चलनी है बीबीसी ! सूप तो कतई नहीं !! कई छेद हैं, काफी बड़े भी !!

के. विक्रम राव
               के. विक्रम राव

यह पुख्ता अवधारणा है मेरी कि नरेंद्र मोदी लाख कोशिशों के बावजूद इंदिरा गांधी की गहराइयों को कतई पा नहीं पायेंगे। छू तक नहीं सकते। थाह तो कभी नहीं। यहां गहराइयों से मेरा अभिप्राय निर्ममता, बेदिली तथा नृशंसता के संदर्भ में है। बीबीसी कार्यालयों पर आयकर छापे के प्रसंग में सोनिया-कांग्रेसी भले ही मोदी पर आरोप लगायें, पर तुलनात्मक रूप से यह वर्तमान प्रधानमंत्री तो 1975-वाली प्रधानमंत्री का उन्नीस भी नहीं हैं। तब (1975) इंदिरा गांधी ने बीबीसी पर नाकेबंदी ठोकी थी। मात्र 24 घंटे में बीबीसी संवाददाता सर विलियम मार्क टल्ली को भारत छोड़ने का पुलिसिया आदेश जारी हुआ था। उस दिन लंदन की सीधी उड़ान नहीं थी। टल्ली बैंगकाक गए, वहां से लंदन। इतनी फुर्ती दिखाई कांग्रेस शासन ने तब। बीबीसी पर निषेध थोपा, सो अलग। उस वक्त आज के तेजतर्रार कांग्रेसी प्रवक्ता पवन खेड़ा केवल नौ साल के बालक थे। कांग्रेस के महासचिव के. सी. वेणुगोपाल सिर्फ दो वर्ष खेड़ा से बड़े थे। दोनों अब इतिहासज्ञ बनकर पत्रकारी आजादी पर अत्यंत मुखर हो गए हैं।

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आज बीबीसी से साढ़े चार दशक पुरानी जुड़ी एक निजी घटना याद आ गई। हम 25 कैदी (जॉर्ज फर्नांडिस तथा मुझे मिलाकर) बीबीसी के बहुत कृतज्ञ रहेंगे। उस दिन (सितंबर 1976) हम सब बड़ौदा डायनामाइट केस के अभियुक्त तीस हजारी कोर्ट (दिल्ली) में चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट श्री मोहम्मद शरीफ के समक्ष पेश हुए थे। (शमीम बाद में दिल्ली और कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश बने थे। अल्प संख्यक आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी।) तब हमारे संयुक्त अदालती बयान मे एक वाक्य था : “यह हथकड़ियां हम सब की कलाई पर ही नहीं, भारत माता पर लगाई गई हैं।” और हाथ उठाकर हमने झंझनाया था। इस दृश्य को बीबीसी ने विस्तार से प्रसारित किया था। बीबीसी के करोड़ों भारतीय श्रोताओं ने सुना होगा। कैसा बर्ताव किया था उन दिनों राष्ट्रीय मीडिया से कांग्रेस शासन ने ? भारतीय प्रेस काउंसिल भंग कर दी गई थी।

हिंदुस्तान टाइम्स के स्वनामधन्य संपादक बीजी वर्गीस को बर्खास्त कर दिया गया था। अपने प्रिय पति तथा सोनिया गांधी के ससुर फिरोज गांधी द्वारा रचा गया प्रेस स्वाधीनता कानून इन्दिरा गांधी ने निरस्त कर दिया गया था। नेहरू के परम सखा कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई की साप्ताहिक पत्रिका बंद हो गई थी। तब सारे मीडिया संगठन मूक रहे थे। आज बीबीसी की करचोरी की जांच पर इतने आंसू क्यों ? जरा इसकी भूमिका पर गौर करें। बीस बरस पुराने गुजरात दंगों पर अब फिल्म बनाने का मकसद क्या है ? क्या यह पत्रकारी आचार संहिता का इरादतन उल्लंघन नहीं है ? इस पर लंदन में ही कुछ श्वेत पाठकों ने निंदनात्मक याचिका दायर की है। वाशिंगटन में बाइडेन प्रशासन के प्रवक्ता नेड प्राइस ने (25 नवंबर जनवरी 2023) इस अवमानना-जनक बीबीसी फिल्म को खारिज किया है।

