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बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
#सीनियर_सिटिजन शब्द आज का आदर सूचक शब्द है। क्यों कि हम वृद्ध कहलाना पसंद नहीं करते। बाल रंगा लें,नया दांत लगवा लें। हृदय की धड़कन चलती रहे अत; रिंग डलवा ले या पेसमेकर लगवा लें। झुर्रियो को ढकने के तरह तरह के रंग रोगन लगा लें। बेहतरीन फोटो अलग अलग पोज मे खिंचा लें। अपने को पार्क मे लेजाकर अन्य हम उम्रों के साथ हा हा हू हू करलें। पर सत्य यही है कि शरीर मे एक तरह से कुछ समय तक बैठ जायं तो गर्दन मे दर्द, तो किसी को शरीर मे पीड़ा होने से उठना बैठना कठिन होरहा। अधिकांश को सायटिका ने जकड़ रखा है। पैदल चल नहीं सकते। शुगर के कारण फीकी चाय और खाने मे रोटी साग,लौकी, टमाटर ,नेनुआ आदि ही मिल रहा।
कभी कभी बच्चों की जिद मे दादा जी को समोसा, जलेबी मैगी,मोमो,पिज्जा,बर्गर, पाश्ता आदि पेश किये जारहे। दादा जी सबका मन रखने के लिए एक दो लुक्मा खाकर हंस देते है और बच्चे ताली बजाने लगते हैं। मनोरंजन के ये पल अनमोल होते हैं। दादा और दादी जी वे भाग्यशाली माने जाते है ,जो पैतालिसवीं या उससे अधिक वर्षों की अपने शादी की वर्षगांठ(वेडिंग एनीवर्सरी) मनाते हैं। पचासवीं और उससे अधिक शादी की वर्ष गांठ मनाने वाले तो अतिशय धन्य धन्य है । उन्हें इंसान नही ऊपर ( स्वर्ग) के देवता भी शुभकामना देते हुए गंधर्वों से मंगल गान कराते हैं। एक दूसरे का ख्याल करने वाले सभी बच्चों के लिए अभ्युदय की कामना करने वाले सहज मित्र और निगाहों मे हर पल बेटी -बेटों का फिक्र करने वाले सीनियर सिटिजन जोड़े अब दुर्लभ ही होते जारहे हैं। ऐसे लोगों के लिए ही वैदिक ऋचाओं ने गान करते हुए कहा-
*जीवेम शरद: शतम् श्रृणुयाम शरद: शतम् प्रब्रवाम शरद: शतम् अदीना: स्याम शरद: शतम् भूयश्च शरद: शतात्।
हे प्रभो! हम सो वर्ष तक जियें ( पर रोगी और दीन बिकलांग होकर नहींं) सोवर्ष तक सुनाई पड़े,सो वर्षों तक दिखाई पड़े, सौ वर्षों तक चलते फिरते रहें, बिना किसी के सामने हाथ फैलाये जियें, ऐसा सौ वर्ष तक जीना पड़े तो सौ बार हो… तो हमारे लिए सोभाग्य की बात होगी।