कानून-व्यवस्था: वर्चस्व की जंग में पहले भी बहा खून

कभी बीच सड़क पर, कभी जेल के भीतर तो कभी भरी अदालत में हुई गोलियों की बौछार


ए अहमद सौदागर


लखनऊ। यूपी में अपराधियों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि कत्ल जैसी जघन्य वारदात को अंजाम देने में नहीं हिचक रहे हैं। बीच सड़क पर, जेल के भीतर तो कभी सरेराह हत्या हो रही है। माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ़ की हत्या के बाद बुधवार को राजधानी लखनऊ की अदालत में माफिया मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ मानें जाने वाले कुख्यात बदमाश संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा के शरीर में गोलियों की बौछार कर मौत की नींद सुला दिया गया। अतीक और अशरफ़ की हत्या जहां पुलिस अभिरक्षा में हुई तो जीवा को भरी अदालत में गोलियों से भून दिया गया। यह तो बानगी भर है इससे कुछ साल पहले की बात करें तो ठीक इसी तरह की मुजफ्फरनगर कोर्ट रूम वकील के भेष में ही कुख्यात विक्की त्यागी की हत्या कर दी गई थी।

बदमाश सागर मलिक ने विक्की त्यागी की हत्या 16 फरवरी 2015 को कर दी थी। वर्ष 2018 में नौ जुलाई को बागपत जेल में बंद माफिया प्रेमप्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। खास बात यह है कि मुन्ना बजरंगी की जान गई किसी सन्नाटे में नहीं बल्कि उस जेल परिसर हुई, जहां हर समय पुलिस बल तैनात रहता है। बात अपराधियों के बोलबाला की करें तो पुलिस अभिरक्षा में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ़ की हत्या को करीब दो महीने बीते थे कि पुलिस अभिरक्षा में ही जीवा की हत्या कर बदमाशों ने पुलिस प्रशासन को खुली चुनौती दे डाली। इससे साफ है कि सफ़र गोली से शुरू होता है और आखिरी में गोली पर ही खत्म होता है। जयराम की दुनिया में कदम रखते ही यह इबारत पहले ही लिख जाती है कि कोई कितना भी खूंखार माफिया या पेशेवर अपराधी क्यों न हो उसका अंत पुलिस या फिर अपने की ही गोली से होता है। पुलिस हिरासत या अदालत में इस तरह की संगीन मामले होना कोई नई बात नहीं है। इस तरह की घटनाओं से जेलों में दुर्दांत अपराधी माफिया अब सुनवाई के लिए कोर्ट आने के बजाए वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेश होने में अपने को अधिकतर सुरक्षित समझ रहे हैं।

,,, इससे पहले भी अपराधियों में खूब हुई गैंगवार,,,,

इससे पहले सूबे की जेलों में भी कई गैंगवार हुए, जिसमें दुर्दांत अपराधियों को अपने ही लोगों की गोलियों का निशाना बनना पड़ा। माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ़ से लेकर मुन्ना बजरंगी तक की हत्या में अपराध की दुनिया से जुड़े लोग ही शामिल थे। कुख्यात संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा को जिस शख्स ने गोलियों से भून डाला उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं बताया जा रहा है। कोर्ट रूम और जेल में गैंगवार की घटनाओं की कड़ी में 14 मई साल 2021 को चित्रकूट जिला जेल में बदमाश अंशु दीक्षित ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दो नामी-गिरामी कुख्यात बदमाश मुकीम काला और मेराज को मौत की नींद सुला दिया था। किसी समय पूर्वांचल में श्रीप्रकाश शुक्ला का जरायम की दुनिया में तूती बोल रही थी। उसने महाराजगंज के लक्ष्मीपुर के दबंग छवि और आपराधिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक पूर्व विधायक वीरेंद्र शाही को राजधानी लखनऊ में 31 मार्च 1997 को गोलियों से भून दिया था।

हालांकि बाद में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी लेने के बाद 22 सितंबर 1998 को उसे नोएडा में मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया। पूर्वांचल के दूसरे माफिया मुन्ना बजरंगी अपराध की दुनिया में हाथ आजमाना चाहता था। उसने जौनपुर में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव भी लड़ा था। उसके माननीय बनने का सपना अधुरा ही रहा। उसकी नौ जुलाई 2018 को बागपत जेल में हत्या कर दी गई थी। उसकी हत्या करने का आरोप जेल में बंद कुख्यात बदमाश सुनील राठी पर लगा। यह तो बानगी भर और भी कई सूचीबद्ध बदमाशों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

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