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![बलराम कुमार मणि त्रिपाठी](https://www.nayalook.com/wp-content/uploads/2022/08/Balram-Kumar-Mani-Tripathi-NayaLook.jpg)
- चैत्र नवरात्रि में दोनों साथ साथ
- रामावतार में यज्ञ की भूमिका
- रावण के अत्याचार से मुक्ति
- निर्भय होकर प्रजा राज्य संचालन में सहयोगी बने
- लोकतंत्र की पहली अवधारणा रामराज्य में तय
चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मध्याह्न के अभिजीत मुहूर्त में सरयू तट पर स्थित अयोध्यापुरी में महाराजा दशरथ के घर महारानी कौशल्या को गर्भ से ज्येष्ठ पुत्र के रूप में भगवान श्रीराम का अवतरण हुआ। थोड़ी थोड़ी देर पर महारानी कैकेई ने भरत को और महारानी सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। इसकी सूचना मिलने पर महाराजा दशरथ को बहुत प्रसन्नता हुई। समूचे राज्य में प्रजा सुखी होगई। अयोध्या के राज्य का उत्तराधिकारी जो मिल चुका था। महाराजा दशरथ सूचना लेकर गुरु वशिष्ठ के पास गए। जन्म के बाद के संस्कार संपन्न हुए।
पहली बार पुत्रेष्टि यज्ञ कर श्रृंगीऋषि ने यज्ञ से उत्पन्न अग्नि देवता के चरू को प्रसाद स्वरूप महाराजा दशरथ को प्रदान किया और चक्रवर्ती महाराज ने उसे अपनी पत्नियों को प्रदान किया था। कहना न होगा ऋषिगण यज्ञ के द्वारा बहुत कुछ सृजित करने में त्रेता युग में समर्थ थे। नित्य शोध कार्य चलता रहा। जिससे अनेक दिव्यास्त्र भी उन्होंने अर्जित किया थे। विश्वामित्र के यज्ञ के प्रयोग,अगस्त्य आदि ऋषि भी शोध करने में जुटे थे। इसीलिए ऋषि विश्वामित्र को यज्ञ की रक्षा के लिए राम लक्ष्मण की आवश्यकता का अनुभव हो। इन युवाओं की क्षमता का भी आकलन करना चाहते थे। इसलिए यज्ञ कि रक्षा के लिए विश्वामित्र ने दशरथ के दो पुत्रों का चयन किया। यज्ञ की रक्षा करने में उन्हें समर्थ देख ऋषि विश्वामित्र ने उन्हें कुछ विद्यायें प्रदान कीं और दिव्यास्त्र भी सौंपे। इसी तरह सूर्य से प्राप्त दिव्यास्त्र ऋषि अगस्त्य ने किष्किंधा पर्वत से आगे मिलने पर सोंपे।
श्रीराम में विनम्रता ,असीमित धैर्य,विवेकशीलता और प्रबल पुरुषार्थ देख भगवान परशुराम ने अपना धनुष जनकपुरी मे प्रदान किया था। जब शिव धनुष टूटा तो वे चौंक कर महेंद्र पर्वत से चल दिए थे। क्यों कि उन्हे मालूम था कि शिव धनुष को तोड़ने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता। वास्तव में सर्वाधिक बलशाली रावण उस समय सबसे बड़ी चुनौती था। उसके भाई कुंभकर्ण,विभीषण,उसका पुत्र मेघनाद आदि महाबली होने के साथ तांत्रिक और मायावी विद्याओं के जानकार होने के कारण महाबली हो चुके थे। लंका जैसे सुरक्षित टापू में रहकर उसने दक्षिण से उत्तर तक अपना आतंक कायम कर रखा था। हर जगह अपने गण छोड़ रखे थे। चक्रवर्ती महाराज दशरथ के लिए भी वे चुनौती दे। राम प्रजापालक थे,लोक रक्षण उनका स्वभाव था। चारों पुरुषार्थ अर्थ ,काम और मोक्ष सभी के लिए सुगम हो सकें यह उनकी परिकल्पना थी। इसीलिए रामराज्य के रूप में उन्होने भयमुक्त वातावरण बनाने का चिंतन किया। समाज के सभी वर्ग को संरक्षण मिले,सबकी आदर्श राज्य संचालन में भूमिका सुनिश्चित हो सके। यह उनकी सोच थी।
बसंती नवरात्रि में नवदुर्गा की आराधना
नव संवत्सर के प्रारंभ में काशी में चैत्र की नवरात्रि में नव गौरी की आराधना होती है,जब कि अन्य सभी स्थानों पर नव दुर्गा की उपासना की जाती है। मंतव्य यह है कि आंतरिक शक्तियों का जागरण कर हम दिव्य शक्तियों से संपन्न होसकें। साथ ही त्रेता युग में हुए भगवान राम के आदर्श जीवन से भी प्रेरणा पासकें,तो देश और समाज का कल्याण होगा।
नवरात्रि के दिनों में शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी,चंद्रघ़टा, स्कंदमाता, कात्यायनी,कालरात्रि(महाकाली),महागौरी और सिद्धिदात्री मां के मंत्रजप और आराधना से दिव्य शक्तियों का अपने भीतर जागरण करा सकें। इसके लिए नवार्ण मंत्र जप और दुर्गा सप्तशती का पाठ,यज्ञ करते हैं और कुंवारी कन्याओं का पूजन कर नारी शक्ति का सम्मान करते हैं।