मासिक कालाष्टमी 2025: आज 11 दिसंबर को मनाई जा रही साल की अंतिम कालाष्टमी एवं कालभैरव जयंती

राजेन्द्र गुप्ता

सनातन धर्म में कालाष्टमी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। वैदिक पंचांग के अनुसार यह व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह दिन काल भैरव को समर्पित होता है। काल भैरव भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। दरअसल भैरव के तीन रूप हैं काल भैरव, बटुक भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव। कालाष्टमी  के दिन इनमें से काल भैरव की पूजा की जाती है। कहते हैं कि इस दिन भगवान शंकर के काल भैरव स्वरूप की उपासना करने से जीवन की सारी परेशानियां दूर होती है। साथ ही काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। इस बार साल का अंतिम कालाष्टमी व्रत 11 दिसंबर को मनाया जाएगा।

कालाष्टमी तिथि 2025

वैदिक पंचांग के अनुसार दिसंबर में अष्टमी तिथि की शुरुआत 11 दिसंबर 2025, गुरुवार दोपहर 01:58 बजे होगी। वहीं इसका अंत  12 दिसंबर 2025, शुक्रवार सुबह 02:57 बजे होगा। इसलिए 2025 की आखिरी कालाष्टमी और कालभैरव जयंती 11 दिसंबर 2025, गुरुवार को मनाई जाएगी।

कालाष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त 2025

ज्योतिष पंचांग के मुताबिक कालाष्टमी पर अभिजीत का मुहूर्त बन रहा है। यह मुहूर्त 11 बजकर 54 मिनट से शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर खत्म होगा। इस बीच में आप पूजा- अर्चना कर सकते हैं।

कालाष्टमी पर जरूर करें इन मंत्रों का जाप

  1. ओम शिवगणाय विद्महे गौरीसुताय धीमहि तन्नो भैरव प्रचोदयात।।
  2. ओम कालभैरवाय नम:
  3. ओम भ्रां कालभैरवाय फट्
  4. धर्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्। द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये।।

कालाष्टमी धार्मिक महत्व

शास्त्रों के मुताबिक जो भी व्यक्ति पूरे दिन व्रत रखकर काल भैरव की पूजा- अर्चना करता है। उसके कष्ट बाबा काल भैरव हर लेते हैं। साथ ही काल भैरव की पूजा करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही अज्ञात भय खत्म होता है और गुप्त शत्रुओं का नाश होता है। वहीं काल भैरव की कृपा से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं, भय मिटता है और साधक को शक्ति, साहस व सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत शनि और राहु के बुरे प्रभावों को कम करने में भी सहायक माना जाता है।

कालाष्टमी पूजा विधि

कालाष्टमी व्रत के दिन भगवान काल भैरव की पूजा विधि में प्रातः स्नान और पूजा स्थल का शुद्धिकरण करने के बाद व्रत का संकल्प लें। पूजा में काल भैरव की मूर्ति या चित्र पर काले वस्त्र अर्पित कर, फूल, बेलपत्र, काले तिल, धूप, दीप और कपूर से पूजा करें। इसके बाद भैरव चालीसा का पाठ और “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। भगवान को मिष्ठान्न, पंचामृत और फल का भोग लगाकर आरती करें। इस दिन काले कुत्तों को रोटी या दूध खिलाना शुभ माना जाता है। व्रत का पारण अगले दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान देकर करें।

 

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