दो टूकः 400 पार का दावा, फिर भी गठबंधन पर फोकस, BJP की कमजोरी या खेल

विपक्षियों को बैकफुट पर लाने और प्रत्याशी के बजाय मोदी के नाम पर वोट लेने की होड़

अब सांसद खुद के नाम पर भी नहीं मांग पाते वोट, आएगा मोदी ही कह रही है जनता

राजेश श्रीवास्तव

लखनऊ। अभी पिछले पांच दिनों से में गौतमबुद्धनगर, वाराणसी, और गाजियाबाद के चुनावी मिजाज को समझने निकला तो एक बात समझ आ गई कि BJP के 400 पार का नारा महज प्रधानमंत्री की रणनीति है और कुछ नहीं। कारण यह है कि जब भी मैं लोगों से बात कर रहा था तो वह खुद ही कहते हैं ‘कि समस्यायें बहुत हैं, वह खुद ही तमाम महंगाई गिनाते हैं, समस्यायें बताते हैं लेकिन फिर खुद ही कहते हैं कि आएगा तो मोदी ही और शोर मचने लगता है कि अबकी बार 400 पार।’ यह प्रकरण बताने का कारण यह है कि आप समझिये कि पीएम मोदी हर बार एक एजेंडा सेट करते हैं जब 2014 में आये तो बोले अबकी बार मोदी सरकार । साल 2019 में आये तो फिर नारा दिया-एक बार फिर मोदी सरकार और अब उन्होंने नारा दिया कि मोदी की गारंटी, मोदी है तो मुमकिन है आदि आदि। यानी पीएम मोदी हर सरकार खुद पर फोकस करते हैं यह एजेंडा सेट करने की उनकी रणनीति है। वह चाहते हैं कि देश मोदी के नाम पर लड़े ताकि कोई प्रत्याशी की, स्थानीय समीकरण की, महंगाई की, मुद्दे की या फिर किसी अन्य बहस में न पड़ें।

आप देखते भी होंगे कि हम पत्रकार यही पूछते हैं कि आप मोदी को वोट देंगे, कभी यह नहीं पूछते कि BJP को वोट करेंगे या अमुक प्रत्याशी लेकिन जब यही सवाल विपक्ष के लिए होता है तो यह नहीं पूछते कि राहुल गांधी को वोट करेंगे बल्कि पूछते हैं कि इंडिया गठबंधन को वोट करेंगे। यानी हम तुलना मोदी और इंडिया गठबंधन के बीच करने लगते हैं और वैसे ही मोदी भारी पड़ते दिखायी देते हैं।

लेकिन हमें अबकी बार 400 पार के नारे की गंभीरता को समझना होगा। इस नारे पर मत जाइये क्योंकि नारा तो पीएम मोदी ने कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भी अबकी बार 15० पार, पश्चिम बंगाल में भी अबकी बार 200 पार, हरियाणा में भी अबकी बार 75 पार दिया था तो क्या हुआ। नहीं हुआ। लेकिन इस बार विपक्ष उनके इस नारे में फंस गया है। उधर राहुल गांधी भी नारा दे रहे हैं कि इस बार 180 के नीचे लाकर रहेंगे BJP को। हमें इस नारे को और BJP की असली स्थिति को समझना होगा, अगर वह इतना श्योर हैं तो क्यों छोटे-छोटे दलों से समझौता कर रहे हैं। निषाद, राजभर, अनुप्रिया ऐसे तमाम लोग हैं जिनके आगे BJP नतमस्तक है। क्योंकि वह खुद ही अपने नारे के प्रति आश्वस्त नहीं है।

एक ओर विपक्ष एक भी रैली नहीं कर पाया, वहीं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पूरा यूपी मथ चुके हैं। रोज करते हैं तीन से चार रैलियां

