घोसी : कभी वामपंथ का रही गढ़,एक बार ही खिला कमल, क्या मुख्तार की मौत से बदलेगा समीकरण?

घोसी लोकसभा सीट पर चुनावी माहौल गरमा गया है। महज एक बार इस सीट पर भाजपा को जीत मिल सकी है। 2०14 में मोदी लहर में यह सीट भाजपा के पाले में गई थी। 2०19 में एक बार फिर इस सीट पर पार्टी को हार मिली। इस बार गठबंधन के तहत यह सीट सुभासपा के पाले में है। वहीं, मुख्तार की मौत मुद्दा बन रहा है।
घोसी उत्तर प्रदेश की उन बिरले लोकसभा सीटों में है, जिसने सियासत में ‘सबका साथ’ के नारे को वास्तव में जमीन पर उतारा है। कभी यह वामपंथ का गढ़ रहा। कांग्रेस का भी यहां झंडा फहरा। निर्दल ने भी जीत का ताना-बना बुना। बसपा को भी घोसी का साथ मिला तो समाजवाद से लेकर दक्षिणपंथ तक को भी नुमाइंदगी मिली। सपा-भाजपा को एक बार ही सही, लेकिन जीत उनको भी मिली। हालांकि, पिछले डेढ़ दशक से घोसी की राजनीति के मुद्दे भी बदले हैं और कलेवर भी। इस बार की लड़ाई त्रिकोणीय है और विकास के साथ ‘मातम’ यानी मुख्तार अंसारी की मौत भी सियासत का मुद्दा है। बुनकरों की कारगरी के लिए मशहूर घोसी का सियासी भूगोल मऊ जिले की चार विधानसभा सीटों मऊ, घोसी, मोहम्मदाबाद-गोहना, मधुबन और बलिया जिले की रसड़ा सीट मिलाकर बुना हुआ है। पूर्वांचल की एकाध सीटों को छोड़ दिया जाय तो जातीय गणित पर ही यहां चुनावी केमिस्ट्री सधती है।
घोसी की सियासत के शुरुआती चार दशकों का ट्रेंड अलग रहा है। लगभग 6० से 7० हजार आबादी वाली भूमिहार बिरादरी से यहां 12 सांसद चुने गए हैं। इस सीट पर लगभग 4 लाख दलित और ढाई से तीन लाख मुस्लिम वोटर हैं। डेढ़ लाख से अधिक राजभर और लगभग इतने ही यादव हैं। डेढ़ लाख से अधिक लोनिया चौहान तो राजपूत, ब्राह्मण व वैश्य की सम्मिलित आबादी दो लाख से अधिक है। पिछले दो दशक से नतीजे जातियों की गोलबंदी पर ही तय हो रहे हैं। इस बार भी लोकसभा चुनाव में पक्ष-विपक्ष ने जातीय शतरंज पर ही अपने मोहरे उतारे हैं।
कांग्रेस का आगाज और लेफ्ट का परचम
1957 में घोसी अलग सीट बनी तो पहले चुनाव में कांग्रेस के उमराव सिह सांसद बने। इसके बाद यहां के मतदाता वामपंथ की हवा में ही बहते रहे। 1962 और 1967 में जनता ने आजादी के आंदोलन में हिस्सेदार रहे जयबहादुर सिह को सीपीआई के टिकट पर चुना। जमींदार परिवार से रहे जयबहादुर ने गांव-गरीब की लड़ाई लड़ी। उर्दू को दूसरी भाषा की मान्यता देने की लड़ाई लड़ने के चलते उन्हें ‘शहीद-ए-उर्दू’ का खिताब भी दिया गया। उनके निधन के बाद 68 में हुए उपचुनाव में सीपीआई के ही झारखंडे राय जीते। धन और धरती गरीबों में बांटने के नारे को उन्होंने भी आगे बढ़ाया था।
1971 में उनकी जीत बरकरार रही। हालांकि, 1977 में जनता पार्टी की लहर में शिवराम राय ने लेफ्ट से जीत छीन ली। 198० में झारखंडे ने फिर एघ्I को जीत दिलाई। हालांकि, इस चुनाव तक यहां की सियासत में कल्पनाथ राय की जड़ें जम चुकी थीं। कांग्रेस के टिकट पर वह महज 7 हजार वोट से पिछड़े थे। हालांकि, 1984 में उनकी जगह राजकुमार राय को टिकट मिला और वह इंदिरा की हत्या के बने माहौल में कांग्रेस को जीत दिलाने में सफल रहे।
…और कल्पनाथ ने ढहा दिए सारे गढ़
