भारी पड़ सकती है केजरीवाल की गिरफ्तारी

रंजन कुमार सिंह

ED ने जिन आरोपों के आधार पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया है उनकी पुष्टि के लिए अभी तक न्यायपालिका के समक्ष कोई प्रमाण पेश नहीं कर पाई है। व्यावसायिक लाभ देकर चंदा प्राप्त करने का उनपर 100 करोड़ का आरोप एक सरकारी गवाह के बयान के आधार पर है जबकि भाजपा पर दर्जनों कंपनियों को जांच एजेंसियों द्वारा डरा-धमकाकर हजारों करोड़ का इलेक्टोरल बांड प्राप्त करने के सारे सबूत मौजूद सामने आ चुके हैं। चुनाव आयोग उन्हें अपनी वेबसाइट पर डाल चुका है। मामला पब्लिक डोमेन में आ चुका है। तो क्या उनके आधार पर दर्ज होने वाली याचिकाओं पर भी ED कार्रवाई करेगी? सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे हुए भाजपा के नेताओं को भी गिरफ्तार करेगी?

सवाल है कि यदि आम आदमी पार्टी द्वारा शराब कंपनियों को लाभ पहुचाने के बाद चंदा लेने की बात सत्य भी है (फिलहाल सरकारी गवाह के बयान के अलावा कोई साक्ष्य नहीं है) तो किसी को डरा-धमकाकर जबरन चंदा वसूल करना तो इससे कहीं बड़ा अपराध है। सरकारी संस्थाएं जिस तरह सरकार के हाथों की कठपुतली बनी दिखाई देती हैं। उसमें वह क्या करेंगी कहना कठिन है। सुप्रीम कोर्ट भी इस तरह की मनमानी पर कितना अंकुश लगा सकेगी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना निश्चित है कि दिल्ली, पंजाब और गुजरात समेत पूरे देश की जनता सरकार की तिकड़मों को भलीभांति तरह समझ रही है और उसका फैसला चुनाव के नतीजों में सामने आ सकता है।

ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय जनता पार्टी अभी तक जनता के मिजाज को समझ नहीं पाई है। उसे भेड़ बकरियों का दर्जा देती है, जिसे जब जिधर चाहे हांक लेगी। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान शाहीनबाग़ आंदोलन के बहाने दिल्ली की जनता के सांप्रदायीकरण की कोशिशों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई। भाजपा नेताओं के बीच जहरीले बयानबाजियों की होड़ सी लग गई। लेकिन नतीजा क्या निकला? आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ तीसरी बार सत्ता में वापस लौट आई। दिल्ली के मतदाताओं ने भाजपा नेताओं के भगवाकरण के प्रयासों को बुरी तरह नकार दिया।

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दिल्ली की जनता इतनी जागरुक है कि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट दिया और लोकसभा चुनाव में जीत का तोहफा भाजपा की झोली में डाल दिया। उसका मानना है कि लोकसभा में कुछ सीटें लेकर भी केजरीवाल क्या कर पाएंगे। फिर भाजपा लोकसभा चुनाव के मौके पर आम आदमी पार्टी से इतना भयभीत क्यों हो गई। कि उसके सभी प्रमुख नेताओं को बिना किसी पुख्ता प्रमाण के जेल में डलवा दिया और अब एक जनता के चुने हुए मुख्यमंत्री को पकड़ लिया? क्या आप और कांग्रेस का गठबंधन उसके लिए इतना भारी पड़ रहा था? या इसलिए कि उस समय के मुकाबले आम आदमी पार्टी का ज्यादा विस्तार हो चुका है? अब वह तीन-चार राज्यों में प्रभाव डालने की स्थिति में आ चुकी है? क्या इन्हीं तिकड़मों के जरिए भाजपा चार सौ पार करना चाहती है? फिलहाल भाजपा सरकार की मनमानी और तिकड़मबाजी पर सुप्रीम कोर्ट अंकुश लगाएगा या भारत की 142 करोड़ जनता या फिर सबकुछ इसी तरह चलता रहेगा, यह आने वाला समय बताएगा।

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