जेल अफसर खा रहे कैदियों की सब्जी!

  • सब्जी खरीद की अनुमति के लिए जेलों से वसूला जा रहा नजराना
  • प्रदेश की करीब एक दर्जन से अधिक नई जेलों में नहीं कृषि भूमि

राकेश यादव

लखनऊ। कारागार विभाग में सब्जी खरीद में भी जमकर गोलमाल किया जा रहा है। जेल अफसरों को पहले सब्जी की खरीद के लिए नजराना देना पड़ता है। फिर खरीदी गई अच्छी सब्जी जेल अफसरों के घरों पर जाती है और बची हुई घटिया सब्जी कैदियों को परोस दी जाती है। दिलचस्प बात यह है कि विभाग में सब्जी खरीद के लिए न कोई मानक निर्धारित किए गए है और न ही इसके कोई दाम निर्धारित किए गए है। हकीकत यह है कि जेल अफसर बंदियों के नाम पर सब्जी की खरीद फरोख्त में प्रतिमाह लाखों के वारे न्यारे कर जेब भरने में जुटे हुए है।

वर्तमान समय में प्रदेश में 74 जेल है। इसमें छह केंद्रीय कारागार और 68 जिला जेल है। केंद्रीय कारागार में सजायाफ्ता कैदी और जिला जेल में विचाराधीन बंदियों को रखा जाता है। मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश की जिन जेलों में कृषि भूमि है। वह जेल बगैर कृषि भूमि वाली जेलों में सब्जी आपूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। इसके तहत कृषि भूमि वाली जेल अपने निकट की जेलों को सब्जी की आपूर्ति करेंगी। नई जेलों के निर्माण के बाद यह व्यवस्था अस्त व्यस्त होकर कागजों में ही सिमट कर रह गई है।

मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश की करीब एक दर्जन से अधिक जेल ऐसी है जिसमे कृषि भूमि नहीं है। इन जेलों में सब्जी खरीद करने की अनुमति जेल मुख्यालय प्रदान करता है। सूत्रों का कहना है यह जेलें सब्जी की खरीद में कमाई करने के लिए आसपास की जेलों से सब्जी लेने के बजाए जेल मुख्यालय से सब्जी की खरीद की अनुमति लेकर प्रतिमाह लाखों का गोलमाल कर रहे है। सब्जी खरीद की अनुमति के लिए कृषि प्रभारी अधिकारी जेलों से मोटी रकम वसूल कर अनुमति प्रदान कर रहे है। यही नहीं विभाग में सब्जी खरीद करने का न कोई मानक निर्धारित और न ही सब्जी के दाम तय किए गए है। आलम यह है कि इन गैर कृषि भूमि वाली जेलों में अनाप शनाप दामों में खरीदी गई सब्जी में अच्छी सब्जी जेल अफसरों के घरों पर चली जाती है और घटिया सब्जी कैदियों को परोसी जा रही है।

कृषि अनुभाग की प्रशासनिक अधिकारी को नहीं कोई जानकारी

प्रदेश की कितनी जेलों में कृषि भूमि नहीं है और प्रदेश में कितनी जेलों को सब्जी खरीदने की अनुमति प्रदान की गई है के संबंध में जब मुख्यालय की कृषि प्रभारी अधिकारी प्रतिमा त्रिपाठी से बातचीत की गई तो वह कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाय उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी डीआईजी मुख्यालय की है। सब्जी खरीद के लिए सुविधा शुल्क लिए जाने और खरीद का मानक और दाम तय होने के सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध ली। उधर डीआईजी मुख्यालय अरविंद कुमार सिंह ने करीब एक दर्जन जेलों में कृषि भूमि नहीं होने की पुष्टि तो की लेकिन अन्य सवालों के जवाब के लिए कृषि प्रभारी से संपर्क करने की बात कहकर मामले को टाल दिया।

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