राज्यसभा सांसद और फिर राजीव सरकार में मंत्री बने कल्पनाथ राय ने घोसी की सूरत बदलनी शुरू की। बुनियादी सुविधाओं से लेकर सड़क, पुल, बिजली की उपलब्धता ने यहां की तस्वीर ऐसी बदली कि दूसरी जगहों से यह क्षेत्र अलग दिखने लगा। कल्पनाथ की विकास पुरुष की पहचान ने यहां सारे गढ़ ढहा दिए। 1989 और 1991 में वह कांग्रेस के टिकट पर जीते। इस बीच उनकी तत्कालीन पीएम पीवी नरसिम्हा राव से खटक गई।
चीनी मिल घोटाले में नाम आया। मुंबई में हुए एक हत्याकांड में दाऊद इब्राहीम से नजदीकियों का आरोप लगा। लिहाजा कल्पनाथ टाडा (टेररिस्ट ऐंड डिसरप्टिव ऐक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट) में जेल में डाल दिए गए। कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया तो कल्पनाथ ने निर्दल ही घोसी से ताल ठोंक दी। कल्पनाथ के कांग्रेस छोड़ते ही कांग्रेस के पांव उखड़ गए।
घोसी की सियासत में उसी समय बसपा के टिकट पर माफिया मुख्तार अंसारी ने एंट्री की। कल्पनाथ व मुख्तार के बीच सीधी लड़ाई हुई। 14 हजार वोटों से यह चुनाव कल्पनाथ जीत गए, लेकिन मुख्तार की भी यहां राजनीतिक जमीन तैयार हो गई। 1998 में राय ने समता पार्टी से उम्मीदवारी की और लगातार चौथी जीत दर्ज की। बाद में टाडा से भी वह बरी हो गए।
कल्पनाथ के बाद बदलते रहे चेहरे
अगस्त 1999 में कल्पनाथ का निधन हो गया। इसके एक महीने बाद ही लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई। सियासी महत्वाकांक्षा ने कल्पनाथ के परिवार में दो फाड़ कर दिए। बेटे सिद्धार…
: देवरिया लोकसभा: पहले कलराज फिर रमापति ने
खिलाया कमल, अब हैट्रिक
की जिम्मेदारी शशांक की
देवरिया जनपद कभी गन्ना की खेती के लिए जाना जाता था यहाँ 14 चीनी मिले हुआ करती थी। उस समय देवरिया और कुशीनगर एक ही जिला हुआ करता था। देवरिया जिला सन 199० के पहले सोशलिस्टो और और कांग्रेसियों का गढ़ रहा है।199० के बाद कांग्रेस का इस जिले से लगभग सफाया हो गया और अधिकांश विधानसभा सीटों और लोकसभा सीटों पर भाजपा और समाजवादी पार्टी ही आमने-सामने रही है।
देवरिया लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें है (देवरिया सदर,रामपुर कारखाना ,पथरदेवा ,फाजिल नगर ,तमकुहीराज ) जिसमे से दो विधानसभा तमकुहीराज ( 331)और फाजिलनगर (332) कुशीनगर जनपद में आते हैं ।
वर्ष 2०19 लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से रमापति राम त्रिपाठी 58०644 मत पाकर विजयी हुए वही बसपा से विनोद कुमार जायसवाल 33०713 मत पाकर दूसरे स्थान पर, तीसरे स्थान पर कांग्रेस से नियाज अहमद 51०56 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
वर्ष 2०14 के लोकसभा में भाजपा से कलराज मिश्रा ने 4965०० मत पाकर जीते थे। दूसरे स्थान पर बसपा के नियाज़ अहमद रहे 231114 मत मिला। सपा से बालेश्वर तीसरे और कांग्रेस से सभा कुंवर को चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
वर्ष 2००9 के लोकसभा चुनाव में देवरिया संसदीय क्षेत्र से बसपा के गोरख प्रसाद जायसवाल अपने निकटतम प्रतिद्बंदी भाजपा के श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी को (17811० मत ) हरा- 219889 मत पाकर विजय हासिल की। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहन सिह इस चुनाव में 151389 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी बालेश्वर यादव 91488 मत पाकर चौथे स्थान पर रहे जो 2०14 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी बनाये गए थे।