आप देख लीजिए अभी विपक्ष के प्रत्याशी नहीं घोषित हैं कांग्रेस अमेठी और रायबरेली में प्रत्याशी नहीं उतार पायी, सपा रोज प्रत्याशी बदल रही है। जमीन पर कोई दिख नहीं रहा। पहले चरण का चुनाव अब बस दस दिन बाद होना है लेकिन विपक्ष कहीं एक भी सभा नहीं कर सका है। दूसरी बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रोज तीन जिलों की सभाएं करके यूपी को मथ रहे हैं। अगर विपक्ष इसी तरह रहा और सिर्फ इस उम्मीद से बैठा रहा कि मोदी से नाराज लोग उसको खुद ही वोट दें देंगे, तो उसकी भूल है। अब स्थितियां बदली हैं। जनता को विपक्ष के प्रत्याशी का नाम बताने तो जाना पड़ेगा क्योंकि विपक्ष की न तो खबरों को स्थान मिलता है न उनके नेता अपने एसी कमरे से बाहर निकलते हैं तो जनता क्यों धूप में लाइन लगाये उसे तो पांच किलो राशन मिल ही रहा है।

दरअसल 370 और 400 पार का नारा विपक्ष पर साइकोलॉजिकल दबाव बढ़ाने का तरीका है जिसे इस्तेमाल करने में BJP माहिर है। जहां तक बात क्षेत्रीय दलों को साथ जोड़ने की है तो BJP इस बात का पूरा आकलन कर रही है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां कहां-कहां मजबूत हैं। उन राज्यों में क्षेत्रीय दलों को साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है ताकि विपक्षी पार्टियों की सीटों को कम किया जा सके। अलग-अलग राज्यों में जातियां राजनीतिक दलों का एकमुश्त वोट होती हैं। वह इन्हीं जातियों पर फोकस कर रही है, ताकि विपक्ष को कमजोर किया जा सके और अपने मैनडेट को और मज़बूत किया जा सके। इसे यूपी की राजनीति से समझा जा सकता है।

राजभर की पार्टी ने आज तक एक भी लोकसभा सीट नहीं जीती। RLD ने न तो 2014 में एक भी सीट जीती, न ही 2019 में। यहां तक कि जयंत चौधरी और उनके पिता अजीत चौधरी को भी हार ही नसीब हुई। बावजूद इसके BJP ये जानती है कि अति पिछड़ी जातियों में राजभर की दखल है और पश्चिमी यूपी में चौधरी खानदान की पैठ अब भी बरकरार है। किसान आंदोलन के समय से जाट बहुल पश्चिमी यूपी में BJP की परिस्थितियां उतनी अच्छी नहीं थीं जितनी यूपी के बाकी हिस्सों में देखने को मिली। इसलिए RLD को भी तोड़कर NDA में शामिल कराया गया।

सूत्रों की मानें तो BJP को खुद 300 के करीब सीटें आने का अनुमान है। इसीलिए जैसे-जैसे आम चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, वह अपने साथ छोटे-बड़े क्षेत्रीय दलों को जोड़कर अपना कुनबा लगातार बढ़ाने की कोशिश में जुटी है। आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी (TDP) के साथ गठबंधन किया। कुछ दिन पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिह को भारत रत्न देने का एलान किया गया और इसी के साथ पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल (RLD ), इंडिया खेमे से NDA शिफ्ट हो गई। थोड़ा और पहले चलेंगे, तो बिहार में क्या से क्या हो गया सबने देखा ही।

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हालांकि, इंडिया छोड़ नीतीश कुमार के BJP के साथ आने को एकाएक तो नहीं कहा जा सकता । पार्टी ने उन 161 सीटों की लिस्ट बनाई जहां पार्टी की स्थिति कमतर दिखती है। उन सीटों पर अपने विस्तारक भी भेज दिए हैं। ये सब इसलिए किया जा रहा है ताकि दक्षिण और उत्तर के भेद को मिटाया जा सके। विपक्ष चुनाव के बाद ये न कह सके कि BJP सिर्फ उत्तर की पार्टी है। फिलहाल BJP इस बार रणनीतिक दबाव के सहारे चुनाव जीतने के प्रयास में है, अब परिणाम तो चार जून को पता चलेंगे लेकिन BJP के लिए भी मैदान इतना साफ नहीं है और विपक्ष के सामने भी मुसीबतों का पहाड़ कम नहीं है उसे BJP जैसी शक्ति से टकराना है।

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