जीवन में रामत्व: केवल राम के आदर्शों को जीवन में शामिल करके आप बन सकते हैं सफल

  • राम का जीवन आम जनमानस के समक्ष ऐसे आदर्श के छाप, संदेश और उदाहरण से भरा हुआ है
  • बच्चों को राम के जीवन से राम के आदर्शों से प्रेरणा दें जिससे वो भारतीय होने पर गर्व कर सकें

ऋचा सिंह

वर्तमान में युवा और बच्चों को राम के जीवन से सीख लेनी चाहिए कि हमें स्वयं के जीवन, दूसरों के जीवन एवं समाज के लिए अच्छा करने के लिए नियम, धैर्य और अनुशासन के सदमार्ग का चयन करना चहिए है। आज युवाओं और बच्चों में धैर्य की कमी है, क्षणिक परिवर्तन से वह चिंता में आ जाते हैं , मनवांछित कार्य न होने पर कुंठा और तनाव का शिकार होजाते हैं यदि हम राम के जीवन से सीखें तो पाएंगे कि राम का राज्याभिषेक होने वाला था और जब पिता के वचन के लिए उन्हें वनवास जाना पड़ा उस स्थिति में भी वह स्थिति प्रज्ञ रहे। इससे आजकी पीढ़ी को सीख लेना चाहिए कि कैसे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना धैर्य के साथ करें।

आज बहुत सारी सामाजिक ,नैतिक, मानसिक समस्याओं से युवा और बच्चे भी ग्रसित हैं ऐसे में आवश्यकता है कि वह राम के जीवन आदर्शों को अपने जीवन में उतारें। आज जहां कई देश अपना क्षेत्रीय विस्तार करना चाहते है, पिता -पुत्र , भाई-भाई में संपत्ति को लेकर बंटवारे हो रहे हैं ,आपसी तनाव बढ़ रहे हैं वहीं जब मर्यादा पुरूषोत्तम राम के आदर्शों को देखते हैं। जहां राम लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रावण के भाई विभीषण को राजा बना कर राज लौटा देते हैं हम ऐसी भारत भूमि के हिस्सा हैं । राम का जीवन आम जनमानस के समक्ष ऐसे आदर्श के छाप, संदेश और उदाहरण से भरा हुआ है  जिससे ज्ञात होता है कि राम सिर्फ पूजनीय नहीं होने चाहिए ,जीवन में हमें रामत्व को धारण करते  हुए  धर्म के पथ का अनुगामी होना चाहिए । धर्म वही है जो सत्य के मार्ग का अनुसरण करते हुए उचित अनुचित का ध्यान रखकर अपने कर्तव्यों का मर्यादा के साथ  निर्वहन करें जिसका राम ने अपने संपूर्ण जीवन में निर्वाह किया ।

आज जब 500 वर्षों बाद रामलला  भव्य, दिव्य, नव्य मंदिर में विराजमान हुए हैं ऐसे में हर व्यक्ति जो राम में आस्था रखता है और राम उसके प्रेरणा के प्रतीक हैं उसे अपने जीवन में रामराज की परिकल्पना और मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन आदर्शों का पालन करना चहिए । रामराज की स्थापना से आशय किसी धर्म ,जाति या फिर विशेष समुदाय के राज करने से नहीं है बल्कि इसका आशय सबको एक सूत्र में पिरोकर ऐसे राज की स्थापना करना है जहां हर और प्रेम, शांति, सुख ,भाईचारा स्थापित हो। श्री राम को भगवान के रूप में पूजते हुए यदि हम उनके आदर्शों को जीवन में उतार लें तो सही मायने में यही राम की भक्ति और पूजा होगी।  राम जहां संबंध मूल्य , समरसता,और आदर्श के पर्याय थे वही वह वचन निभाने धर्म पालन करने से लेकर शत्रु से भी सीखने का भाव रखने वाले, जात-पात से ऊपर उठकर समाज को सीख देने वाले उत्तम पुरुष थे।

बच्चों को राम के जीवन से राम के आदर्शों से प्रेरणा दें जिससे वो भारतीय होने पर गर्व कर सकें और विश्व बंधुत्व का भाव रखकर अपने जीवन में रामत्व के मानवीय गुणों को धारण करे। रामत्व की प्राणप्रतिष्ठा अपने मन रूपी  मंदिर और जीवन में करें साथ ही राम के जीवन मूल्यों को स्वयं के जीवन में जीकर प्रमाणित करें, यही श्री राम की सच्ची पूजा और यही जीवन में रामत्व के भाव की प्रमाणिकता होगी ।

 

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