वर्ष 2००4 के लोकसभा चुनाव में देवरिया संसदीय क्षेत्र से समाजवादी पार्टी से मोहन सिह ने 237664 मत पाकर जीत हासिल की। भाजपा के श्रीप्रकाश मणि 185438 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे, बसपा से देवी प्रसाद 132497 मत पाकर तीसरे स्थाने पर रहे जबकि कांग्रेस से रामाशीष राय 1०5188 मत पाकर चौथे स्थान पर रहे । वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में देवरिया लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के श्रीप्रकाश मणि 251814 पाकर विजयी हुए, सपा से मोहन सिह 2०9673 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे, बसपा से राजेश कुमार सिह 135०19 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे, कांग्रेस से चंद्रभूषण पाण्डेय 69343 मत पाकर चौथे स्थान पर रहे।
मुख्य समस्या
देवरिया जनपद कभी गन्ना की खेती के लिए जाना जाता था यहाँ 14 चीनी मिले हुआ करती थी। उस समय देवरिया और कुशीनगर एक ही जिला हुआ करता था। लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते चीनी मिलों पर किसानों के गन्ने का बकाया करोड़ो का भुगतान न होने से यहाँ किसानों का गन्ने की खेती से मोह भंग होता गया और वर्तमान में देवरिया जिले में एक मात्र चीनी मिल ही चालू है इस जिले को कभी चीनी का कटोरा भी कहा जाता था।
किसानो का बकाया गन्ने का भुगतान भी यहाँ की मुख्य समस्या रहती है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है ,किसी भी प्रकार का औद्यौगिक ढांचा और औद्यौगिक प्रतिष्ठानो के न होने के चलते इस जनपद के बेरोजगारों के लिए रोजगार मिलना मुश्किल है लोकसभा से चुनकर जाने वाले जनप्रतिनिधि भी इस समस्या के प्रति उदासीन रहे
आपको बता दें की 2०14 से अब तक देखा जाये तो देवरिया लोकसभा क्षेत्र में एक बड़ा काम हुआ है। स्वास्थ्य चिकित्सा के क्षेत्र में देवरिया सदर में महृषि देवरहा बाबा मेडिकल कालेज की स्थापना जो भाजपा के सांसद रहे कलराज मिश्रा की देन है जिसे भाजपा के नेता व् सांसद अपने भाषणों में गिनाने का काम करते रहते है देवरिया जिला सन 199० के पहले सोशलिस्टो और और कांग्रेसियों का गढ़ रहा है।199० के बाद कांग्रेस का इस जिले से लगभग सफाया हो गया और अधिकांश विधानसभा सीटों और लोकसभा सीटों पर भाजपा और समाजवादी पार्टी ही आमने-सामने रही है। देवरिया लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें है (देवरिया सदर,रामपुर कारखाना ,पथरदेवा,फाजिल नगर ,तमकुहीराज) जिसमे से दो विधानसभा तमकुहीराज (331)और फाजिलनगर (332) कुशीनगर जनपद में आते हैं ।
बिहार की सीमा से सटा है पूर्वी उत्तरप्रदेश का जिला देवरिया. आजादी से पहले 1946 में गोरखपुर से अलग होकर यह जिला बना था. देवरिया शब्द का अर्थ होता है वह जगह जहां देवता रहते हैं. जहां उनके मंदिर होते हैं. देवरिया को कभी देवपुरिया भी कहा जाता है. इसी जिले में देवरहा बाबा ने आश्रम बनाया था. महात्मा गांधी ने देवरिया और पडरौना में 192० में जनसभा को संबोधित किया था. बात राजनीति की करें तो देवरिया संसदीय सीट का इतिहास देश के पहले लोकसभा चुनाव 1952 से शुरू होता है.
