डंका प्रियंका का बज न सका! डमरू भी नगाड़ा बन न पाया!!

के. विक्रम राव 

मीडियाकर्मियों की फितरत ही है कि बात का बतंगड़ बनाएं। खाल निकाले बाल की। ठीक ऐसा ही हुआ गत 31 अगस्त को जब राहुल गांधी की दाईं कलाई खाली दिखी थी। उस दिन रक्षाबंधन था। बस कयास लगने शुरू हो गये। सगों में अनबन है। उधर प्रियंका ने आपात-प्रबंधन पर कदम उठाया। रक्षा बंधन के मौके पर इंस्टाग्राम पर भाई राहुल गांधी के साथ अपनी एक पुरानी झलक शेयर की। भाई-बहन की ये पुरानी तस्वीरें इंटरनेट पर छा गईं। एक स्नैपशॉट में, छोटी प्रियंका को राहुल के साथ खेलते हुए देखा जा सकता है। उनकी मुस्कान खुशी से चमक रही है। उधर भाजपा घात लगाए बैठी थी। उसने वीडियो जारी कर दिया।  कि राहुल गांधी और प्रियंका का रिश्ता एक आम भाई-बहन जैसा नहीं है। प्रियंका राहुल से तेज हैं, पर राहुल के इशारे पर ही पार्टी नाच रही है, सोनिया गांधी भी पूरी तरह राहुल के साथ हैं। घमंडिया गठबंधन की मीटिंग से प्रियंका का गायब होना यूं ही नहीं है। बहन का इस्तेमाल सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए किया जा रहा है। राहुल जिस तरह से इन बैठकों में बहन को दूर रखते हैं, उससे पता चलता है कि यहां पर जलन का मामला है।

अतः मुद्दा है कि ऐसी मां कहीं मिलेगी जो बेटी को बढ़ाये ? तो भला लगे। किन्तु गांधारी से सोनिया गांधी तक कोई दिखती नहीं। परिणाम राहुल गांधी हैं। अब घुड़दौड़ में टट्टू कैसे पार होगा ? इसीलिए भाजपा के वीडियो में दिखाया गया है ।  कि तकरार है राहुल और प्रियंका के बीच में। मां सोनिया और राहुल को पता है कि अगर प्रियंका गांधी को राजनीति में अवसर मिला तो पार्टी के सारे लोग उनकी तरफ हो जाएंगे।”
मगर प्रियंका कभी कम नहीं रहीं। याद आया प्रियंका की भाषण कला का प्रभाव ! तब 1999 में भाजपा के अरुण नेहरू रायबरेली से जीत रहे थे। स्व. राजीव गांधी के सखा सतीश शर्मा चौथे स्थान पर थे। युवा प्रियंका वहां पहुंचीं। वोटरों को याद दिलाया कि  अरुण नेहरू ने मेरे पिता के पीठ में छुरा भोंका था।” परिणाम आया। विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथी अरुण नेहरू हार गए।

