लम्बी रेस खेलेंगे योगी, कहा- तीन साल में यूपी से खत्म हो जाएगी गरीबी

  • महराजगंज जैसे पिछड़े जिले से भरी हुंकार, जहां वनटांगियों को दे चुके हैं नहीं पहचान
  • इससे पहले इंदिरा गांधी भी दे चुकी हैं इस तरह का बड़ा बयान
  • नरेंद्र मोदी भी गरीबी को मानते हैं जातीय राजनीति की तोड़

अजय कुमार

लखनऊ। गरीबी हटाओ का नारा भारतीय राजनीति का सबसे पुराना और सबसे आजमाया हुआ वाक्य है। यह नारा सुनते-सुनते कई पीढ़ियां जवान हो चुकी हैं, लेकिन गरीबी का अंत अब तक नहीं हुआ। इंदिरा गांधी ने इस नारे को 1971 में दिया था और इसी नारे पर चुनाव जीतकर सत्ता में लौटी थीं। उसके बाद से लेकर आज तक हर सरकार ने इस नारे को अपनी सुविधा और राजनीतिक जरूरत के अनुसार इस्तेमाल किया है। नरेंद्र मोदी ने भी गरीबी को जातीय राजनीति के जवाब के रूप में पेश किया, और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी यह संकल्प लिया है कि वे उत्तर प्रदेश को गरीबी मुक्त राज्य बनाएंगे। यह दावा उन्होंने महाराजगंज में किया, जहां उन्होंने कहा कि अगले तीन साल में यूपी से गरीबी खत्म कर दी जाएगी और प्रदेश को देश का नंबर एक राज्य बनाया जाएगा। यह बात उन्होंने तब कही जब एक सप्ताह पहले ही उनका बयान आया था कि वे राजनीति में लंबी पारी खेलने नहीं आए हैं। लेकिन उनके इस नए संकल्प से साफ है कि वे अभी कहीं जाने वाले नहीं हैं।

योगी आदित्यनाथ ने जो संकल्प लिया है, वह सिर्फ एक चुनावी वादा नहीं बल्कि व्यक्तिगत संकल्प बताया जा रहा है। उन्होंने खुद कहा है कि राजनीति में भी समयसीमा होनी चाहिए और इस लक्ष्य को पाने के लिए उन्होंने तीन साल की डेडलाइन तय की है। हालांकि तकनीकी रूप से उनके मौजूदा कार्यकाल के सिर्फ दो साल ही बचे हैं, इसलिए यह मानना मुश्किल नहीं कि उनका इरादा 2027 के बाद भी सत्ता में बने रहने का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह योगी आदित्यनाथ भी ‘गरीब’ को एक अलग वर्ग के रूप में पेश कर रहे हैं। जब बिहार में जातिगत जनगणना के बाद मोदी ने ओबीसी, एससी, एसटी और ‘गरीब’ का नाम लिया था, तो उसी ‘गरीब’ वर्ग को अब योगी राजनीति का केंद्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को देखते हुए गरीबी हटाओ का अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण है। लेकिन योगी सरकार ने इसकी शुरुआत 2 अक्टूबर 2024 को गांधी जयंती पर की, जब उन्होंने ‘जीरो पॉवर्टी स्टेट’ बनाने का ऐलान किया। सरकार के मुताबिक प्रदेश के हर ग्राम पंचायत से 25 निर्धनतम परिवारों को चिन्हित किया जाएगा और उन्हें केंद्र व राज्य सरकार की 17 योजनाओं का लाभ दिया जाएगा। लक्ष्य है कि इन परिवारों की वार्षिक आय को ₹1,25,000 तक पहुंचाया जाए ताकि वे गरीबी रेखा से ऊपर आ सकें। इसके लिए सरकार खाद्यान्न, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की योजनाओं को समन्वयित रूप से उन तक पहुंचाएगी।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2013-14 में बहुआयामी गरीबी का स्तर 42.59 प्रतिशत था, जो 2022-23 में घटकर 17.40 प्रतिशत पर आ गया है। इसका अर्थ है कि बीते नौ वर्षों में करीब 5.94 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। यह आंकड़ा बताता है कि सरकार की योजनाएं कुछ हद तक असरदार रही हैं। लेकिन यूपी जैसे विशाल और विविध राज्य में गरीबी पूरी तरह मिटाना अब भी एक बड़ा लक्ष्य है। योगी आदित्यनाथ के मुताबिक, उनकी सरकार ने पिछले छह वर्षों में 55 लाख से अधिक लोगों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजनाओं के तहत घर दिए हैं। इसके अलावा तीन करोड़ से अधिक परिवारों को शौचालय की सुविधा दी गई है और लगभग सभी गांवों को बिजली और पानी की सुविधा से जोड़ा गया है।

