पानी की धार के विपरीत दिशा में चलने वाली ’गरुड़ फली’– प्रकृति के कई उपहारों में से एक

रंजन कुमार सिंह

गरुड़ की फलियाँ बिलकुल साँप के आकर के दिखाई देती हैं, शायद इसी कारण इसका नाम गरुड़ पड़ा होगा। ग्रामीणांचल में आज भी दरवाजे के ऊपर गरुड़ की फलियों को बांध देते हैं ताकि किसी भी प्रकार का साँप घर में नहीं प्रवेश कर सके। क्योंकि गरुड़ के इस फल में विशेष प्रकार कि सुगंध होती है जिससे साँप दूर भागते हैं। यह एक दुर्लभ वृक्ष है और बहुत ही कम स्थानों पर पाया जाता है। ये इस पृथ्वी पर उत्पन्न सबसे प्राचीन वृक्षों में से एक है जिसकी उत्पत्ति लगभग तीन अरब वर्ष पहले बताई गयी है। इसकी उत्पत्ति के बारे में एक कथा आती है कि अपनी माता विनता को अपनी विमाता कुद्रू के दासत्व से मुक्त कराने के लिए जब गरुड़ स्वर्ग से अमृत लेकर वापस आ रहे थे तो उसकी कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर जाने के कारण एक वृक्ष की उत्पत्ति हुई।

गरुड़ के नाम पर ही उस वृक्ष का नाम गरुड़ वृक्ष पड़ा। अमृत से जन्में होने के कारण इसके गुणों को भी अमृत के समान ही बताया गया है। जैसा कि बताया गया है, गरुड़ वृक्ष और उसकी लकड़ी अद्भुत औषधीय गुणों से भरी होती है। जिस प्रकार गरुड़ नागों के शत्रु माने गए हैं, ये वृक्ष भी कुछ वैसा ही है। कहा जाता है कि जिस स्थान पर गरुड़ वृक्ष लगा होता है वहाँ से 100 मीटर की परिधि में कोई नाग अथवा सर्प नहीं आ सकता है। इस वृक्ष की पत्तियां भी बेलपत्र के समान ही तीन-तीन के समूहों में होती हैं। अपनी अद्वितीय औषधीय गुणों के कारण इसका एक नाम गरुड़ संजीवनी भी है। इसके वास्तु और ज्योतिष चमत्कार भी बताये गए हैं। कहते हैं जो कोई भी इसकी फली अपने शयनकक्ष में रखता है उसे सर्पों के दुःस्वप्न नहीं आते।

इसे अपने पास रखने से मनुष्य को कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। इसकी फली पर कुमकुम लगा कर अपनी तिजोरी में रखने पर माता लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है। सर्पदंश में ये फली साक्षात् संजीवनी के समान बताई गयी है। यदि किसी व्यक्ति को किसी सर्प ने काट लिया हो तो उस फली को जल में डुबा कर उस जल को पीड़ित को पिलाने से उसका विष तत्क्षण उतर जाता है। इस जड़ी को पानी में रात भर डुबा कर रखने के बाद यदि उससे किसी व्यक्ति को स्नान करा दिया जाये तो भयंकर से भयंकर विष भी उतर जाता है। हालाँकि इसके विषय में कुछ भ्रामक जानकारियां भी फैली है, जिसे बता कर लोगों को ठगा भी जाता है। ऐसी ही एक भ्रामक जानकारी दी जाती है कि ये फली अपने आप जमीन में गड़े खजाने को ढूंढ लेती है, जो कि सच नहीं है। इसकी फली की भी एक अद्भुत विशेषता होती है कि ये सदैव पानी की धार के विपरीत दिशा में चलती है।

यहाँ तक कि यदि इसके ऊपर आप पानी गिराएंगे तो ये उसकी धार के साथ-साथ ऊपर आ जाएगी। इसके अतिरिक्त शायद ही कोई निर्जीव चीज इस प्रकार पानी की धार के विरुद्ध तैर सके। इसे देखना वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं है। हालाँकि वैज्ञानिक इसे चमत्कार नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रक्रिया मानते हैं। उनके अनुसार चूँकि गरुड़ वृक्ष की डली घुमावदार होती है इसी कारण ये पानी के विपरीत दिशा में तैरती है। किन्तु इस प्रकार की घुमावदार चीजें कई हैं जैसे अन्य लकड़ी, प्लास्टिक इत्यादि, किन्तु इनमें से कोई भी चीज इस प्रकार पानी की धार से विपरीत दिशा में नहीं तैर सकती। इससे इस वृक्ष की विशेषता सिद्ध होती है। वैसे तो शहरों के लिए ये लकड़ी नयी है किन्तु आज भी देश के जंगलों में रहने वाल जनजाति इसका उपयोग करती है।

छत्तीसगढ़, झारखण्ड आदि राज्यों के आदिवासी लोग इस जड़ी का आज भी सर्पों से रक्षा के लिए उपयोग करते हैं। गरुड़ संजीवनी का वृक्ष मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल, केरल, तमिलनाडु इत्यादि राज्यों में पहाड़ी इलाकों के घने जंगलों में कहीं-कहीं पाया जाता है। यह वृक्ष पर्याप्त ऊँचा होता है, इसका तना कठोर लकड़ी वाला होता है व एक डण्डी पर तीन पत्तियाँ लगी होती हैं जैसे कि बेल पत्र लगे होते है। इसकी फली जो कि फल होती हैं, एक मीटर या उससे कुछ अधिक तक लम्बी होती है। यह सर्प के समान कुछ चपटी होती है। फली को चीरने पर इसमें गांठेदार सफेद हड्डी जैसा गूदा होता है। बीजों के ऊपर एक हल्की पारदर्शक पर्त चढ़ी होती है जो कि सर्प की केचुली के समान होती है। फली का रंग हल्का चाकलेटी होता है। जहाँ-जहाँ भी यह गरुड़ वृक्ष होता है, उसके आसपास सर्प नहीं ठहरते हैं।

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