधी जी ने अपने कोलकाता प्रवास में बुलवा लिया कि आज़ादी की लड़ाई में अपना योगदान करो। गौहर जान ने शर्त लगा दी, कि आप मेरा गाना सुनने आयेंगें तो कन्सर्ट की पूरी कमाई दे दूँगी। उस ज़माने में ये दो ढाई लाख रू के क़रीब होती थी यानी आज के क़रीब साठ सत्तर करोड़ रु! चौंकिये मत , जानिये समझिये, प्रति 12 ग्राम सोने की क़ीमत थी 20 रूपये और आज है 53000/- रु का 10 ग्राम। हिसाब लगा लो।
कार्यक्रम तय हो गया लेकिन गांधी जी नहीं आए। गौहर जान ने कार्यक्रम की आधी कमाई गांधी जी को भिजवा दी यह ख़त लिखते हुए कि आपने अपना वायदा तोड़ा इसलिये इतना ही भिजवा रही हूँ। कभी यह इतिहास भी जानना कि भारत की वेश्याओं की आज़ादी की लड़ाई में क्या बढ़िया भूमिका रही थी। शानदार! पर इस मुल्क ने आज़ादी के अमृत महोत्सव में भी इन सभी को याद भी नहीं किया। और जो आज़ादी की लड़ाई से दूर रहे उनको क्या कहा जाये? यह भी जानना बेहद ज़रूरी है कि वे कौन सी दो परस्पर विरोधी विचारधारायें थी जो अँग्रेज के साथ खड़ी रहीं। जब तमाम दिवंगत हस्तियों को अकारण, क्षुद्र राजनीतिक कारणों से भी भारत रत्न मिलता रहा है। तो गौहर जान को भी मृत्योपरांत भारत रत्न क्यों न मिले ? वो इस योग्य भी थीं। पर इसके लिये बड़ा कलेजा चाहिए, 56 इंच से भी बड़ा। अब गौहर जान पर एक दिलचस्प अच्छी पुस्तक भी हाल ही में छपी है पर है अंग्रेज़ी में।