चले थे भारत जोड़ने! सफल हुये गांठें तोड़ने!!

के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

राहुल गांधी ने फिर सियासी इतिहास रच डाला। चार गैर भाजपायी राज्यों में उनके पादारबिंदु पड़ते ही सोनिया-नीत महागठबंधन दरकने लगा। दरार पड़ गई। वे सब अलग हो गए। “भारत जोड़ो” यात्रा भी फिस होती दिख रही है। इस यूरेशियन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष को शेक्सपियर की उक्ति याद आई होगी : “विपदा आती है तो अकेले नहीं, बहुसंख्या में।” बिहार सरकार की हिस्सा थी कांग्रेस कल तक, आज विपक्ष में है। बंगाल की ममता बनर्जी परसों तक साथ थी, अब एकल चलने पर तत्पर हैं। राहुल गांधी के पदार्पण होते ही आम आदमी पार्टी जो दिल्ली और पंजाब में सत्तारूढ़ है, महागठबंधन में साथ थी, अब टूट गई। आज उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी आंखें तरेर दी। कहा सभी सीटें लड़ेंगे। अर्थात राहुल गांधी ने एक साथ सवा सौ लोक सभा सीटें एक झटके में गवां दीं। हुगली से गंगा तक, यमुना और सतलुज तटों को मिलाकर, सारा भूभाग ही गंवा दिया।

पंचनद पंजाब दुखद रहा। समस्त 13 लोकसभाई सीटों पर अब भाजपा-विरोधी आम आदमी पार्टी से ही कांग्रेस की टक्कर होगी। कांग्रेस-शासित हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी का उद्गम है जो पंजाब आकर सतलुज में मिल जाती है। इसके सारे तटवर्ती संसदीय क्षेत्र भी अब राहुल की पहुंच से दूर हो गए। आम आदमी पार्टी के जबरदस्त विरोध के कारण। व्यास नदी के इलाके पंजाब कांग्रेस के कब्जे में आजादी के बाद कई दशकों तक रहे। हाल ही तक कप्तान अमरिंदर सिंह बहुत बड़े कांग्रेसी दिग्गज रहे, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के नामित मुख्यमंत्री थे। आजकल यह समस्त भूभाग आम आदमी पार्टी और भाजपाई हो गया। समीपस्थ व्यास नदी के तट पर ही कभी मुनि व्यास, देवऋषि नारद, गुरु विश्वामित्र, परशुराम, गुरु वशिष्ठ आदि ने तप किया था। उसी क्षेत्र को राहुल गांधी ने अब खो दिया।

आज गंगातट बिहार भी गया। हमसफर नीतीश कुमार की अनुकंपा छूट गई। राहुल गांधी ने पार्टी की बधिया बैठा दी। तोड़ने में कीर्तिमान रच दिया। गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र तट से वे चले थे देश जोड़ने। राहुल के महागठबंधन से दिग्गज जुड़े थे कि सत्ता झटकेंगे तो ED के आतंक से तो बचेंगे। अब सब सपना हो गया। जो गैर भाजपा पार्टियां लोकसभा सीटें जीतेगी भी तो वह अपने ही पैर दिल्ली में जमाएंगी। कांग्रेस को किनारे करेंगी। खेल सब सीटों की संख्या वाला है। अगर राहुल कभी अयोध्या गए, सरयू तट देखा और रामलला के दर्शन किए बिना लौट आए तो? उत्तर प्रदेश को 80 सीटों पर अभी इकलौती रायबरेली सीट पर मां सोनिया हैं। वह भी जाने वाली है। खुद अपनी और पितावाली अमेठी को राहुल गांधी हार चुके हैं।

याद रहे कभी 85 लोकसभाई सीटों पर (उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश साथ थे) एकाध सीट छोड़कर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के युग में कांग्रेस का पूर्ण वर्चस्व था। इस विरासत को राहुल ने गंवा दिया। अपनी अदूरदर्शिता के कारण, अक्षमता से। जीते तो भागकर सुदूर दक्षिण केरल के मुस्लिम-बहुल वायनाड से। मुस्लिम लीग के समर्थन से, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंदी को हराकर। आगामी चुनाव में कहां जाएंगे ? गठबंधन के प्रमुख दल माकपा ने राहुल को फिर केरल से प्रत्याशी बनने का विरोध कर दिया। यदि अमेठी लौटे तो निर्भर रहना पड़ेगा युवा समाजवादी अखिलेश यादव के रहमों करम पर। इसी बीच सुर्खियां थी कि अनुजा प्रियंका भी काशी से नरेंद्र मोदी को चुनौती देंगी। या फिर माँ की जगह अमेठी चुनेंगी ? भाई-बहन को रायबरेली और अमेठी की दादा फिरोज गांधी और दादी इंदिरा गांधी वाली विरासत को संवारना चाहिए। वर्ना उत्तर प्रदेश नेहरू-वंश विहीन हो जाएगा। नरेंद्र मोदी ने कौटिल्य चाणक्य की तर्ज पर नेहरू-परिवार के लिए यूपी अब बंजर बना दिया है। ऐसा उर्वरक भाई-बहन के पास है नहीं कि दोनों सीटें उनके लिए फिर उपजाऊ बनें। भविष्य किसने जाना?

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