- आजादी के संघर्ष में लेखक का योगदान
- आम लोगो की पीड़ा कहानी और उपन्यास मे
- विद्रोह के स्वरो का चितेरा

डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी- आजादी के पूर्व अंग्रेजो के शासन काल में या संस्कृत पाठशालाओं मे पढ़ाई थी,या परिषदीय विद्यालयो मे हिंदी मिडिल,उर्दू मिडिल चलता था। उच्च शिक्षा के लिए लंदन पढ़ने जाना पड़ता था। जहां कुछ ही धनवान संपन्न परिवारो के बच्चे जा पाते थे। धनपत राय भी इन्ही भारतीयो मे से। स्कूली शिक्षा पूरी कर राजकीय विद्यालय मे शिक्षक बने, बाद मे पदोन्नति कर एसडीआई बन गए थे। अंग्रेजो का खौफ था,सरकारी कर्मचारी हो या अधिकारी.. कुछ भी लिखते सरकारी अधिकारियो की नजरो से उसे गुजरना पड़ता था। दूसरी तरफ छोटे छोटे राजा थे उनकी रियासतें थी। बड़े राजा बहुधा अंग्रेजों के गुलाम थे। उनको राय बहादुर आदि की उपाधियो से नवाजा जाता था।
1918 मे अफ्रीका में प्रवासी भारतीयो को उनका हक दिलाने के लिए गांधी के सत्याग्रह की सफलता से प्रभावित होकर उनके भारत लौटने के बाद मोहनदास कर्म चंद गांधी को शीर्ष नेतृत्व ने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व सौंप दिया। गांधी के आंदोलन अंग्रेजो को देखने मे महत्वहीन लगते। परंतु उसकी सफलता चौंकाने वाली होती। जिससे आम जनता पर तेजी से असर होरहा था। धनपत राय का युवा मन भी आंदोलन मे भाग लेने के लिए फड़फड़ाता, किंतु सरकारी नौकरी में यदि भनक भी मिल जाय कि किसी आंदोलन का समर्थन या भागीदारी की है तो नौकरी चली जाती। परिणाम स्वरूप धनपत राय ने छद्म नाम #प्रेमचंद रख कर कहानी और उपन्यास लिखना शुरू किया। गरीब मजदूर किसानों को व्यापारी या जमींदार व्याज पर पैसे देते,या काश्त कार की जमीन को गिरवी पर रख कर पैसे देते या बेंग पर बीज देते और फसल आने पर पैसे का व्याज या फसल की बेंग सहित वसूली करते थे। जमींदारो के आदमी व्याज वसूली या खेती का अनाज लेने मे या सरकार राजस्व वसूलने मे सख्ती बरतते। समय पर भुगतान न कर पाने पर प्रताड़ित करते थे। गिरवी पर रखी जमीन व्याज सहित मूलधन न चुका पाने पर हड़प लीजाती थी। यह दृश्य प्रेमचंद को व्यथित करता था। प्रेमचंद के छद्म नाम से धनपत राय कहानी और उपन्यास लिखने लगे।
कुछ वर्षों बाद ये कहानी ओर उपन्यास जमीदारों और अंग्रेज अफसरों को खटकने लगे। लेकिन लेखक कौन है,कहा से छपता है,पता नहीं लग पारहा था।
चौंकाने वाली बात तो यह थी कि इसके पूर्व राजा रानी पर किस्से कहानिया हुआ करते थे या पौराणिक कथाये होती थी। आम जनमानस की पीड़ा पर कहानियां लिखी जाने लगीं तो सचाई हो़ने के कारण लोगों मे दिनोदिन इसकी लोक प्रियता बढ़ने लगी।मुंशी प्रेम चंद की कहानियां और उपन्यास लोकप्रिय होने लगे तो लेखक का उत्साह भी बढ़ने लगा। इनकी लेखनी समाज की कुरीतियो को लेकर भी सक्रिय हुई। जिसम रचनात्मक सोच की झलक होती। कहानी संग्रह छपने लगे और सेवा सदन ,गोदान ,गबन आदि उपन्यास भी काफी लोकप्रिय हुए। अंतत: एक दिन अंग्रेज अफसर को भनक लग ही गई। उसने इनको बुलाकर पूछताछ की । कुछ दिन तक ये चुप रहे पर महात्मागांंधी के प्रभाव मे आकर एक दिन इन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
मुंशी प्रेमचंद वाराणसी अंतर्गत लमही गांव के रहने वाले थे। किंतु बस्ती और गोरखपुर इनका कार्य क्षेत्र था। आज भी इसका उल्लेख राजकीय इंटर कालेज बस्ती और शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय गोरखपुर में है। इनके दो सुपुत्र श्रीपत राय ओर अमृत राय हुए।
इनकी जन्मतिथि 31जुलाई को वैचारिकक्रांति के संवाहक,उत्कृष्ट लेखक,मानवीय संवेदनाओं के चितेरे महान उपन्यासकार को सादर नमन करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
मुंशी प्रेमचंद-
“‘एक दिन मैं रात को घर में बैठा हुआ था,
मेरे नाम जिलाधीश का परवाना पंहुचा कि मुझसे अभी मिलो !
मैने बैलगाडी जुतवाई और चल दिया ।
साहब से मिला।
साहब के सामने > सोजेवतन < की एक प्रति रखी थी ,
मेरा माथा ठनका ।
उस वक्त मैं नवाबराय के नाम से लिखा करता था ।
यह तो मुझे मालूम था कि खुफियापुलिस इस किताब के लेखक की खोज में है।
साहब ने पूछा > यह किताब तुम्हारे द्वारा लिखी हुई है ?
मैने कहा > हां ,जी ।
साहब ने प्रत्येक कहानी का मतलब पूछा और फिर कहा कि >
>>यह तुम्हारा भाग्य है कि अंग्रेजी अमलदारी में हो , मुगलों का राज होता तो
तुम्हारे हाथ अभी काट दिये जाते ! तुमने अंग्रेजसरकार की तौहीन की है!<<<<
बात बढी ,
अन्त में लिख कर देना पडा कि जो भी लिखूंगा ,
आपसे अनुमति के बाद ही प्रकाशित कराऊंगा ।
उसके कुछ सालों बाद
गोरखपुर में महात्मागान्धी आये ,
महात्माजी के दर्शन का यह प्रताप था कि मुझ जैसा मरा आदमी भी चेत उठा!
दो-चार दिन बाद मैंने बीस साल की स्कूल-इंस्पैक्टरी से इस्तीफा दे दिया ।”
प्रेमचन्द’
(विस्तार के लिए देखें प्रेमचंद द्वारा लिखित ::जीवन सार कहानी)
