- वैसे आमपना और हरामीपना के लिए मशहूर है कानपुर
आशीष द्विवेदी
कानपुर। आमतौर पर कहा जाता है कि फलाने के यहां बच्चा हुआ पर कानपुर इस मामले में मामला थोड़ा अलग है। यहां के लिए कहा जाता है कि कानपुर में बच्चा नहीं लौंडा(लड़का) पैदा हुआ है। लड़की होने पर ही कुछ इससे मिलता जुलता संबोधन होता है। इस शहर को दूसरों से हटकर ऐसे ही नहीं कहा जाता है बल्कि यहां के लोगों का अंदाज ही ‘ कनपुरिया ’ है। यहां गालियां गुस्से में नहीं बल्कि खुश होने पर भी दी जाती हैं और दिलचस्प बात ये है कि सामने वाला भी इन गालियों का जवाब भी ‘ कनपुरिया ’ अंदाज में देता है।
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अब कोई यकीन मानें या न मानें पर एक शोध में कानपुर को लेकर कुछ ऐसा ही दिलचस्प खुलासा हुआ है। मजाक हो या गुस्सा बिना गाली बात पूरी नहीं होती। बोलचाल की भाषा में गालियों का पुट होना कनपुरिया अंदाज-ए-गुफ्तगू है। खुश रहने में जहां कानपुर वाले देश में टॉप पर है तो गाली देने में भी प्रदेश में अव्वल हैं। महर्षि दयानंद विवि रोहतक और शेल्फी विद डॉक्टर्स का भाषा सर्वे इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल है। इसमें कानपुर को गाली बकने में अव्वल बताया गया है।
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इतना ही नहीं कानपुर की अपनी कुछ खास गालियां भी हैं जिनका इस्तेमाल स्थानीय स्तर पर अनौपचारिक बातचीत में खूब चलता है। लोग कहते हैं कि कहीं बाहर भी जाएं तो इन शब्दों से कनपुरिया होने की पहचान हो जाती है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर डॉ. धनंजय चौधरी कहते हैं कि खासतौर पर मेनिया प्रभावित व्यक्ति गाली बकता है। न्यूरो ट्रांसमीटर का बैलेंस बिगड़ता है तो व्यक्ति गाली देता है। इसके अलावा समाजीकरण की शुरुआती प्रक्रिया में व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक स्थिति अपडेट होती है। गाली वाला व्यवहार उसके माइंडसेट में आ जाता है।
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