- पढ़ाई का तनाव या फिर जोर जुर्म बन रहा जान देने का कारण
- कहीं ऑनलाइन गेमिंग को लेकर तो कहीं दिमागी बोझ बढ़ा रही जान देने की प्रवृति
- सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही श्रया भी शायद किसी बोझ तले थी और हमेशा के लिए खत्म कर ली ज़िन्दगी
ए अहमद सौदागर
लखनऊ। बड़ों बुजुर्गों पर किसी न किसी तरह का बोझ होता है, घर-परिवार को चलाने के लिए वह हार नहीं मानते। उनकी ख्वाहिश होती है कि हम तो किसी तरह गुजर-बसर कर लेंगे, लेकिन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में किसी तरह का कोई बाधा न पड़े लिहाजा जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई लगा देते हैं कि बेटा बिटिया भविष्य में कुछ कर माता-पिता और गांव-जवार का नाम रोशन करेंगे। साल-दर-साल जान देने का मामला सिलसिलेवार चल रहा है खास कर नई उम्र के बच्चों में। खुदकुशी किए जाने के मामले लगातार बढ़ रहें हैं। इससे यही लग रहा है कि माता-पिता और बेटा बिटिया एक दूसरे पर भरोसा नहीं जता पा रहे हैं।
एक-दूसरे में जुड़ाव के कमी महसूस करना, अकेलापन या फिर भौतिकता की ओर बढ़ते समाज ने लाडलों और लाडलियों को कमजोर कर दिया है। चिनहट क्षेत्र के कंचनपुर मटियारी गांव से सटे पीतांबरा बाजार में रहने वाले संजय कुमार हौसले के साथ अपनी बिटिया श्रया को पढ़ा-लिखा रहे थे। माता-पिता की हौसला बढ़ाते हुए 24 वर्षीय श्रया पढ़ते-पढ़ते इस मुकाम तक पहुंच गई और वह सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी, लेकिन इसी बीच उसके ऊपर कौन सा बोझ पड़ा कि वह झेल न सकी और शुक्रवार की रात कमरे में पंखे के कुंडे के सहारे लटक कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है इससे पहले भी कई छात्र-छात्राएं आत्महत्या कर चुके हैं। पुलिस की जांच-पड़ताल में सामने आते रहते हैं कि किसी ने पढ़ाई के तनाव में तो कोई ऑनलाइन गेमिंग खेल को लेकर तो कोई किसी के द्वारा छलावा होने पर खुदकुशी कर ली। जबकि हर उन माता-पिता की हसरत होती है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर कुछ बनें, उनकी एक ग़लती हमेशा के लिए मां-बाप को एक टीस सी उठती रहती है कि कौन सी खता हुई कि आज उनके बीच उनका लाडला और लाडली नहीं हैं। वह अंदर ही अंदर सिसकियां भरकर अपने बच्चों की यादें समेट लेते हैं।
