ज्ञान यात्रा की प्रेरणा

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

देश की वर्तमान राष्ट्रपति और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल शिक्षिका रहीं हैं। विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों में इनके संबोधन शैक्षणिक द्रष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। इनसे विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता है।  राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया।  विश्विद्यालय के नाम से उन्होंने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया। इसे आजादी के अमृत महोत्सव से जोड़ कर रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि विश्विद्यालय का नाम महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ रखने के पीछे का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करना है। उन आदर्शों पर चलकर अमृत काल में देश की प्रगति में प्रभावी योगदान देना ही विद्यापीठ के राष्ट्र निर्माण संस्थापकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।असहयोग आंदोलन से जन्मी संस्था के रूप में यह विश्वविद्यालय हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सभी छात्र स्वतंत्रता संग्राम के राष्ट्रीय आदर्शों के ध्वजवाहक हैं। इस विद्यापीठ की यात्रा देश की आजादी से छब्बीस साल पहले गांधीजी की परिकल्पना के अनुसार आत्मनिर्भरता और स्वराज के लक्ष्यों के साथ शुरू हुई थी।

दो भारत रत्नों का इस संस्थान से जुड़ना महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की गौरवशाली विरासत का प्रमाण है। भारत रत्न डॉ. भगवान दास इस विद्यापीठ के पहले कुलपति थे और पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री इस संस्था के पहले बैच के छात्र थे। इस संस्थान के विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे शास्त्री जी के जीवन मूल्यों को अपने आचरण में अपनायें। वर्ष 2047 तक भारत को विकसित देश के रूप में स्थापित करने के राष्ट्रीय संकल्प को पूरा करने में विद्यापीठ के विद्यार्थियों और आचार्यों की भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका है. राष्ट्रपति ने कहा कि वाराणसी प्राचीन काल से ही भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र रहा है। आज भी इस शहर की संस्थाएँ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दे रही हैं। उन्होंने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्रों और शिक्षकों से ज्ञान के केंद्र की परंपरा को बनाए रखते हुए अपने संस्थान के गौरव को समृद्ध करते रहने का आग्रह किया।

राज्यपाल एवं कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने राष्ट्रपति का अभिनन्दन किया. उन्हें गरीब, कमजोर व महिलाओं के लिए आशा की किरण व प्रेरणा स्रोत तथा महिलाओं के सशक्तिकरण की मिसाल बताया।उन्होंने काशी को देश की सांस्कृतिक राजधानी बताते हुए काशी के उत्सव, गीत, संगीत आदि की भी चर्चा की। इस क्रम में राज्यपाल जी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए कहा कि इसके अंतर्गत मूल विषय, वैकल्पिक विषय और कौशल विकास के साथ नैतिकता तथा भारतीय ज्ञान परंपरा की शिक्षा को भी शामिल किया गया है, जिससे सामाजिक संरचना के नए प्रतिमान स्थापित होंगे।उन्होंने नव-प्रवर्तन के क्षेत्र में भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य के प्रयासों को सराहनीय बताया तथा भारत को शून्य, योग व आयुर्वेद का जनक बताया।राज्यपाल ने युवाओं को देश की अर्थव्यवस्था और विकास हेतु भविष्य का चालक बताते हुए कहा कि युवाओं को शिक्षा कौशल और मूल्यों के माध्यम से उत्पादक मानव संसाधन के रूप में परिवर्तित किया जाना चाहिए। मजबूत, जीवंत व समावेशी भारत बनाने के लिए सभी को समान रूप से मजबूत होना होगा।

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