लेकिन देबरिया की जनता ने कभी किसी एक पार्टी को सत्ता की चाबी नहीं सौंपी. यही वजह है कि देवरिया को कभी किसी राजनीतिक पार्टी का किला नहीं कहा गया. यहां 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की. उसके बाद अगले चुनाव में ही यहां की जनता ने सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार को संसद भेजा. देवरिया की जनता ने कांग्रेस पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी इन सभी राजनीतिक दलों को बारी- बारी से आजमाया लेकिन किसी एक पार्टी को दशकों तक जिताकर देवरिया को उसका गढ़ नहीं बनने दिया है. कांग्रेस पार्टी के सांसद सबसे ज्यादाबार यहां से जरूर चुने गए हैं. वर्तमान में यहां बीजेपी के रमापति राम त्रिपाठी सांसद हैं.
2०19 में बीजेपी की लगातार दूसरी जीत
2०19 में बीजेपी के रमापति राम त्रिपाठी ने जीत दर्ज की है. उन्होंने बीएसपी के बिनोद कुमार जायसवाल को 2,49,931 वोटों से हराया था. काग्रेस के नियाज़ अहमद खान तीसरे स्थान पर रहे. उन्हें 51,०56 वोट मिले थे. इससे पहले 2०14 में देवरिया से बीजेपी के कलराज मिश्र ने बसपा के नियाज़ अहमद को 2,65,386 वोटों से हराया था. तब सपा के बालेश्वर यादव तीसरे स्थान पर रहे थे. बालेश्वर यादव को 1,5०,852 वोट मिले थे. 2०14 में कांग्रेस पार्टी देवरिया में चौथे स्थान पर थी. कांग्रेस के सभा कुंवर को यहां 5० हजार वोट भी नसीब नहीं हुआ था.
देवरिया का राजनीतिक इतिहास
देवरिया में 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी के विश्वनाथ राय ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रामजी वर्मा सांसद बने.1962 में कांग्रेस पार्टी ने फिर वापसी की और 1962,1967 और 1971 में लगातार तीन बार कांग्रेस के विश्वनाथ राय यहां से लोकसभा पहुंचे.1977 में जनता पार्टी के उग्रसेन सिह ने यहां जीत दर्ज की. इसके बाद 198० और 1984 में कांग्रेस पार्टी को यहां की जनता ने चुना.1989 और 1991 में जनता दल. 1996 में यहां बीजेपी ने खाता खोला और प्रकाश मणि त्रिपाठी सांसद बने. इसके बाद 1998 में समाजवादी पार्टी के मोहन सिह सांसद बने . 1999 में फिर बीजेपी के प्रकाश मणि त्रिपाठी और 2००4 में सपा के मोहन सिह सांसद चुने गए.2००9 में यहां पहली बार बहुजन समाजवादी पार्टी की एंट्री हुई और गोरखप्रसाद जायसवाल देवरिया के सांसद बने. 2०14 में यहां से कलराज मिश्र और 2०19 में रमा पति त्रिपाठी सांसद चुने गए.
बाढ़ और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा
देवरिया लोकसभा में- देवरिया, तमकुही राज, फाजिलनगर, पथरदेवा, रामपुर कारखाना पांच विधानसभा सीट है. 2०11 की जनगणना के जिले की आबादी 31 लाख से ज्यादा है. यहां कुल 17,54,195 मतदाता हैं इनमें 7,96,646 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 9,57,453 है. बात लोकसभा चुनाव में मुद्दों की करें तो देवरिया जिला कभी गन्ना की खेती के लिए जाना जाता था. इस क्षेत्र में 14 चीनी मिलें हुआ करती. लेकिन गन्ने का बकाया मूल्य भुगतान नहीं होने की वजह से किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया. गन्ना उद्योग का बंद होना, बाढ़ और बेरोजगारी यहां के प्रमुख मुद्दे हैं. बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की जो दो सूची जारी की है उसमें देवरिया से उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है. वहीं विपक्षी दलों ने भी अपने उम्मीदवार को लेकर पत्ते नहीं खोले हैं.
देवरिया सीट पर बसपा ने खेला यादव कार्ड,क्या बिगाड़ देगा सब समीकरण?