स्वयं मार्क टेली (अब भारत के निवासी हो गए) ने 29 जनवरी 2023 (तीन सप्ताह पूर्व) हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा कि एकदा राजीव गांधी पर बनी फिल्म “दि पायलट प्राइम मिनिस्टर” की भर्त्सना की गई थी। तब बीबीसी के अध्यक्ष मर्मुडके जेम्स हस्सी दिल्ली आए थे। उन्हें राजीव गांधी की छवि धूमिल करने के अपराध में हर सरकारी अफसर से माफी मांगने पर विवश कर दिया गया था। तब सोनिया गांधी के आग्रह पर प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने यह काम कराया था। गत सप्ताह ही ब्रिटिश संसद के उच्च सदन (हाउस ऑफ लार्ड्स) के सदस्य लार्ड रामी रेंजर ने बीबीसी के अध्यक्ष टिम डेवी को लिखा कि भारत के उच्चतम न्यायालय के दो न्यायमूर्तियों ने नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों के दोष से बरी कर दिया था। तीस्ता सीतलवाड़ की मोदी-विरोधी याचिका भी खारिज कर दी थी। इसका उल्लेख करते, लार्ड रामी रेंजर ने बीबीसी से पूछा : “क्या आपके पाकिस्तानी संपादकों ने यह फिल्म बनाई थी ?” (20 जनवरी 2023)। सर्वोच्च न्यायालय की विशेष जांच दल की रपट का जिक्र किया गया जिसमें 452-पृष्ठ के निर्णय में मोदी की विरुद्ध सारे आरोपों को जजों ने रद्द कर दिए थे।

अर्थात बीबीसी ने भारतीय उच्चतम न्यायालय को झूठा करार देने की साजिश रची। अब देखें बीबीसी की कुछ रपटों में खबरों को कैसे परोसा गया था ? सोशलिस्ट इराक जब अमरीकी और ब्रिटिश साम्राज्यवादी हमलावरों से लड़ रहा था तब बीबीसी ने ही झूठा प्रचार किया था कि सद्दाम हुसैन भारी ध्वंसात्मक बम बना रहे हैं। आयरलैंड की प्रधान न्यायाधीश लार्ड ब्रायन हटन ने इसे पूर्णतया जाली पाया। (24 सितंबर 2002) बीबीसी के तत्कालीन अध्यक्ष रिचर्ड राइडर ने इस खबर के लिए माफी मांगी थी। इसी बीबीसी ने 23 जून 2008 में भारतीय बाल श्रमिकों के शोषण पर एक फिल्म बनाई थी जो बाद में यह झूठी निकली। बीबीसी ने भारत के मनमोहन सिंह सरकार से क्षमा मांगी थी। मुंबई के ताज होटल पर (नवंबर 2008 में) कसाब और अन्य पाकिस्तानी आतंकियों को बीबीसी ने बंदूकधारी कहा था, न कि आतंकवादी। ब्रिटिश सांसद स्टीफन पाउंड ने इसी पर बीबीसी को झूठा बताया था। एक टीवी शो में राजनीतिशास्त्री क्रिश्चियन फेयर को बीबीसी ने टोका फिर रोका था।

उन्होंने तब कहा था कि पाकिस्तान ही भारत-विरोधी तालिबान का समर्थन कर रहा है। एंकर फिलिप टॉमस ने पाकिस्तान-परस्ती भरपूर दिखाई थी। याद कीजिए मार्च 2015 में बीबीसी ने अपनी डॉक्यूमेंट्री में निर्भया कांड का दोषी मुकेश सिंह को विशेषतया दिखाया। तब सरकार ने उस पर रोक आयद की थी। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ पुरोधा और पूर्व रक्षा मंत्री तथा केरल के मुख्यमंत्री रहे एके एंटोनी के पुत्र अनिल ने कांग्रेस के सभी पार्टी पदों से तत्काल त्यागपत्र दे दिया। इसके आधार में कारण यही बीबीसी फिल्म है जिसकी निंदा वे करते हैं। अनिल कांग्रेस की डिजिटल मीडिया प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक हैं। अर्थात अनिल एंटोनी ने साबित कर दिया कि सोनिया कांग्रेस का चलन चलनी जैसा है, जिसमे सैकड़ों छिद्र होते हैं। मगर आज “कांग्रेसी चलनी” बड़ा शोर कर रही है।

K. Vikram Rao
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