सरकार का दावा है कि वह रोजगार को प्राथमिकता पर रख रही है। ‘मिशन रोजगार’ अभियान के तहत सरकार अगले तीन-चार वर्षों में दो करोड़ युवाओं को रोजगार या स्वरोजगार से जोड़ने की योजना बना रही है। मुख्यमंत्री अप्रेंटिसशिप योजना के तहत 7.5 लाख युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे वे अपनी आजीविका कमा सकें। इस योजना का उद्देश्य गरीब परिवारों के युवाओं को सीधा आत्मनिर्भरता की ओर ले जाना है। वहीं, मनरेगा जैसी योजनाएं भी ग्रामीण रोजगार सृजन में मदद कर रही हैं।

उत्तर प्रदेश की सरकार दावा कर रही है कि वह अब गरीबी के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ने को तैयार है। यह संकल्प सिर्फ सरकारी दस्तावेजों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसे मिशन मोड में लागू किया जाएगा। सरकार के अनुसार 2025 तक प्रदेश के सभी ब्लॉकों में गरीबी निवारण की प्रगति का ऑडिट किया जाएगा और 2026 तक अधिकांश चयनित परिवार गरीबी से ऊपर उठ चुके होंगे।

हालांकि योगी आदित्यनाथ का ये संकल्प विपक्षी दलों को रास नहीं आया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों ने इसे सिर्फ चुनावी स्टंट करार दिया है। उनका कहना है कि सरकार ने पहले भी रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में बड़े वादे किए, लेकिन उनके परिणाम जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। विपक्ष का तर्क है कि अगर सरकार वास्तव में गंभीर होती तो अब तक प्रदेश की सामाजिक सूचकांक में और सुधार दिखता। उदाहरण के तौर पर, एनएफएचएस-5 के मुताबिक प्रदेश में अभी भी कुपोषण, एनीमिया और शिशु मृत्यु दर जैसे आंकड़े चिंता का विषय हैं।

एक तरफ योगी आदित्यनाथ का दावा है कि वह प्रदेश को गरीबी मुक्त बना देंगे, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की आबादी, संसाधनों की कमी, और प्रशासनिक भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियां इस अभियान को कठिन बनाती हैं। साथ ही प्रदेश के पिछड़े जिलों, जैसे बलिया, श्रावस्ती, सोनभद्र और चंदौली में अभी भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में अगर सरकार वास्तव में गरीबी खत्म करना चाहती है, तो उसे सिर्फ योजनाएं बनाने से आगे जाकर जमीनी कार्यवाही करनी होगी।

फिलहाल, यूपी सरकार ने जिन योजनाओं की घोषणा की है, वे यदि ईमानदारी से लागू की जाती हैं तो परिणाम सकारात्मक हो सकते हैं। लेकिन इन योजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि स्थानीय प्रशासन कितना सजग और जवाबदेह रहता है। भ्रष्टाचार, लापरवाही और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी समस्याएं पहले भी कई सरकारी प्रयासों को विफल कर चुकी हैं।योगी आदित्यनाथ के संकल्प को राजनीति से जोड़कर देखने के भी कारण हैं। जैसा कि उन्होंने खुद कहा था कि राजनीति में समयसीमा होनी चाहिए, लेकिन अगर वे इस संकल्प को 2027 तक भी पूरा करना चाहते हैं तो जाहिर है कि उनका इरादा अगला चुनाव जीतने और सत्ता में बने रहने का है। गुजरात मॉडल की तर्ज पर वे यूपी मॉडल को प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं, लेकिन विकास के मानकों पर यूपी को गुजरात जैसा बनाना आसान नहीं है।

बहरहाल, यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘गरीबी हटाओ’ का नारा एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार इसे सिर्फ नारे तक सीमित रखने से न तो जनता का भला होगा, न ही योगी आदित्यनाथ की राजनीति को स्थायित्व मिलेगा। अगर वे अपने इस वादे को सच साबित करते हैं तो उत्तर प्रदेश की तस्वीर वाकई बदल सकती है और यूपी मॉडल एक नई मिसाल बन सकता है। लेकिन अगर यह भी एक और राजनीतिक हथियार बनकर रह गया, तो जनता का भरोसा और भी डगमगाएगा। इसीलिए यह समय वादों से आगे बढ़कर उन्हें निभाने का है। यह योगी आदित्यनाथ के लिए सिर्फ एक संकल्प नहीं, बल्कि उनके पूरे राजनीतिक जीवन की विश्वसनीयता की परीक्षा है।

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