भाषा की पाठशाला : संसद् और परिषद् में अंतर

संस्कृत का शुद्ध शब्द संसद् है, जिसे हिन्दी में तद्भव रूप में ‘संसद’ भी लिखा जाता है। संसद् शब्द का अर्थ है– जहाँ सभी साथ-साथ बैठते हैं। [सम् + सद् = संसद् ]

‘सम्’ का अर्थ है, बराबर और ‘सद्’ का अर्थ है, बैठना, आसीन होना या वास करना। हम जानते हैं कि संसद् वह स्थान है, जहाँ हमारे सभी नीति-निर्धारक साथ-साथ बैठते हैं और देश हित में निर्णय(निर् + नय = निर्णय) लेते हैं। जो संसद् में बैठते हैं, वे सांसद, संसद्-सदस्य अथवा ‘संसत्सदस्य’ कहलाते हैं। ध्यातव्य है कि संसद सदस्य, संसद-सदस्य आदि शब्दानुशासन की दृष्टि से अशुद्ध हैं।

परिषद् : संस्कृत के अनुसार शुद्ध शब्द परिषद् है, जिसे हिंदी में तद्भव के रूप में परिषद भी लिखा जाता है। परिषद् शब्द का अर्थ है– विशेष रूप से बैठना। ‘परि’ उपसर्ग का एक अर्थ ‘विशेष’ होता है और ‘सद्’ का अर्थ– बैठना। इस आधार पर ‘परिषद्’ का अर्थ ‘विशेष लोगों के बैठने की जगह’ है। ‘विधानपरिषद्’ का अर्थ है– विधान बनाने के लिए परिषद् । भारत के कई प्रदेशों में विधान बनाने के लिए ‘विधानपरिषद्’ होता है। यह ऊपरी सदन होता है और इसमें विभिन्न क्षेत्रों के चुने हुए लोग जाते हैं और ‘पार्षद’ कहलाते हैं।

विशेष : जानना चाहिए कि संसद् की बैठक नहीं होती; संसद् का ‘अधिवेशन’ होता है। अधिवेशन और बैठक में एक अंतर यह है कि अधिवेशन बृहद् स्तर पर होता है, जो कई दिनों तक चलता है और जिसमें अधिक लोग प्रतिभाग करते हैं; जबकि बैठक सीमित स्तर पर कुछ समय (घण्टों या मिनटों) का जमावड़ा होता है, जिसमें कम संख्या में लोग भाग लेते हैं।

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बंदर,भालू,कुत्ता बिल्ली, सबको तो ठंडी है लगती। गाय भैस हाथी बकरी को, इनको भी तो ठंडी लगती।। पर इनकी मां ख्याल न करती। बिना किसी कपड़े के देखो। बाहर जाने को है कहती।। पर हमको स्वेटर पहना कर। मां बाहर जाने को कहती।। सुबह सांझ को ठंड बढ़ी है। दोपहरी में धूप सजी है।। दिन […]

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भोजपुरी व्यंग्यः विकास खातिर गदहन के जरूरत बा…

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