तुम्हीं बता दो मेरे ईश्वर

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

बड़ी कृपा है उस ईश्वर की।
बीत गया यह भी दिन बेहतर।

पिछला हफ्ता रहा सुखद ही।
अगला दिन जाने कैसा हो?
दुख सुख के अंतर्द्वद्वों मे।
भारी कौन पड़े क्या कम हो?

बतला पाना कठिन बंधुवर!
प्रति दिन है भूगोल बदलता।।
कौन गया है बचा कौन अब।
उंगली पर नित नित मैं गिनता।।

जो बच गए कृपा ईश्वर की।
बीत रहा ऐसे दिन बेहतर।।

हर सांसों में स्पंदन उसका‌।
हर वाणी मे वंदन उसका।।
उसे देखता जल थल अंबर।
अहा! प्रकृति मे दर्शन उसका।‌

वंदन करता सप्त स्वरों मे।
वह भूमा अभिनंदन उसका।।
सूरज के प्रकाश सा जीवन।
सतरंगी तानों बानों का।।

कण कण मे सौंदर्य उसी का।
ज्ञानी ध्यानी कहें महत्तर।।

मेरे भीतर बाहर तुम हो।
सांस सांस मे केवल तुम ह़ो।।
रोम रोम को स्पर्श कर रहे।
जाने कितने व्यापक तुम हो।।

तुम हो क्या मैं समझ न पाया।
कब दिखते हो ?समझ न पाया।।
माया मय संसार तुम्हारा।
रच डाला क्यों समझ न पाया।।

हे शिवत्व के कर्ता धर्ता।
तेरी माया भी गुणवत्तर।।

इसमे तुम हो कौन बताओ?
अपना भी संदेश सुनाओ‌।।
कब कब कहां कहां रहते हो?
इसका कुछ संकेत बताओ।।

वेद पुराण उपनिषद मे हो।
गीता रामायण मे तुम हो।।
अथवा प्रणव मध्य मैं ढूंढ़ूं।
तंत्र मंत्र यज्ञों मे तुम हो।।

इतने जटिल प्रश्न हल कैसे?
तुम्ही बता दो मेरे ईश्वर।।

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