क्या गुल खिले दलित-मुस्लिम जोड़ से यूपी में !

के. विक्रम राव
              के. विक्रम राव

चौथे लेख ‘‘दलित मुस्लिम गठबंधन का प्रयास‘‘ में बृजलाल जी निजामी रियासत का भयावह चित्र पेश करते हे कि कैसे केवल 15 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले हैदराबाद में हिन्दुओं को ही अल्पसंख्यक बनाने की सामंती साजिश मजलिस ने रची थी। वे लिखते है (पृष्ठ संख्या 104) कि: हैदराबाद के निजाम की हिन्दुओं के प्रति क्या सोच थी, उसे इस बात से समझा जा सकता है जब वह कहता था- ‘‘सुनके नारा-ए-तकबीर, जलजला आ ही गया तारे- जुनार पर।‘‘ जिसका अर्थ है- नारा-ए-तकबीर सुनकर ही काफिरों के जनेऊ पर खतरा उत्पन्न हो जाता है। हैदराबाद रियासत से अन्य संस्कृतियों को समाप्त करने और इस्लामीकरण करने के अपने उद्देश्य से निजाम ने इस क्षेत्र में बोली जाने वाली तेलुगू और मराठी भाषाओं पर बहुत से प्रतिबन्ध लगा दिये थे और उनके स्थान पर उर्दू को थोप दिया था। उर्दू को रियासत के सभी स्कूलों में पढ़ाया जाना अनिवार्य कर दिया गया था। हैदराबाद रियासत में गैर-मुसलमानों को छल-बल से मुसलमान बनाने के लिए दीन-दार – अंजुमन नामक एक संगठन भी बनाया गया था। इतना ही नही, 1938 में वंदे मातरम गायन और उस्मानिया युनिवर्सिटी में धोती कुर्ता पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। करीब 350 छात्रों को उस्मानिया युनिवर्सिटी से इसलिये निलम्बित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने वंदे माररत् गायन में भाग लिया था। निलम्बित छात्रों में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव भी थे।‘‘

भारत को गजवा-ए-हिन्द में परिवर्तन करने के षडयंत्र का भेद बताते बृजलाल पूर्वोत्तर भारत का चित्र पेश करते हैं। इसमें रोहिंग्या घुसपैठियों का उल्लेख भी है। वे कहते हैं: ‘‘यह घुसपैठ केवल आज से नही, सुनियोजित ढंग से 1940 से थी। उसी दशक से शुरू हुई थी। असम राज्य बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन था। बंगाल प्रेसीडेंसी के प्रधानमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी ने बंगाल के मुसलमानों को ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों ओर 5 कि.मी. क्षेत्र में बसाना शुरू किया। सुहरावर्दी की दलील थी कि बंगाल के मुसलमान मेहनती है और वे असम में ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों किनारों के क्षेत्र में धान की फसल पैदा करके अनाज का उत्पादन बढ़ायेंगे। अपनी दूसरी पठनीय रचना ‘‘इंडियन मुजाहिदीन‘‘ में बृजलालजी ने बताया यूपी में समाजवादी सरकार के दौरान कैसे इस्लामी आतंकवाद को शासकीय संबल मिला। वे लिखते है: अखिलेश यादव सरकार ने तुरन्त कचहरी ब्लास्ट के आतंकवादी खालिद मुजाहिद और हकीम तारिक कासमी के मुकदमें वापस लेने का फैसला ले लिया, परन्तु बाराबंकी जिला एवं सत्र न्यायालय द्वारा उस पर रोक लगा दी गयी।‘‘

मायावती द्वारा द्वारा तुष्टिकरण हेतु न्यायमूर्ति आरडी निमेष आयोग बनाया। तभी बृजलालजी पहले अपर डीजीपी नियुक्त हुये थे। वे कहते है: ‘‘मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के तहत ‘‘निमेष आयोग‘‘ को बढ़ा दिया। आयोग में मन माफिक रिपोर्ट के लिए, जज आरडी निमेष को ‘‘टप्पल आयोग‘‘ का भी अध्यक्ष बना दिया गया।‘‘ इन दोनों किताबों को पढ़ने के बाद दोनों मुख्य मंत्रियों (दलित मायावती और समाजवादी अखिलेश यादव) द्वारा यूपी में घृणित, जातिगत, सांप्रदायिक राजनीति द्वारा प्रदेश को धधकने में विवश कर दिया। चूंकि लेखक स्वयं चालक सीट पर बैठे वारदाताओं को देख रहे थे, अतः पूरा विवरण विश्वसनीय है, साक्ष्य के साथ है। अपने प्राक्कथन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रभावी तौर पर लिखा भी है कि ‘‘यह पुस्तक आतंकवादी संगठनों के तंत्र एवं गतिविधियों को समझने के उद्देश्य सामान्य जन के लिये महत्वपूर्ण है। पुलिस अधिकारियों और पुलिस संगठन के लिये भी यह साक्ष्यों की दृष्टि से संग्रहणीय हो सकती है।‘‘ वर्तमान राजनीति के अध्येताओं के लिये मेरी राय में दोनों पुस्तकें लाभकारी सिद्ध होंगी।

K Vikram Rao
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