‘ज्ञानवापी’ हो सकती है 2024 की प्रयोगशाला?

डॉ. ओपी मिश्र

भारतीय जनता पार्टी तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व को यह एहसास हो चुका है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में 2019 की पुनरावृत्ति किसी भी लिहाज से नही होने वाली है। यानि 2019 में भाजपा का 303 का जो स्कोर था वह 2024 में किसी भी लिहाज से वापस आने वाला नहीं। यही कारण है कि कुछ समय पहले तक 2050 तक हम जाने वाले नहीं की बात करने वाले अब एक मौका और दीजिए कि बात करने लगे हैं। इतना ही नहीं संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ ने भी पिछले दिनों अपनी संपादकीय में लिखा था कि “केवल एक चेहरे की बदौलत 2024 फतेह नहीं किया जा सकता”। यूपी ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन ने भी जून माह में किए गए अपने एक सर्वेक्षण में लगभग 7 से 8 सीटें उत्तर प्रदेश में कम होने तथा 3.2 प्रतिशत वोट भाजपा से खिसकने की आशंका व्यक्त की थी। वैसे यह केवल आशंका है जो तमाम मतदाताओं से बात करने के बाद निकल कर आयी है। राजनीति में अंत समय में ऊंट किस करवट बैठ जाएगा कहा नहीं जा सकता। क्योंकि संघ और भाजपा दोनों ग्राउंड लेवल की हकीकत जानते हैं इसलिए उन्होंने अभी से अपना एजेंडा सेट करना शुरू कर दिया है।

संघ और भाजपा को यह भी पता है कि 80 बनाम 20 या बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जो ‘जातीय अंकगणित’ को आसानी से फेल कर सकता है। वैसे तो समाज विभिन्न जातियों में बटा है और मतदाता भी जातीय हितों को ध्यान में रखकर मतदान करता है। लेकिन जब बात बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की आ जाती है तो वह जातियों में बटने के बजाय एकजुट हो जाता है। यही भाजपा और संघ परिवार चाहता है। 2024 के चुनाव को भाजपा पूरे देश में बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक के मुद्दे पर लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है। क्योंकि अब सत्तारूढ़ दल से सवाल नहीं किए जाएंगे, उसकी मेरिट और डिमैरिट पर चर्चा नहीं की जाएगी, भ्रष्टाचार पर चर्चा नहीं होगी, अडानी पर चर्चा नहीं होगी, संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किए जाने पर चर्चा नहीं होगी और ना ही इस बात पर चर्चा होगी कि पिछले 9 सालों में महंगाई कितनी बढ़ी, बेरोजगारी कितनी बढ़ी , अपराध कितने बढ़े। वह भी डबल इंजन की सरकार वाले राज्यों में । नौकरियां कितनो की गयी और कितनो को मिली।

इस पर भी चर्चा नहीं होगी। चर्चा होगी तो सिर्फ हिंदुत्व पर, चर्चा होगी तो सिर्फ बहुसंख्यको पर, चर्चा होगी तो अयोध्या में भव्य राम मंदिर पर और इसी के साथ चर्चा होगी ज्ञानवापी पर। ऐसे में अगर मैं यह कहूं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में ज्ञानवापी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है तो गलत नहीं होगा। क्योंकि तब जातीय अंकगणित के सारे बैरियर स्वतः ध्वस्त हो जाएंगे और हिंदू मतदाता ज्ञानवापी मे मंदिर तलाशने की चाह में कमल का बटन खुशी-खुशी दबा देगा । क्योंकि ऐसा करने से उसका ‘ईगो’ संतुष्ट होगा। आपको याद होगा कि इसी हफ्ते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि “अगर आप ज्ञानवापी को मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा”। उन्होंने आगे कहा था कि ईश्वर ने जिसको दृष्टि दी है वह खुद देखें कि त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा है? मतलब बिल्कुल साफ है कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर है। अब जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे पर लगी रोक हटा दी है तो इसका लाभ यकीनन चुनाव में भाजपा लेना चाहेगी।

यह अलग बात है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है। लेकिन इससे भाजपा के एजेंडे पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। वह इसे चुनाव में आसानी वोटो में बादल सकेगी और बहुसंख्यक समाज को गोलबंद कर सकेगी। तभी तो भाजपा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा है कि “यह करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक है”। यही बात विहिप, संघ तथा भाजपा ने भी अयोध्या के राम मंदिर के बारे में भी कहा था कि वह आस्था का प्रतीक है। इसी के साथ ही अब यह भी कहा जा रहा है कि ऐतिहासिक वास्तविकता को स्वीकार किया ही जाना चाहिए । इसी तरह की बातों से यह स्पष्ट होता है कि सवाल यह नहीं है कि अदालत इस मामले में क्या करेगी? क्या कहेगी? क्या फैसला देगी? सवाल यह है कि क्या अदालत के बाहर जन भावनाओं के जरिए 2024 का लोकसभा जीतने के लिए ‘फैसले’ की जमीन पुख्ता होने लगी है।

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