- गोसाईगंज जेल: सुरक्षा भगवान भरोसे, परिसर से लेकर बाहर तक असुरक्षित
- सलाखों के पीछे कभी हमला तो कभी हत्या तो कैसे थमे अपराध
- सपा के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति पर हुए हमले ने पुराने जख्मों को किया ताजा
ए अहमद सौदागर
लखनऊ। मंगलवार को गोसाईगंज की जिला जेल में बंद पूर्व मंत्री और सपा के वरिष्ठ नेता गायत्री प्रजापति पर जेल परिसर में हुए जानलेवा हमले की घटना ने एक बार फिर पुराने जख्मों को ताजा कर दिया। जेल प्रशासन भले ही सुरक्षा को लेकर तरह-तरह की बयानबाजी कर रहे हों, लेकिन कड़वा सच यह है कि यूपी की जेलों में बंद माफियाओं से लेकर कई कैदियों की हत्या कर दी और कईयों पर जानलेवा हमले भी हुए। यही नहीं साल 2018 रायबरेली जिला जेल में कैदी असलहा व कारतूस के बीच शराब पी रहे कुछ बंदियों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
सपा के नेता गायत्री प्रजापति पर हुए जानलेवा हमला कोई नया नहीं है यूपी के जेलों में कई बार खून-खराबा जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। गौर करें तो नौ जुलाई 2018- बागपत जिला जेल में बंद माफिया मुन्ना बजरंगी की जेल परिसर के अंदर एक कैदी ने गोलियों की बौछार कर मौत की नींद सुला दिया। जांच पड़ताल शुरू हुई तो सामने आया कि इस घटना को अंजाम जेल में बंद कुख्यात बदमाश सुनील राठी ने दिया। कुछ दिनों तक जेल की सुरक्षा को लेकर शोर-शराबा हुआ, लेकिन दो-चार कदम चलने के बाद पूरी कवायद ठंडे बस्ते में चली गई। यहीं से बात खत्म नहीं हो रही है वर्ष 2018 पहले की घटनाओं पर नजर डालें तो भले ही अपराधी रहे लेकिन जेल की सुरक्षा पर सवाल खड़े करने के लिए ये घटनाएं जरूर खड़ी कर देगी।
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जब-जब जेल में गई जान पर एक नजर
वर्ष 2008 : डासना जेल में कविता हत्याकांड के आरोपी रवीन्द्र प्रधान की संदिग्ध हालात में मौत।
वर्ष 2009 : डासना जेल में ही बस विस्फोट कांड के आरोपित शकील अहमद की कथित हत्या।
वर्ष 2011 : लखनऊ जिला जेल में सीएमओ हत्याकांड के आरोपित वाई एस सचान की संदिग्ध हालात में मौत।
वर्ष 2012 : मेरठ जिला जेल में तलाशी के दौरान विवाद, फायरिंग में दो बंदियों मेहरा दीन और सोमवीर की मौत।
वर्ष 2012: जिला जेल कानपुर देहात में विवाद के दौरान बंदी रामशरण सिंह भदौरिया की मौत।
वर्ष 2014 : गाजीपुर जिला जेल में जिला प्रशासन और बंदियों के संघर्ष में बंदी विश्वनाथ प्रजापति की मौत।
वर्ष 2015 : मथुरा जिला जेल में दो गुटों के बीच फायरिंग में पिंटू उर्फ अक्षय सोलंकी और राजेश टोटा की गोली लगने से मौत।
वर्ष 2016 : सहारनपुर जिला जेल में सुक्खा नामक कैदी की गला रेत कर हत्या।
उरई जिला जेल में प्रिंस अग्रवाल की मौत, घरवालों ने लगाया हत्या का आरोप।
वर्ष 2005 : माफिया मुन्ना बजरंगी के शार्प शूटर अनुराग त्रिपाठी उर्फ अन्नू त्रिपाठी की जिला जेल वाराणसी में गोली मारकर हत्या।
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यह तो महज बानगी भर है और भी यूपी की जिला जेलों में हमला और हत्याएं हो चुकी हैं। कुछ समय पहले सुरक्षित समझी जाने वाली जेल में अब हत्या और हमला मानो आम बात हो गई है। गौर करें तो यूपी की जेल में सबसे पहले करीब डेढ़ दशक पहले मुन्ना बजरंगी के शूटरों ने वाराणसी जेल में पार्षद वंशी यादव को गोलियों से भूना था। पूर्वांचल की जेल में पहली बार जेल के भीतर हत्या होने की खबर से पुलिस और जेल प्रशासन का पूरा महकमा हिल उठा था। जिस तरह से गोसाईगंज जेल में बंद सपा के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति पर एक विश्वास नाम के सफाईकर्मी ने मामूली कहासुनी के बाद हमला किया तो एक बार फिर जेल सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए। हालांकि जेल में सुरक्षा को लेकर जेल प्रशासन ने कई बार तरह-तरह की कवायदें शुरू की, लेकिन सपा नेता गायत्री प्रजापति के ऊपर हुए जानलेवा हमले ने जिला जेल प्रशासन की पोल खोल दी।
