मुस्लिम सियासत का नया सितारा! भाजपायी विधायक-शिक्षक मंसूर!!

के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

दशकों बाद भाजपा को मुसलमानों में एक निष्ठावान तथा निखालिस पुरोधा हासिल हुआ है : डॉ. प्रोफ़ेसर तारिक मंसूर। यूपी के नवनामित विधायक। नेता योगी आदित्यनाथ के विधानमंडल के ताजातरीन सदस्य हैं। वे पेशे से सर्जन हैं, चिंतन से समावेशी व्यक्ति हैं। अभी तक भाजपा (पिछला जनसंघ का अवतार मिलाकर) ऐसी मुस्लिम शक्लों को तलाशती रही, जो अपनी मिल्लत में भरोसा सर्जा सकें। अभी तक सिकंदर बख्त से मुख्तार अब्बास नकवी तक की लंबी फेहरिस्त रही। वे सब लाभार्थी तो रहे, पर कारगर नहीं हो सके। रिश्तेदारी की उपज जो ठहरे। पार्टी हेतु खुद का योगदान दिखा नहीं पाए। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रो. मंसूर सुगमता से पूर्ववर्ती कुलपति जन्नतनशीन डॉ जाकिर हुसैन, रफी अहमद किदवई, मोहम्मद हिदायतुल्लाह आदि की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। प्रो. मंसूर की बुनियादी राष्ट्रवादी निष्ठा निस्संदेह रही। यूं जो मुसलमान जननायकगण गांधी युग में रहे, जैसे खान अब्दुल गफ्फार खां, मौलाना अबुल कलाम, हकीम अजमल खान, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, (जिनका वंशज नामाधारी माफिया कुल घातक हो गया) सभी महान विभूतियां थीं।

गौरतलब है प्रो. मंसूर का एक कथन कि : “मैं राज्यपाल द्वारा मनोनीत हूं।” अर्थात वैचारिक निष्पक्षता प्राथमिक है। इस संवाददाता से अपनी बात में रमजान के जुम्मे के दिन, आज (5 अप्रैल 2023) उन्होने जो कहा वह बड़ी गंभीर और वास्तविक लगीं। (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी तथा लखनऊ में “इंडियन एक्सप्रेस” के संवाददाता रहे साथी फैसल फरीद (मो. : 94520-40956) के सौजन्य से यह सामंजस्य संभव हुआ। गमनीय गुण प्रो. मंसूर में यह है कि वे उच्च कोटि के इल्मी हैं जिनकी हमदर्दी मज्लूम मुसलमानों, विशेषकर पसमांदा छात्रों के साथ है। भाजपा उनके नए विधायकी रूप मे उन्हें शोषित अल्पसंख्यकों की हितैषी की भूमिका मे देखेगी। एक विशेष कथन नरेंद्र दामोदरदास मोदी के व्यक्तित्व वाले जो पहलू प्रो. मंसूर ने अपने विभिन्न लेखों में उजागर किए हैं वह सभी रुचिकर हैं। उदाहरणार्थ पश्चिम एशियाई राष्ट्रों से हिंदू-बहुल भारत का सीधा संबंध। सौहार्द, स्नेहिल भरा। भारत-अरब रिश्ते तो प्रधानमंत्री के पांच आधुनिक अभिलक्षणों पर आधारित हैं : सम्मान, सुख, समृद्धि, संस्कृति तथा सहायता। इसका सीधा अंजाम है कि जिन अरब देशों के आक्रामकों ने इतिहास में भारत के आस्थास्थलों (सोमनाथ, अयोध्या सहित) को भग्न किया था, उन्हीं की भूमि पर ही हिंदू मंदिर अब निर्मित हुए हैं। मोदी का करिश्मा है। प्रो. मंसूर का मानना है कि मध्येशियायी (इस्लामी) राष्ट्रों से भारत का धर्म-आधारित नाता न होकर, केवल सभ्यता से जुड़ा है। पांच हजार सालों से। डॉ. मंसूर के अनुसार प्रधानमंत्री इन अरब देशों को भारत का समुद्री पड़ोसी मानते हैं, जो भौगोलिक सामीप्य का अहसास कराती है। यह भारत की विदेश नीति का नूतन आयाम हैं।

