भोपाल गैस त्रासदी मामले में ‘सुधारात्मक याचिका’ पर आगे की सुनवाई चाहता है केंद्र

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष कहा कि 1984 के भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए 2010 में दायर उसकी सुधारात्मक याचिका पर आगे की सुनवाई की जाए। शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई 20 सितंबर को सरकार से पूछा था कि वह इस मामले को आगे बढ़ाना चाहती है या नहीं। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति  JK माहेश्वरी की पीठ के समक्ष अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि यह (Bhopal gas incident) एक त्रासदी है जो हर रोज सामने आती है। ऐसे में पीड़ितों को छोड़ा नहीं जा सकता है।

उन्होंने न्यायमूर्ति कौल वाली पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष कहा, कि इस मामले को फिर से खोलने में कई चुनौतियां हैं, लेकिन हम पीड़ितों को नहीं छोड़ सकते, क्योंकि त्रासदी हर दिन सामने आ रही है। वेंकटरमणि ने कहा कि सरकार अपनी सुधारात्मक याचिका पर आगे बढ़ना चाहती है। इसके लिए जरूरी दस्तावेजों का अध्ययन किया गया है। पीड़ितों का पक्ष रखने वाली अधिवक्ता करुणा नंदी ने अटॉर्नी जनरल के इस सुखद बयान की सराहना की और तर्क देते हुए कहा कि मामले में अदालत के निष्कर्ष पर आने से पहले पीड़ितों को अपना पक्ष रखने का एक अवसर दिया जाना चाहिए। नंदी ने कहा कि इस मामले में पहले दीवानी पहलू, फिर आपराधिक पहलू और फिर मामले की जांच होनी चाहिए।

यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के वकील ने एनजीओ के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया। शीर्ष अदालत इस मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह के बाद करेगी। साल 2010 में दायर अपनी उपचारात्मक याचिका में केंद्र ने तर्क दिया था कि 1989 में निर्धारित मुआवजे का निर्धारण वास्तविक सच्चाई से अलग था। अदालत ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (अब डॉव केमिकल्स कंपनी, US की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी) को नोटिस जारी किया था।

 

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उच्चतम न्यायालय ने 20 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करने के लिए 11 अक्टूबर तक का समय दिया था कि क्या वह मुआवजे में वृद्धि के लिए पहले दायर की गई अपनी सुधारात्मक याचिका को आगे बढ़ाना चाहती है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को 11 अक्टूबर तक इस मामले में सरकार से निर्देश लेने की अनुमति दी। केंद्र सरकार ने 2010 में दायर अपनी उपचारात्मक याचिका में तर्क दिया था कि 1989 में निर्धारित मुआवजे का निर्धारण वास्तविकता तथ्य से अलग की धारणाओं पर किया गया था।

यूनियन कार्बाइड कंपनी ने पीड़ितों के बीच मुआवजे के तौर 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर वितरित की थी। सरकार ने 2010 में उस कीटनाशक कंपनी से (7,400 करोड़ रुपये) वितरित की गई राशि से अधिक की अतिरिक्त धनराशि मांगी है। पिछली सुनवाई पर पीड़ितों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने दावा किया था कि त्रासदी की स्थिति पीड़ितों की संख्या और वर्षों में चोटों और मौतों की संख्या पांच गुना बढ़ी है। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि वह इस मामले में केंद्र सरकार के रुख का इंतजार करेगी। इसके अलावा वह इस पहलू पर भी विचार करेगी कि क्या मुआवजे की मात्रा में बदलाव होता रहेगा। कंपनी की ओर से पेश वकील ने दलील पेश करते हुए कहा था। कि मुकदमे को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए क्योंकि समीक्षा याचिका पर फैसला होने के 19 साल बाद सुधारात्मक याचिका दायर की गई थी।  (वार्ता)

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