शिक्षक का सम्मान कहां?

  • अभिभावक, शिक्षक,सरकार सबके लिए प्रश्नचिन्ह
  • अधिकांश प्राईवेट विद्यालय -महाविद्यालय धन उगाही मे लगे
  • कोचिंग सेटर्स की लाखों मे है फीस

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

कोटा मे एक और युवा ने आत्महत्या की सुन कर विचलित होगया। समाचार मे आगे लिखा है,इसके पूर्व 25कर चुके हैं। बहुत ग्लानि हुई। शिक्षक मन व्यथित होकर इसका जवाब तलाशने लगा। चौबीस घंटे मे अधिकांश समय बच्चा घर पर मां -बाप के संपर्क मे रहता है, स्कूल मे महज छ: घंटे की कालावधि में एक पीरियड या दो पीरियड एक शिक्षक के संपर्क मे रहता है। ऐसे में 6घंटे मे मात्र 45-90 मिनट,अर्थात एक से डेढ़ घंटा। शेष समय अभिभावक के पास या समाज में रहता है। छ: से सात घंटे सोता है। कुछ समय अपने आयु वर्ग में खेलता है। अभिभावक बच्चे को शिक्षक का सम्मान करना सिखाता था। शिक्षक बच्चे को मां बाप का सम्मान करना,उनकी आज्ञा का पालन करना और उन्हें प्रणाम कर स्कूल आने की नसीहत देता था।

इक्कीसवीं सदी मे हम डिजिटल ईंडिया मे चले गए। कितनी तरक्की होगई ? खुश होइये। आज टेबलेट,मोबाईल,लैपटाप ने उन्हें बांधलिया इसलिए एकांत तलाशने लगा। ऐसा बच्चा दुख -सुख, हार-जीत जानता नहीं। एसी मिला घर मे, एसी स्कूल मे और एसी उसे लेजाने वाली बस में मिला । गर्मी सहा नहीं,पसीना बहा नहीं।फिर धूप छांव समझ मे आए कैसे?पसीना बहाया नहीं इसलिए और भी नाजुक होता गया। प्राईमरी से उसे फेल करना आपने बंद कर दिया। सिर्फ प्रमोशन देना है। ऐसे मे हारना क्या है,उसे पता ही नहीं। शिक्षक डांट दे तो अमिभावक लड़ पड़ते हैं और थप्पड़ लगा‌दे तो उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होजाएगी। ऐसे बच्चे को युवक बनता देखिये और खुश होईये । अभिभावक अपने बच्चों को प्रतियोगिता के लिए लाखों खर्च कर बाहर भेजकर कोचिंग करा रहे हैं? क्या असफल होने पर वह तनाव ग्रस्त होकर डिप्रेशन मे नहीं आ जाएगा?? यह हालात कौन पैदा कर रहा है?

अब सरकारों ने सरकारी स्कूलों में नियुक्तियों के बजाय संविदा पर शिक्षक रखना शुरु किया है। अधिकांश प्राईवेट स्कूलो मे संविदा पर ही योग्य युवाओं को कम पैसे मे रख कर पढ़वाया जारहा है। जिसमे उनके परिवार के भरण पोषण के भी पेसे नहीं मिलते। उन संविदा शिक्षको के बच्चे केसे पढेंगे? कैसे परिवार मे बीमार माता पिता या बच्चो की दवा करायेंगे? इसकी फिक्र सरकार को‌ नहीं। प्रबंधको का यह हाल है ऐसे शिक्षको को छुट्टी मे भी बुलाकर छात्रो को लाने के लिए गांव गांव घुमाते हैं। साल दोसाल पढ़वाने के बाद वेतन न बढ़ाना पड़े,उन्है नोटिस थमा कर उनकी जगह कम वेतन मे दूसरा शिक्षक रख लेते हैं। ऐसे अपमानित होरहे शिक्षकों से शिक्षा की कौन सी गुणवत्ता हासिल करना चाहते हैं? इस पर कभी विचार किया? तनाव ग्रस्त शिक्षक जो भरपेट भोजन नही पारहा है ,उससे आपके पाल्यो को सुयोग्यता मिलेगी या हताशा? पूरा सिस्टम आप बिकलांग कर रहे हैं और भारत वर्ष की भावी पीढ़ी को संस्कारित और सर्वोत्कृष्ट देखना चाहते हैं? भला कैसे संभव है?

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