प्रो. मंसूर के परिवार का शैक्षिक कीर्तिमान अद्भुत है। उनके पिता स्व. हफीजुल रहमान विधिवेत्ता रहे। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में ला संकाय के डीन थे। उनके अग्रज प्रो. रशीदुज्जफर दिल्ली आई.आई.टी. में सिविल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष तथा जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय के कुलपति थे। मंसूर जी की पत्नी प्रो. हमीदा तारिक भी संप्रति नेहरू मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर हैं। डॉ तारिक के आमंत्रण पर इस बार प्रधानमंत्री ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का दीक्षांत भाषण दिया था। संघ के मोहन भागवत स्वयं प्रो. मंसूर के बेटे के निकाह में शामिल हुए थे। हाल ही में लाल किले में संपन्न संघ के कार्यक्रम में स्वयं कुलपति शामिल हुए थे। यह सांकेतिक है कि भाजपा के कार्यक्रम : “सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास” में वे निहायत सक्रिय रहेंगे। स्नेह तथा सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित। भाजपा का यह कार्यक्रम देश के नए जनवादी कार्यक्रमों के संदर्भ में गौरतलब है।

प्रो. मंसूर का एक अर्थपूर्ण मुहावरा है : “व्हाइट मीडिया का बर्डन” (भार) अर्थात पश्चिमी पत्रकारों की किरदारी। इसमें दिखता है कि किस भांति तीसरी दुनिया के लोगों के मसलों को ये विदेशी मिडियाजन विकृत करते हैं। इस परिवेश में बीबीसी द्वारा “मोदी फाइल्स” की वे तीव्र भर्त्सना करते हैं। इसमें 2002 के गुजरात दंगों का विद्रूप पेश किया गया है। मकसद केवल मुसलमान वोटरों को बरगलाने का है। प्रो. मंसूर को शल्य चिकित्सा में महारत हासिल है। अतः संभवतः राजनीति मे वे अनावश्यक अंगों (जैसे एपेंडिक्स) को काटकर फेंकने का पक्ष लेंगे। यहां संकेत है भारत के इतिहास के काले अध्यायों का। ताजा रपट के अनुसार अब तो राष्ट्रीय शिक्षा पाठ्यक्रम से मुगल साम्राज्यवादियों का उल्लेख ही कट गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में स्वागतयोग्य निर्णय लिए जिनमें कट्टर मुगल औरंगजेब के नाम दिल्ली की सड़कों पर से हटाकर उन्हे एपीजे अब्दुल कलाम के नाम कर दिया। जब भाजपा के समर्थन से वैज्ञानिक प्रो. एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने तो स्वागत करने वालों में प्रो. मंसूर भी थे।

प्रो. मंसूर का लेख जो मुगल युवराज पादशाहजादा-ए-बुजुर्ग मर्तबा दारा शिकोह पर लिखा गया है, अत्यंत विचारोत्तेजक है। हर चिंतनशील पाठक को प्रभावित करेगा। सांप्रदायिक सामंजस्य को बल देगा। प्रो. मंसूर के ही शब्दों में : “दारा शिकोह भले ही औरंगजेब से हारा हो, मगर भारत को तो उसने विजयी बना ही दिया।” प्रो. मंसूर पर चर्चा करते हुए बड़ी याद आती है मियां मोहम्मद हामिद अंसारी की। वे पूरे दस साल तक उपराष्ट्रपति के भव्य महल में मौज लेने के बाद, जनपथ में विशाल सरकारी हवेली का फोकट में आनंद भोग रहे हैं। मियां अंसारी ने कहा था : “भारत में मुसलमान असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।” इतना सफेद झूठ ! अब नियति ने समाधान ढूंढ लिया है। प्रो. मंसूर ही वह ईश्वरप्रदत्त जवाब हैं। प्रमाण भी कि भारतीय मुसलमान देश का मुस्तकबिल है। बड़ा सुनहरा।

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