- ठेंगापाली परंपरा से उजाड़ भूमि पर लौटी हरियाली, गांववाले बारी-बारी से कर रहे चौकीदारी
हेमंत कश्यप
जगदलपुर । 85 साल के दामोदर कश्यप ने उजड़े जंगल को फिर से आबाद कर साबित कर दिया कि जज्बा उम्र का मोहताज नहीं होता। उनकी ठेंगापाली परंपरा से 400 एकड़ में हरियाली लौट आई है। जहां कभी कुल्हाड़ी गूंजी थी, वहां अब परिंदों का कलरव और पेड़ों की छांव जीवन बिखेर रही है। जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़–ओडिशा की सीमा पर बसा है संध करमरी गांव। 12 वार्ड और करीब 4500 की आबादी वाले इस गांव में रहते हैं दामोदर कश्यप। मेट्रिक पास करने के बाद उन्होंने 1976 से 2009 तक लगातार 33 साल सरपंच की जिम्मेदारी निभाई। करीब 37 साल पहले वन विभाग ने ग्रामीणों की राय लिए बिना जंगल के पुराने पेड़ काट दिए। आक्रोशित ग्रामीणों ने भी गुस्से में समूचे जंगल का सफाया कर दिया। यह नजारा दामोदर कश्यप को भीतर तक झकझोर गया। तभी उन्होंने ठान लिया कि उजड़े जंगल को फिर से खड़ा करना है।
ठेंगापाली’ बनी मिसाल
दामोदर कश्यप ने गांव में ‘ठेंगापाली’ नाम की परंपरा शुरू की। उन्होंने तेंदू की लाठी को देववत की तरह सजाकर नियम बनाया कि हर परिवार बारी-बारी से जंगल की रखवाली करेगा। जिस घर की बारी होती, वहां के सदस्य सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक ठेंगापाली लेकर चौकीदारी करते। यह परंपरा पिछले 35 सालों से लगातार चल रही है। हर घर इस जिम्मेदारी को निभाता है और गर्व महसूस करता है।
उजाड़ से हरियाली तक
गांववालों के इस सामूहिक प्रयास ने बिना किसी सरकारी मदद के 300 एकड़ उजाड़ जंगल को फिर से खड़ा कर दिया। ग्रामीण इसे प्यार से ‘बाढ़ेला बन’ यानी बढ़ाया जंगल कहते हैं। इतना ही नहीं, दूसरी ओर अतिक्रमित वन भूमि को भी दामोदर कश्यप ने ग्रामीणों को समझाकर खाली कराया। वहां 100 एकड़ में नया जंगल तैयार हुआ, जिसे ‘मावली कोट’ नाम दिया गया। बीते 40 साल में यह इलाका घने जंगल में बदल चुका है।

नई पीढ़ी के लिए संदेश
आज संध करमरी गांव के लोग गर्व से कहते हैं कि उनका जंगल उनकी पहचान है। दामोदर कश्यप की जिद और जज्बे ने गांव को उजाड़ से हरियाली में बदल दिया। 85 साल का यह बुजुर्ग आज भी यही कहता है— “जंगल बचाओ, जंगल ही हमें बचाएगा।”
ठेंगापाली परंपरा : हरियाली की पहरेदारी
गांव का नाम: संध करमरी (जगदलपुर से 50 किमी दूर)
जनसंख्या: करीब 4,500
दामोदर कश्यप की उम्र: 85 वर्ष
सरपंच कार्यकाल: 33 साल (1976–2009)
ठेंगापाली परंपरा की शुरुआत: 35 साल पहले
संरक्षित क्षेत्रफल
बाढ़ेला बन : 300 एकड़
मावली कोट : 100 एकड़
कुल हरियाली क्षेत्र: 400 एकड़।