बहुजन समाज पार्टी ने लम्बे इंतजार के बाद देवरिया लोकसभा सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पार्टी ने युवा नेता संदेश यादव को इस सीट से टिकट देकर यादव कार्ड खेला है। संदेश यादव पूर्व विधायक स्व आनंद यादव के बेटे हैं और वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं। वह अपने गांव के प्रधान भी रह चुके हैं। संदेश यादव अगर सजातीय मतों में सेंध लगाने में सफल रहे तो बसपा जहां भाजपा के साथ कथित अंदरुनी गठबंधन को पुख्ता करने में कामयाब होगी वहीं इण्डिया गठबंधन के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।
कभी जीत की गारंटी था बसपा का टिकट
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक समय था जब बसपा का टिकट जीत की गारंटी माना जाता था। विधानसभा व लोकसभा चुनावों में बसपा सभी दलों से पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर देती थी। अन्य दल बसपा प्रत्याशी तय होने के बाद ही राजनीतिक समीकरण देख अपना उम्मीदवार घोषित करते थे। मगर बीते लोकसभा व विधानसभा चुनावों के बाद परिस्थितियां बदल गई। प्रदेश की राजनीतिक दिशा व दशा तय करने वाले बसपा का वोट बैंक पूरी तरह बिखर गया। नतीजतन बहुजन समाज पार्टी बैक फुट पर आ गई। शायद यही वज़ह है कि कई लोकसभा सीटों पर बसपा को अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा । वैसे इस चुनाव में विरोधी दलों द्बारा बसपा और भाजपा के बीच अंदरुनी तालमेल की चर्चा भी खूब हो रही है।
संदेश के पिता भी रहे हैं बसपा से विधायक
देवरिया लोकसभा सीट पर बसपा ने संदेश यादव को टिकट दिया है। संदेश यादव पुराने बसपाई है। इनके पिता आनंद यादव जिले की सलेमपुर विधानसभा सीट से 1993 में बसपा से विधायक रहे हैं। बाद में आंनद ने सपा ज्वाइन की और फिर कांग्रेस में आ गए। देवरिया लोकसभा क्षेत्र के खुखुन्दू गांव के मूल निवासी संदेश वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं। इसके पूर्व वह अपने गांव खुखून्दू के प्रधान रह चुके हैं। इसके पूर्व वह कांग्रेस में थे। बाद में उन्होंने बसपा ज्वाइन कर ली।
बदल जायेगा चुनावी समीकरण
संदेश यादव के बसपा से उम्मीदवार होने पर देवरिया लोकसभा सीट का चुनावी समीकरण अब बदल जायेगा। इस सीट पर पिछड़ीं जातियों में यादव मतदाता मतदाता सर्वाधिक संख्या में है। चुनाव में यादव निर्णायक भूमिका निभाते हैं। संदेश यादव के पिता आनंद यादव की यादव बिरादरी में अच्छी पहचान रही है। ऐसे में अगर वह सजातीय मतों में सेंध लगाने में कामयाब रहे तो इण्डिया गठबंधन उम्मीदवार के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। क्योंकि इण्डिया गठबंधन के तहत देवरिया लोकसभा सीट कांग्रेस को मिली है। कांग्रेस ने यहां से अखिलेश सिह को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में अगर यादव वोटरों का झुकाव सजातीय उम्मीदवार की तरफ हुआ तो यह भाजपा के लिए कोरामीन साबित होगा।
भाजपा ने शशांक मणि और कांग्रेस ने अखिलेश सिह को दिया है टिकट
देवरिया लोकसभा सीट पर भाजपा ने पूर्व सांसद जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के बेटे एवं युवा चेहरा शशांक मणि त्रिपाठी को टिकट दिया है। कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पूर्व विधायक अखिलेश सिह को टिकट दिया है। राजनीतिक जानकारों की माने तो इस चुनाव में बसपा व भाजपा के बीच आंदोलन तालमेल की चर्चा जोरों पर है। ऐसे में अगर संदेश यादव अपने सजातीय बंधुओं को साधने में सफल रहे तो विरोधियों द्बारा बसपा व भाजपा के बीच लगाया जा रहा अंदरूनी गठबंधन का आरोप और पुख्ता होगा।
