चौधरी गए- चौधरी आए, लेकिन किसी और की चली चौधराहट…

  • पंकज के ज़िम्मे यूपी में कमल खिलाना, लेकिन सरकार से तालमेल…?
  • कुर्मियों पर बीजेपी का बड़ा दांव, अब ब्राह्मणों को रिझाने की बारी
  • इनके पहले विनय कटियार, ओमप्रकाश सिंह और स्वतंत्र देव भी रह चुके हैं कुर्मी अध्यक्ष
भौमेंद्र शुक्ल
भौमेंद्र शुक्ल

राष्ट्रीय भाजपा की तर्ज़ पर जनसंख्या के लिहाज़ से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी अध्यक्ष पद के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) आलाकमान कोई चेहरा तय नहीं कर पा रहे था। लेकिन यकबयक पंकज चौधरी के नाम की चर्चा हुई और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंप भी दी गई। संगठन ने एक चौधरी का प्रभार दूसरे चौधरी को दे दिया। हालाँकि वो चौधरी जाट नेता थे और ये चौधरी कुर्मी समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं। चर्चा है कि इन दो चौधरियां को बनाने में देश के एक बड़े नेता की चौधराहट चली है। केंद्र में लगातार दूसरी बार बतौर राज्य मंत्री सरकारी काम-काज देख रहे पंकज चौधरी के कंधे पर कुर्मी मतदाताओं को बीजेपी के पक्ष में रिझाने की बड़ी ज़िम्मेदारी होगी। पंकज उत्तर प्रदेश के चौथे कुर्मी प्रदेश अध्यक्ष हैं, इनसे पहले ओमप्रकाश सिंह, विनय कटियार और स्वतंत्र देव सिंह यूपी भाजपा की अगुआई कर चुके हैं। ग़ौरतलब है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में सूबे के तक़रीबन सभी कुर्मी मतदाता समाजवादी पार्टी के साथ चले गए थे।

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वरिष्ठ पत्रकार मनोज श्रीवास्तव कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में 2027 का विधानसभा चुनाव लड़ने के लिये भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चयन में क्षेत्रीय संतुलन की बड़ी अनदेखी की है। लोकसभा चुनाव में कुर्मी बेल्ट से बीजेपी प्रत्याशियों की हुई हार से डरा नेतृत्व प्रदेश के नेतृत्व हेतु नया कुर्मी चेहरा उतार कर समाजवादी पार्टी के पीडीए से दो-दो हाथ करने का संदेश दिया है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महराजगंज में जीत तो मिल गई थी, लेकिन कुर्मी बाहुल्य लोकसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशी बड़े अंतरों से पराजित हुए थे। संतकबीर नगर, बस्ती, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर, अयोध्या, बाराबंकी, फतेहपुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाँदा-चित्रकूट, प्रयागराज, फूलपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, आँवला वह प्रमुख सीटें हैं जहां कुर्मी निर्णायक स्थिति में हैं।

वहीं वरिष्ठ पत्रकार अशोक सिंह राजपुत कहते हैं कि क़रीब एक दशक से पार्टी की राजनीति ओबीसी आधारित हो गई है। पंकज चौधरी के नामांकन में योगी आदित्यनाथ समेत जिस तरह से पूरी भाजपा उमड़ी थी, इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि प्रदेश अब ओबीसी मतदाताओं के हिसाब से चलेगा। पंकज को भी यूपी बीजेपी में बड़ा पद मिलेगा, इसकी छवि तभी दिख गई थी, जब स्वतंत्र देव सिंह प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार लखनऊ पहुँचे थे। तब एक गाड़ी पर पंकज चौधरी अपने दल-बल के साथ सवार थे और लोगों का अभिवादन स्वीकार रहे थे। बक़ौल राजपुत, पंकज चौधरी की कुर्मी समाज में लोकप्रियता ज़्यादा है। लेकिन वक़्त ही बताएगा कि चौधरी की अपने समाज में कितनी चौधराहट है।

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ग़ौरतलब है कि साल 1980 बीजेपी की स्थापना के बाद माधो प्रसाद त्रिपाठी बीजेपी के पहले प्रदेश अध्यक्ष थे। साल 2017 तक बीजेपी की कमान अधिकांश ब्राह्मण और क्षत्रिय नेताओं के हाथ में थी। लेकिन अब सभी पार्टियाँ ओबीसी को तवज्जो देने लगी हैं। डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय बीजेपी के आख़िरी प्रदेश अध्यक्ष हैं।

इटावा के बाद यूपी में चल रहा गोरखपुर का सिक्का

एक ज़माना था, जब सत्ता से लेकर संगठन तक इटावा का सिक्का चलता था। पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष भी इटावा से और मुख्यमंत्री भी इटावा से ही होता था। अब उसी राह पर गोरखपुर सरपट दौड़ रहा है। मौजूदा हालात में गोरखपुर सत्ता व संगठन का नया केंद्र बनता जा रहा है। यूपी के मुख्यमंत्री महंत आदित्यनाथ और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राधा मोहन दास अग्रवाल गोरखपुर से ताल्लुक़ रखते हैं। अब पार्टी आलाकमान ने पंकज चौधरी को अध्यक्ष बनाकर सरकार के साथ-साथ संगठन का अगुआ भी गोरखपुर को बना दिया। ग़ौरतलब है कि पंकज चौधरी गोरखपुर के निवासी हैं और महराजगंज लोकसभा क्षेत्र से सात बार लोकसभा की यात्रा कर चुके हैं। वो गोरखपुर के डिप्टी मेयर भी रह चुके हैं। शहर के बीचों-बीच उनकी ठंडे तेल की दो कम्पनियाँ लगी हुई हैं, जो पूर्वांचल समेत पूरे देश में बड़ा ब्रांड है।

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