कांग्रेस पार्टी में प्रियंका को माकूल महत्व न मिलने पर राजनीतिक विश्लेषकों ने अपना आंकलन किया है। मगर इतना तो लगता है कि हर मां बेटे को ही बढ़ाती है। क्योंकि बेटी तो अमानत है, पड़ोसी की बेल है। पराये घर की है। इस दकियानूसी अवधारणा को बलवती बनाने में प्रियंका की भूमिका भी थी। दिल्ली विश्वविद्यालय की यह मनोविज्ञान में स्नातक, बौद्ध अध्ययन की परास्नातक, प्रियंका ने निजी निर्णय किये, बिना राय लिए। मसलन विवाह। दिल्ली की एक महिला पत्रकार ने बताया कि प्रियंका ने एक मुंबइया फिल्म देखी थी। नाम था “राजा हिंदुस्तानी” जिसमें करोड़पति की बेटी करिश्मा कपूर अपने टैक्सी ड्राइवर आमिर खान से विवाह करती हैं। प्रियंका ने भी शादी कर ली। कितनी ऊंचाई थी वर की ? डंका तो बजा नहीं, नगाड़ा बस डमरू बनकर रह गया। वह तब मात्र 13 साल की थीं जब सहेली मिशेल के मार्फत उसके भाई रॉबर्ट से मुलाकात हुई, दोस्ती हो गई। जब विवाह का प्रसंग उठा तो अड़चन आई। रॉबर्ट वाड्रा के पिता स्व. राजेंद्र वाड्रा ने विरोध किया था। उन्हीं दिनों दैनिक “अमर उजाला” (10 जनवरी 2002) के संवाददाता की रपट प्रकाशित हुई। इसमें लिखा था : “कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के समधी राजेंद्र वाड्रा ने अपने बेटे रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी की शादी का विरोध किया था। वे नहीं चाहते थे कि उनके बेटे की शादी उस परिवार में हो जिस पर देश की सुरक्षा को दांव पर लगाये हुये बोफोर्स तोप सौदे में दलाली खाने का आरोप हो। इसके अलावा मेनका गांधी के साथ हुए सलूक की वजह से भी वे इस रिश्ते के खिलाफ थे। लेकिन अपनी पत्नी और बेटी के दबाव के चलते वे इस शादी के लिए राजी हो गये।

प्रियंका के पाणिग्रहण के पूर्व एक हादसा भी हुआ था। फिर एक सिरफिरे युवक ने दावा किया कि वह प्रियंका का पति है। मुकदमा चला दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में। तब 1997 में राजीव गांधी परिवार के मित्र प्रतिष्ठित अधिवक्ता ( नौ अक्टूबर 1927 में जन्मे) केशव परसरण ने मुकदमा लड़ा। पद्म विभूषण परसरण इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार के महाधिवक्ता भी रहे। मनोनीत सांसद थे। गत वर्षो में वे राम जन्मभूमि केस में मोदी सरकार के वकील थे।

फिलहाल प्रियंका गांधी पटना, बेंगलुरु और मुंबई में विपक्षी दल की बैठकों से दूर ही रखी गईं। पार्टी द्वारा उनकी लगातार उपेक्षा का उदाहरण 21 जनवरी 2022 का है। तब नई दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय पर यूपी चुनाव के लिए घोषणापत्र जारी करने के दौरान पत्रकारों ने उनसे पूछा कि यूपी में कांग्रेस की ओर से सीएम का चेहरा कौन होगा? प्रियंका ने कहा : कि क्या आपको उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से कोई और चेहरा दिख रहा है ?” नतीजा आया। यूपी विधानसभा में कांग्रेस को मात्र दो सीटें मिली थीं। प्रियंका का नारा रहा : “लड़की हूं लड़ सकती हूं।” उन्होंने 42 रोड शो किए और 162 रैलियां की। फिर भी यूपी पार्टी अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू हार गए। वोट प्रतिशत 6.20 से घटकर 2.38 रह गया। हालांकि दिनभर उन्होंने वाल्मीकी आश्रम में दलितों के आंगन में झाड़ू लगाया था। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था ( तीन अक्टूबर 2021) कि योगी आदित्यनाथ से बेहतर चुनावी चेहरा प्रियंका हैं। प्रत्युत्तर में जेपी नड्डा ने बताया : “प्रियंका राजनीतिक पर्यटक हैं।” ज़ोर देकर प्रियंका ने कहा भी था : “मोदी से अधिक कमजोर पीएम नहीं हुआ।” (10 मई 2019)। फिर भी उदयपुर में (15 मई 2022) कांग्रेस नव संकल्प शिविर में प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाने की पुरजोर मांग उठी थी। अब एक आस की किरण बनी है। सोनिया बुढ़ापे के कारण चुनाव से हट जाएं तो प्रियंका रायबरेली से प्रत्याशी हो सकती हैं। क्या गुल तब खिलेगा ? अग्रज राहुल सहमत होंगे?

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