
डॉ0 ओ0पी0 मिश्र
विश्व के टॉप उद्योगपतियों में दूसरे और चौथे स्थान पर रहने वाले गौतम अडानी यदि एक सप्ताह में पंद्रहवे स्थान पर आ गए हैं तो यह अपने आप में बड़ी बात है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि यदि अडानी जिनके शेयर करीब 40 प्रतिशत से नीचे आ गए हैं। यदि कंपनी डूब गई या भाग गई तो हमारा आपका क्या होगा? इतिहास गवाह है कि हर्षद मेहता, केतन पारिख समेत जितने भी शेयर बाजार के मठाधीश अब तक भागे हैं उनमे 60 प्रतिशत गुजरात के हैं। यहां बात मैं अडानी की डूबने की कर रहा था, वैसे मैं जानता हूं कि अन्य की तरह इनका भी कुछ खास बाल बांका नहीं होगा क्योंकि सत्ता का इनको संरक्षण प्राप्त है।
लेकिन उन निवेशकों का क्या होगा जिन्होंने शेयर मार्केट में अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई इस उम्मीद के साथ लगाई थी कि भविष्य में वे अपना घर बनाएंगे, बच्चों की शादी करेंगे आदि- आदि। अब इनके सपने कैसे पूरे होंगे? कौन पूरा करेगा? ये अलग बात है कि अब गौतम अडानी ने कहा है कि बाजार में आप पर आए उतार-चढ़ाव को देखते हुए बोर्ड को ऐसा लगा कि एफपीओ को जारी रखना ‘नैतिक’ रूप से सही नहीं होगा। इस वाक्य में नैतिक शब्द जिस बात को ध्यान में रखकर कहा गया है वह यहां मैच नहीं खाता क्योंकि निवेशक वोटर नहीं होता।
निवेशक वह होता है जो आपकी कंपनी और आपकी शाख पर विश्वास करके अपनी गाढ़ी कमाई आपको तमाम उम्मीदों के सपनों के साथ आपको सौपता है। इतना ही नहीं निवेशकों का विश्वास इसलिए गौतम अडानी की कंपनी पर ज्यादा रहा क्योंकि वे प्रधानमंत्री या यूं कहें कि केंद्र सरकार के काफी करीब थे। अब जब लोकसभा और राज्यसभा में बृहस्पतिवार को दोनों सदनों में विपक्ष ने हंगामा किया तथा मांग की कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया तथा जीवन बीमा निगम (एल आई सी) ने नियम और कानून को ताक पर रखकर अडानी ग्रुप को जो लोन दिया है उसे सार्वजनिक किया जाए।
मैं समझ नहीं पाता हूं कि एसबीआई और एलआईसी ने पब्लिक मनी को किसके कहने पर किस की संस्तुति पर इस तरह लुटा दिया। अब जब पानी सिर से ऊपर निकल गया है तथा चारों तरफ थू -थू हो रही है तब ‘सेबी’ और ‘आरबीआई’ की नींद खुली है। रिजर्व बैंक ने अब बैंकों से पूछा है कि अडानी ग्रुप को कितना कर्जा दिया गया है? बताया तो यहां तक जा रहा है कि एलआईसी और एसबीआई को करीब ‘सौ मिलियन डॉलर’ का नुकसान हुआ है। अब यहां सवाल यह उठता है कि एसबीआई और एलआईसी ने जो रकम उधार दी है वह क्या उसके ‘बाप’ की थी? मैं तो कहता हूं कि यह पैसा गरीब देशवासियों का था।
उनकी मेहनत और खून पसीने की कमाई थी जो भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों तथा अडानी ग्रुप के ‘काकश’ ने डकार लिये। कल्पना कीजिए कि यदि अडानी ग्रुप ने कह दिया कि उनके पास पैसे नहीं है तो क्या होगा? जैसे सहारा ग्रुप ने कहा था कि आपको जो करना है करिए मेरे पास वापस करने के लिए पैसे नहीं है। तो आम आदमी के ऊपर क्या बीतेगा? उसके ‘सपनों’ का क्या होगा? उसका भविष्य का क्या होगा? आज अडानी ग्रुप के शेयर जिस तरह लगातार धराशाई हो रहे हैं उसमें अब यह तो उम्मीद करना बेमानी है कि अब फिलहाल कोई निवेशक पैसा लगाएगा? जब पैसा आएगा नहीं तो दिया कहां से जाएगा? क्योंकि आप पहले से कर्जदार हैं।
यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब गौतम अडानी की ‘नैतिकता’ में भी नहीं है। बताते चले कि 24 जनवरी को अमेरिका रिसर्च फर्म हिंडन वर्ग ने एक रिपोर्ट जारी की थी और कहा था कि अडानी ग्रुप कर्ज के बोझ से दबती जा रही है। उसी के बाद यह हंगामा बरपा और निवेशकों की नींद उड़ गई है। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि एक आम आदमी जब पचास हजार रुपए लोन लेने के लिए बैंक जाता है तो उससे कितनी सारी औपचारिकताएं पूरी कराई जाती है लेकिन जब कोई बड़ा उद्योगपति ‘बड़ा लोन’ लेता है तो भ्रष्ट सिस्टम पैसे खाकर सारे नियम कानून ताक पर रखकर लोन दे देता है। एलआईसी और एसबीआई ने यही अडानी ग्रुप के साथ किया और उन्हें ‘लोन’ दे दिया।