मध्यप्रदेश: इंदौर रहा क्राइम में आगे, कई लड़कियां हुईं लापता

लखनऊ। मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में साल 2019 से लापता व अपहृत होने वालों बच्चों में सबसे ज्यादा घटनाएं इंदौर जिले में हुई हैं। बताया गया है कि आंकड़ों के अनुसार, इंदौर में लापता लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में तीन गुना है। यह आंकड़ा क्रमशः 732 और 245 था। यह बात IIM-इंदौर की टीम द्वारा बच्चों के लापता होने के मामले में करीब छह महीने की रिसर्च रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चों खासकर लड़कियों के लापता होने तथा अपहरण के मामले में रिश्तेदार या पड़ोसी ही आरोपी होते हैं। कई बार पारिवारिक विवाद भी कारण बनते हैं। ऐसे में परिवार परामर्श केंद्र खोलने की जरूरत है।

IIM के डायरेक्टर हिमांशु राय ने पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर को यह रिपोर्ट सौंपी है। इसमें पुलिस कार्यप्रणाली में मॉडल केस स्टडी व ट्रेनिंग मॉड्यूल सुझाया है। पुलिस इसे अपनी कार्यप्रणाली में शामिल करती है तो बच्चों के लापता होने के केस कम होने तथा अपराधियों में डर की स्थिति बनेगी। IIM-इंदौर के डायरेक्टर हिमांशु राय के नेतृत्व में मैनेजर नवीनचंद्र राय, एसोसिएट प्रोफेसर श्रुति तिवारी, विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर शिवानी शर्मा के टीम ने पांच साल में मिसिंग बच्चों के रिकॉर्ड के आधार पर रिसर्च की है। रिसर्च का MOU पॉच जुलाई 2023 को हुआ था और शनिवार को रिपोर्ट सौंपी गई।

टीम ने केस स्टडी के साथ पुलिस के जांच अधिकारियों से बात की। लापता बच्चों के पुनर्वास को समझा और सुधार व जागरुकता के लिए सुझाव दिए। रिसर्च का उद्देश्य बच्चों के लापता होने की घटनाओं को रोकने के लिए इनफॉर्मेशन, एजुकेशन और कम्युनिकेशन (IEC) ट्रेनिंग मॉड्यूल विकसित करना था। IIM ने तीन चरण में काम किया। पहले चरण में पांच साल में लापता बच्चों के केस का एनालिसिस, दूसरे में 70 से ज्यादा केस डायरी, 17 पुलिस अफसरों से संवाद व पीडि़तों से बात की गई। तीसरे चरण में IEC ट्रेनिंग मॉड्यूल, रिकवरी प्रक्रिया व पुनर्वास की समीक्षा की गई।

अधिकांश मामले में पीडि़त 13 से 17 आयु वर्ग केलड़कियां

केस स्टडी में तथ्य निकला कि अधिकतर मामलों में अपराधी पड़ोसी या रिश्तेदार होता है। बच्चियां पारिवारिक विवाद, बाल विवाह के डर से घर छोड़कर चली जाती हैं।

अधिकांश लापता नाबालिग 13 से 17 वर्ष आयु वर्ग के होते हैं।

नाबालिगों के लापता होने के अधिकांश मामले चंदन नगर, आजाद नगर, लसूडि़या, द्वारकापुरी और भंवरकुआं से हैं। इस श्रेणी में यह शहर के पांच हाई रिस्क जोन हैं।

ऐसे अपराधों का उद्देश्य बलात्कार व शारीरिक हमला, शादी का इरादा और प्रेम संबंध रहता है।

लापता नाबालिग लड़कियों के मामले में अधिकांश आरोपी 18 से 23 वर्ष आयु वर्ग के होते हैं।

जांच अधिकारियों से पता चला कि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी में काउंसलिंग के दौरान बच्चियां माता-पिता के साथ वापस जाने को तैयार हो जाती हैं। पेशेवर मनोवैज्ञानिक परामर्श लड़कियों को आघात से उबरने में मदद कर सकता है।

ये दिए सुझाव

IIM डायरेक्टर हिमांशु राय ने बताया, रिसर्च के आधार पर कुछ सुझाव दिए हैं। इसमें ईआइसी यानी इनफॉर्मेशन, एजुकेशन, कम्युनिकेशन की थ्योरी पर काम करते हुए ऐसे मामले कम करने के प्रयास हों। चिन्हित इलाकों में लोगों को जागरूक किया जाए। ऐसे प्रकरणों में किस प्रकार कमी आए, इसके लिए अन्य विभागों व समाज से जुड़कर प्रयास किए जाएं।

किशोर व युवा वर्ग को जागरूक करने हेतु बस्तियों और मोहल्लों व स्कूल व कॉलेजों में जागरुकता कार्यक्रम चलाएं। सोशल मीडिया व सिनेमा हॉल में फिल्मों के दौरान पॉक्सो और जेजे एक्ट व इन मामलों की छोटी-छोटी अवेयरनेस वीडियो व शार्ट फिल्म आदि दिखाने का प्रयास करें।

किशोर वर्ग की बच्चियों के मामले ज्यादा सामने आते हैं। लापता होने के पीछे कई बार पारिवारिक कारण होते हैं। इसके लिए परिवार की विशेषज्ञों से काउंसलिंग की जाए और परिवार परामर्श केंद्र स्थापित किए जाएं।

बच्चों के अपहरण व गुमशुदगी मामलों में केंद्रीय प्रणाली होनी चाहिए, ताकि बरामदगी के लिए परिवहन और अन्य संसाधनों की उचित व्यवस्था की जा सके।

विभाग में पुरस्कार आधारित प्रोत्साहन प्रणाली होनी चाहिए, जिसमें ऐसे प्रकरणों में रिकॉर्ड समय में अच्छा काम करने वाले पुलिस अधिकारियों को पारितोषिक मिले। इससे अन्य पुलिसकर्मी भी प्रोत्साहित होंगे तथा प्रकरणों के जल्द निराकरण व इनमें कमी लाने में सहायता मिलेगी।

प्रकरणों के निराकरण हेतु विशेष टीमें बनाई जाएं, जो विवेचना अधिकारियों को प्रशिक्षित करें।

पुलिस के प्रमुख नंबर शहर के विभिन्न क्षेत्रों में लगाएं। प्रकरणों के निराकरण में इंदौर पुलिस लगभग 100 प्रतिशत सफल रही है, इस बात के पोस्टर भी लगाएं, ताकि संदेश जाए कि कुछ गलत करोगे तो पकड़े जाओगे।

मॉडल केस डायरी में कार्यप्रणाली के बेहतर क्रियान्वयन के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल बनाया है। इसे पुलिस अपनी कार्यप्रणाली में शामिल करती है तो ऐसे प्रकरणों के निराकरण में सहायता मिलेगी।

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