अजित पवार गुट प्रचार सामग्री में शरद पवार की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करें : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अजीत पवार गुट से यह हलफनामा देने को कहा कि वह लोकसभा या विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी प्रचार सामग्री पर शरद पवार की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करेगा। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और के वी विश्वनाथन की पीठ ने अजित पवार समूह की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह से कई सवाल पूछे और तस्वीर इस्तेमाल के मामले में शनिवार को हलफनामा देने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने इस निर्देश के साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 मार्च की तारीख मुकर्रर कर दी। पीठ ने अजित पवार गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह से पूछा कि उसने आगामी लोकसभा चुनाव में पोस्टरों में शरद पवार की तस्वीर का इस्तेमाल क्यों किया। पीठ ने कहा कि अपनी पहचान के साथ रहिए। आप (अजित पवार) उनके (शरद पवार) नाम को भुना नहीं सकते। चुनाव आने पर आपको उनके नाम की जरुरत होती है और जब यह खत्म हो जाता है, तो आपको उनकी आवश्यकता नहीं होती।”

पीठ ने कहा कि उसने (शीर्ष अदालत ने) अजित पवार समूह को घड़ी चुनाव चिन्ह के साथ वास्तविक राकांपा के रूप में मान्यता देने के चुनाव आयोग के फैसले पर अभी तक अपना कोई विचार नहीं किया है। शरद पवार समूह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने तर्क दिया कि अजित पवार समूह शरद पवार समूह पर क्यों सवार होना चाहता है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, समान अवसर, लोकतंत्र के मुद्दे हैं, जो संविधान की मूल संरचना हैं।

सिंघवी ने ग्रामीण इलाकों में प्रचार के दौरान शरद पवार की तस्वीर के इस्तेमाल को लेकर छगन भुजबल के बयान का हवाला देते हुए कहा कि यह खुला धोखा है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें चुनाव जीतने का इतना भरोसा है तो उन्हें अपने दम पर ऐसा करने दीजिए। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि दोनों गुटों को अपनी-अपनी पहचान के साथ रहना चाहिए। शरद पवार ने इससे पहले गत छह फरवरी के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें अजित पवार के समूह को राकांपा के रूप में मान्यता दी गई थी और उसे ‘घड़ी’ का पार्टी चिन्ह दिया गया था। शरद पवार अजित पवार के चाचा हैं और उन्होंने राकांपा की स्थापना की थी। दोनों गुटों के बीच राकांपा को लेकर विवाद पिछले साल से चल रहा है। जुलाई 2023 में अजित पवार और उनके नेतृत्व में राकांपा के आठ अन्य विधायक अचानक एकनाथ शिंदे की शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की गठबंधन वाली महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए थे। इसके बाद पार्टी पर हक को लेकर चाचा- शरद पवार और भतीजे -अजीत पवार के बीच विवाद शुरू हो गया था। यह मामला विधानसभा अध्यक्ष के अलावा चुनाव आयोग के पास पहुंचा था। छह महीने से अधिक समय तक चली 10 से अधिक तारीखों पर सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट को राकांपा और प्रतीक चिन्ह ‘घड़ी’ पर नियंत्रण देने के लिए विधायी बहुमत का परीक्षण लागू किया।

आयोग ने अपने फैसले पर पहुंचने के लिए पार्टी संविधान के लक्ष्यों और उद्देश्यों का परीक्षण का भी उपयोग किया। विधानसभा अध्यक्ष ने भी 15 फरवरी को अजीत पवार गुट के पक्ष में फैसला दिया था। अजीत पवार गुट ने चुनाव आयोग के समक्ष पेश हलफनामे में राकांपा के कुल 81 विधायकों में से 57 का समर्थन हासिल होने का दावा किया था, जबकि उनके शरद पवार गुट के साथ मात्र 28 विधायकों का साथ होने की बात कही गई। (वार्ता)

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