मुख्य चुनावी मुद्दे
1 -चीनी मिल चालू करना
2 -कृषि विश्वविद्यालय शुरू करने की मांग जोरों पर है
3 -महंगाई ने आमजन मानस से लेकर मध्यमवर्गीय सबकी कमर तोड़ कर रख दी है सरकार ने महंगाई रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएं हैं।
4- भ्रष्टाचार का मुद्दा भी इस चुनाव का मुख्य मुद्दा होगा। खराब सड़कें,रसोई गैस और डीजल पेट्रोल के बढे दाम भी प्रभावी मुद्दे होंगे
5-पुरानी पेंशन मुद्दा भी रहेगा
6-बाहरी प्रत्याशी भी मुद्दा
7-बेरोजगारी,अग्निवीर योजना,पलायन को मजबूर
8- देवरिया में बाईपास की मांग बहुत दिनों से हो रही है क्योकि स्टेट हाईवे जो शहर से होकर गुजरती है ट्रैफिक की जबरदस्त समस्या बनी रहती है 2०17 में नितिन गडकरी द्बारा 17 किलोमीटर का शिलान्यास हुआ लेकिन बना नहीं । यहाँ के मतदाताओं का मानना है कि गन्ना किसानों द्बारा चीनी मिल चालू करने और कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना करने का मुद्दा लोकसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा बनेगा।
देवरिया लोकसभा सीट एक नजर में
कुल मतदाता-1729583
954367 पुरुष मतदाता
79657० महिला मतदाता
96 थर्ड जेंडर है
देवरिया सदर विधानसभा में मतदाताओं की संख्या—3251०2
पथरदेवा विधानसभा : 316389
रामपुर कारखाना : 329154
तमकुहीराज विधानसभा : 37561०
फाजिलनगर विधानसभा : 383328
देवरिया लोकसभा क्षेत्र मे कुल पांच विधानसभा में जनसंख्या : 2818561
देवरिया सदर में जनसंख्या:511421
पथरदेवा में जनसंख्या : 4994०2
रामपुर कारखाना में जनसंख्या : 517121
तमकुहीराज में जनसंख्या : 658789
फाजिलनगर में जनसंख्या :631828
देवरिया लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण
पिछड़ी जाति-52 %,
मुस्लिम- 14 %,
सामान्य- 19%
अनुसूचित-15 %)
आईआईटी दिल्ली से बीटेक, स्विट्ज़रलैंड से एमबीए… हैं शशांक मणि त्रिपाठी
भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल की हॉट सीट देवरिया से मौजूदा सांसद डॉ.रमापति राम त्रिपाठी का टिकट काटकर युवा चेहरे को मौका दिया है. बीजेपी ने इस सीट से पूर्व सांसद लेफ्टिनेंट जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के बेटे शशांक मणि त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. उनका मुकाबला इंडी गठबंधन से कांग्रेस के प्रत्याशी अखिलेश प्रताप सिह से है.
शशांक मणि त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा लखनऊ के कॉल्विन तालुकदार कॉलेज से हुई इसके बाद उन्होंने दिल्ली आईआईटी से बीटेक किया. इसके बाद आईएमडी लॉज़ेन (स्विट्ज़रलैंड) से एमबीए की डिग्री हासिल की. उन्होंने अंतराष्ट्रीय कारोबारी माहौल में 18 साल से अधिक का समय बिताया है. शशांक का परिवार जिले संभ्रांत परिवारों में से एक हैं. स्वाभाव से घुमंतू शशांक 15 बार भारत भ्रमण कर चुके हैं. शशांक मणि त्रिपाठी लेखक भी हैं. भारत यात्रा पर उनकी एक पुस्तक ‘इंडिया – ए जर्नी थ्रू ए हीलिग सिविलाइज़ेशन’ का प्रकाशन भी हो चुका है.
देवरिया जिले के बारपार गांव के रहने वाले शशांक मणि त्रिपाठी के दादा सूरतनारायण मणि त्रिपाठी गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट थे. पिता श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल की पोस्ट से रिटायर हुए. शशांक के पिता दो बार लोकसभा के सदस्य भी चुने गए. शशांक मणि त्रिपाठी को टिकट मिलने के बाद जिला भाजपा और उनके समर्थकों में ख़ुशी की लहर है.
