डॉ दिलीप अग्निहोत्री
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल ने अनेक परम्पराओं का शुभारंभ किया था। उनकी पहल पर तीस वर्ष पूर्व संसद में पहली बार गूंजा था ‘वंदे मातरम्’। आजादी के 45 वर्ष बाद 23 दिसंबर 1992 को पहली बार संसद में ‘वंदे मातरम्’ गूंज उठा था। इस ऐतिहासिक पल को तीस वर्ष पूर्ण होने की पूर्व संध्या पर उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने अपनी यादें उजागर की। नाईक ने कहा, कि 1992 में लोकसभा में एक तारांकित प्रश्न के उत्तर में मानव संसाधन मंत्री ने दिए जबाब से मैं चकित हो गया था।
जबाब यह था की हालाकि देश में राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ और राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ को एक जैसा सम्मान है और उसे स्कूलों में गाना चाहिए। यह देखा गया है की उदासीनता के कारण कई स्कूलों में नहीं गाये जातें। जिस देश में ‘वंदे मातरम्’ गाते हुए लोग शहीद हो गये, जहां ‘वंदे मातरम्’ याने देश प्रेम का नारा है वहां अगर यह स्थिति है तो वह बदलने के लिए देश के सर्वोच्च नेताओं का– सांसदों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मैंने आधे घंटे की चर्चा उपस्थित की थी। नाईक ने कहा कि चर्चा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी और अन्य सांसदों ने वंदे मातरम् गाकर सभी देश की अस्मिता को पहचान दे इसलिए पूरजोर प्रयास हो इस बात को समर्थन दिया। वह वो समय था जब कुछ ही दिन पूर्व दूरदर्शन पर लोकसभा का कामकाज का प्रसारण किया जाने लगा था।
इसलिए मैंने सुझाव दिया था की सभी सांसद ‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम्’ का अगर संसद में सामूहिक गान करेंगे तो पूरा देश वह देखेगा और प्रेरणा पाएगा। इस पर तत्कालीन मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा था की ऐसे करने का निर्णय तो लोकसभा अध्यक्ष ही ले सकते हैं। सदन का रुख तो था लेकिन इस पर ठोस करवाई कैसे होगी यह भी सवाल था। मैंने इस पर सोच कर यह विषय संसद की General Purposes Committee – सर्वसाधारण कामकाज समिति में उपस्थित किया जिसके लोकसभा के अध्यक्ष ही अध्यक्ष होते हैं और यह समिति सदन के काम के संदर्भ में कई निर्णय लेती है। समिति में सभी पार्टियों के नेता सदस्य होते है, उन्होंने भी मेरी माँग का समर्थन किया।
अंतिमतः यह निर्णय हुआ की संसद के हर सत्र का आरंभ ‘जन-गण-मन’ से तो समारोप ‘वंदे मातरम्’ से होगा। लोकसभा अध्यक्ष ने निर्णय जारी करने के बाद पहली बार 23 दिसंबर 1992 को याने आजादी के 45 वर्षों के बाद संसद ‘वंदे मातरम्’ से गूंज उठा। तब से आज तक यह संसद के हर सत्र का समापन ‘वंदे मातरम्’ गाने से हो रहा है।संसद में वंदे मातरम् गाने की देश प्रेम के अविष्कार की एक सशक्त परंपरा का प्रारंभ होने में मेरा प्रमुख सहयोग रहा। यह मेरे लिए भी गर्व की बात है। संसद में पहली बार वंदे मातरम् को गाए तीस वर्ष पूर्ण हो रहे है। इस परंपरा के पालन को जब शीतकालीन सत्र संपन्न होगा तब 30 वर्ष पूर्ण होंगे। इसलिए ‘वंदे मातरम्’ गानेवाले सभी सांसदों को मैं अग्रीम बधाई देता हूं”, ऐसा भी अंत में राम नाईक ने कहा।