((ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र-9415087711))
दिन 1 – शैलपुत्री
शैलपुत्री (पर्वत की पुत्री), हिमालय पर्वत क्षेत्र के राजा हिमावत की पुत्री हेमवती (पार्वती) जो पिछले अवतरण में दक्षपुत्री सती थी। इस रूप में देवी को शिवजी की पत्नी के रूप में पूजा जाता है। इनका वाहन या सवारी वृषभ (बैल) है इसलिए वृषारूढा हैं। शैलपुत्री को महाकाली का प्रत्यक्ष अवतार माना जाता है। इस दिन का वर्ण (रंग) लाल है, जो कार्य कुशलता और ऊर्जा का प्रतीक है।
दिन 2 – ब्रह्मचारिणी
ब्रह्म (तपस्या) चारिणी (आचरण करने वाली) देवी, मां ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थीं। देवी ने अन्न, फल, जल आदि सब त्याग दिया था इसलिए अपर्णा हैं। इस दिन का वर्ण (रंग) नीला हैं जो दृढ़ ऊर्जा, शांति को प्रतीक है।
दिन 3 – चंद्रघंटा
शिवजी से विवाह करने के पश्चात मां पार्वती ने अपने मस्तक को अर्धचंद्र (आधा चंद्र) से सजाया था। देवी का यह रूप हर समय दुष्टों से युद्ध को तत्पर रहता है तथा मस्तक का अर्धचंद्र घंटे की ध्वनि उत्पन्न करता हैं। देवी का शरीर में स्वर्ण जैसी आभा है, वह सुंदरता और निडरता का प्रतीक है। देवी ने अनगिनत असुरो का वध किया हैं जिसमें चंड मुंड मुख्य हैं, देवी को चामुंडा, चंडी, चंडीका, रणचंडी आदि नामो से भी पुकारा जाता हैं। इस दिन का वर्ण (रंग) पीला है, जो एक जीवंत वर्ण और सभी के मन को शांति प्रदान करता है।
दिन 4 – कुष्मांडा
कु (थोड़ा), उषमा (ऊर्जा), अंड (ब्रह्मांड)। इस रूप में देवी ने अपनी थोड़ी सी ऊर्जा द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था। यह ब्रह्मांड की रचनात्मक शक्ति है। इस दिन का वर्ण (रंग) हरा है जो प्रकृति का प्रतीक हैं।
दिन 5 – स्कंदमाता
स्कंद (कार्तिकेय) की माता, पुत्र कार्तिकेय बालरूप में देवी की गोद में बैठे हुए हैं। यह कमल के आसन पर बैठी हुई है इसलिए पद्मासना भी हैं। यह अग्नि की देवी भी है। इस दिन का वर्ण (रंग) मटमैला या धूसर हैं जो एक माँ की परिवर्तित शक्ति का प्रतीक हैं जब उसकी संतान संकट में होती है।
दिन 6 – कात्यायनी
कात्यायन ऋषि ने कठोर तपस्या करके देवी से वरदान मांगा कि वह उनकी पुत्री के रूप में जन्म ले। देवी कात्यायन ऋषि की पुत्री रूप में जन्मी इसलिए कात्यायनी कहलाई। देवी ने अनगिनत असुरो का वध किया है जिसमें महिषासुर (भैंस रूपी असुर) मुख्य हैं। देवी सीता, राधा, रूकमणी ने अपने स्वामी से विवाह के लिए देवी कात्यायनी की पूजा अर्चना की थी। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियो ने भी देवी कात्यायनी की आराधना की थीं। इस दिन का वर्ण (रंग) नारंगी हैं जो साहस का प्रतीक हैं।
दिन 7 – कालरात्रि
देवी दुर्गा या पार्वती का सबसे भयंकर रूप है, कालरात्रि नाम के उच्चारण से सभी असुरी शक्तियाँ भयभीत होकर भागती हैं। देवी की त्वचा का वर्ण (रंग) काला है तथा वह श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किए हुए हैं, उनके नेत्रों में बहुत अधिक क्रोध और सांसो से अग्नि निकलती हैं। देवी ने अनगिनत असुरो का वध किया हैं जिसमें रक्तबीज मुख्य है। इनको महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रूद्रानी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। इनका रूप भले ही भयंकर हो किंतु यह सदैव शुभ फल देने वाली माँ है इसलिए मां शुभंकरी है। इस दिन का वर्ण (रंग) श्वेत हैं, श्वेत वर्ण प्रार्थना और शांति को प्रतीक है तथा भक्तों को सुनिश्चित करता है कि देवी मां उन्हें हानि से बचाएगी।
दिन 8 – महागौरी
महागौरी का अर्थ हैं पूर्णतः गौर वर्ण (पूर्ण श्वेत)। एक कथा के अनुसार भगवान शिव ने देवी महाकाली के काले शरीर को गंगाजल से धोकर कांतिमय श्वेत कर दिया था और देवी महागौरी कहलाई। इस समय देवी के शरीर से नया रुप उत्पन्न हुआ जिसे देवी कौशिकी कहा गया, देवी कौशिकी ने शुंभ निशुंभ नाम के असुरो का वध करके पुनः देवी महागौरी के शरीर में समा गई। महागौरी देवी के सभी आभूषण और वस्त्र श्वेत हैं इसलिए इनको श्वेतांबरधरा हैं। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के पुष्प से की गई हैं। इस दिन का वर्ण (रंग) गुलाबी है जो आशा, विश्वास का प्रतीक है।
दिन 9 – सिद्धिदात्री
सृष्टि के आरंभ में भगवान रूद्र (शिव) ने देवी आदि पराशक्ति की पूजा की थीं, देवी निराकार थी और सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुई तथा इनके साथ मिलकर शिवजी ने अद्धनारीश्वर रूप लेकर संसार का आरंभ किया। सिद्धिदात्री की पूजा से देवी के सभी नौ रूपों की पूजा हो जाती हैं। ये सभी 8 प्रकार की सिद्धिया देने वाली माँ है। आठ सिद्धिया है अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकामय, ईशित्व, वशित्व। इस दिन का वर्ण (रंग) हल्का नीला हैं जो प्रकृति की सुंदरता का प्रतीक हैं।