देवरिया में इस बार भी परंपरा रहेगी कायम, चुना जायगा कोई नया सांसद
संसदीय सीट देवरिया पर पिछले तीन लोकसभा चुनावों से कायम परंपरा इस बार भी बरकरार रहेगी। लगातार चौथी बार यहां से कोई नया चेहरा सांसद चुना जाएगा। 2००9 से लेकर 2०19 तक के चुनावों में किसी नेता को यहां से दोबारा संसद पहुंचने का मौका नहीं मिला। ऐसा नहीं है कि जीते हुए प्रत्याशी को हार मिली हो, बल्कि राजनीतिक दल ने उन्हें दोबारा अवसर ही नहीं दिया। इस बार पार्टी के लिहाज से देखें तो भाजपा की हैट-ट्रिक का मौका है और सामने से सपा के साथ मिलकर कांग्रेस उसे रोकने की कोशिश में जुटी है। भाजपा हो, कांग्रेस या बसपा, किसी भी दल ने अपने प्रत्याशी फिर बदल दिए हैं।
गोरखपुर व बस्ती मंडल की नौ लोकसभा सीटों में से आठ सीटों पर पुराने सांसदों को फिर जनता का आशीर्वाद मिल सकता है लेकिन देवरिया में ऐसा नहीं है। यह स्थिति 15वीं लोकसभा के चुनाव से ही कायम है। 2००9 में हुए इस चुनाव में भाजपा ने अपने पूर्व सांसद लेफ्टिनेंट जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी पर दांव लगाया था लेकिन उन्हें दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। बसपा यहां नए चेहरे के रूप में गोरख प्रसाद जायसवाल को लेकर आयी थी और गोरख पहली बार संसद पहुंचने में कामयाब हुए थे। सपा ने मोहन सिह को मौका दिया था लेकिन उन्हें तीसरा स्थान मिला। इसी तरह कांग्रेस के टिकट पर बालेश्वर यादव चौथे पायदान पर रहे।
पांच साल बाद हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने कद्दावर नेता कलराज मिश्र को यहां से मैदान में उतारा। उन्हें जीत भी मिली। बसपा ने गोरख प्रसाद का टिकट काट दिया और नियाज अहमद पर भरोसा जताया था। सपा ने पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर भाग्य आजमाने वाले बालेश्वर यादव को अवसर दिया था। कांग्रेस ने यहां से सभाकुंवर को लड़ाया था। 2०19 के चुनाव में भाजपा ने अपने जीते हुए प्रत्याशी कलराज मिश्र को दूसरी जिम्मेदारी दे दी। उनकी जगह पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. रमापति राम त्रिपाठी को टिकट थमा दिया। त्रिपाठी नए चेहरे के रूप में इस सीट से सांसद चुने गए।
बसपा ने फिर प्रत्याशी बदलकर विनोद कुमार जायसवाल को उतारा था। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में बसपा के उम्मीदवार रहे नियाज अहमद को अपना हाथ दिया था। सपा इस चुनाव में बसपा के साथ थी। वर्तमान चुनाव में एक बार फिर सभी पार्टियों ने प्रत्याशी बदल दिए हैं। भाजपा ने सांसद डा. रमापति को टिकट नहीं दिया है। उनकी जगह पूर्व सांसद श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के पुत्र शशांक मणि त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया गया है। सपा का इस बार कांग्रेस से गठबंधन है इसलिए प्रत्याशी नहीं उतारा गया है। कांग्रेस ने भी प्रत्याशी में बदलाव कर अखिलेश प्रताप सिह पर दांव लगाया है। बसपा ने भी फिर प्रत्याशी बदलकर संदेश यादव को मैदान में उतारा है। सभी चेहरे देवरिया के संसदीय चुनाव में नए हैं इसलिए फिर नया सांसद मिलना तय है।

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योगी ने भी माना ‘हमारा’अति आत्मविश्वास महंगा पड़ा

अजय कुमार, लखनऊ लखनऊ।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़कर यह है स्वीकार किया कि अति आत्मविश्वास ने हमारी अपेक्षाओं को चोट पहुंचाई है। जो विपक्ष पहले हार मान के बैठ गया था, वो आज फिर से उछल-कूद मचा रहा है। योगी ने यह है बातें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष […]

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