देश में अब फतवा नहीं, धर्मादेश: संजय शेरपुरिया

नई दिल्ली। धर्मादेश शब्द आम जन समूह के लिए उतना कट्टर और प्रभावशाली नहीं लग सकता है, जितना कि ‘फतवा‘। फतवा उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ भी धर्मादेश होता है। फतवा को हम कट्टर मानते हैं और काफी गंभीरता से लेते हैं। जबकि धर्मादेश को हिन्दू समाज के किसी अलग वर्ग संत जन या साधु समाज की बातें मानते हैं। इसका मूल कारण, हिन्दू समाज का अनेक धाराओं में बहना है, विभिन्न जातियों में बंटा होना है। ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने इस बैठक में कहा कि जब हिंदू मुखर होगा तब समाज जगेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री हिंदुत्व के विचारों को जन जन तक पहुंचने का काम कर रहे हैं। ईसाइयत के प्रसार पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को इस खतरे से बचने का प्रयास करना पड़ेगा। जाने-माने उद्यमी व समाजसेवी संजय राय शेरपुरिया ने आज अखिल भारतीय संत समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उक्त उद्गार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अधिकतर हिन्दू तुलनात्मक रूप से पढ़े लिखे होते है, इसलिए कई बार ये भीड़ से अलग दिखने के लिए उल्टा बोलते हैं। कई ऐसा कूल और पढ़ा लिखा दिखने के लिए भी करते हैं।

हालांकि, इसमे कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके कारण हिन्दू बंटे हुए हैं। एकता मे शक्ति होती है, यह बात हर हिन्दू जानता है, लेकिन दुख की बात है कि हिन्दू आज भी अपने धर्म और संस्कृति के लिए एकत्रित नहीं है, जिसका फायदा एक समुदाय विशेष सैकड़ों सालों से उठाता आ रहा है। आज भी वह समुदाय अपनी एकता और हिंसा के दम पर कुछ भी करवाने मे सक्षम है। वही, हिन्दू अपने ही देश मे अल्पसंख्यकों वाली जिंदगी काटने पर मजबूर होने जा रहे है। यह एक गंम्भीर विषय है, यदि हम नहीं संभले तो हमारी आने वाली पीढ़ी का वही हाल होगा जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया के लोगों का हुआ। शेरपुरिया ने कहा कि अखिल भारतीय सन्त समिति का यह मानना है कि भारत भूमि में उद्भुत हुए सभी समुदायों को एकजुट होकर राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के ऊपर हो रहे हमलों का उत्तर देना वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है। देश रहेगा तो हम रहेंगे। धर्म रक्षा, राष्ट्र रक्षा ही सदा से सन्त समिति का उद्देश्य रहा है। हिंदू धर्म में जब भी कोई सामाजिक, धार्मिक बुराई आती है, बाहर या भीतर से कोई संकट आता है, तो उसका समाधान भी, अंदर से स्वतः प्रगट होता है।

यह धर्म इतना लचीला है कि स्वयं अपने को समय और परिस्थिति के अनुसार ढाल लेता है क्योंकि वैचारिक आंदोलन, उपदेशक आदि समय पर उभर कर सामने आते रहते हैं। नए विचारों को ग्रहण करने में इसे संकोच नहीं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, स्व-विवेक, परस्पर प्रेम, सहिष्णुता, समानता आदि की शिक्षा हमें बचपन से दी जाती है, संत समिति के अखिल भारतीय महामंत्री पूज्य जितेंद्र नंद सरस्वती ने बताया कि, वक्फ बोर्ड का निरस्त किया जाए। सनातन सेंशर बोर्ड का गठन हो….संजय राय शेरपुरिया ने कहा कि हिंदू समाज को अपने आपको जानने की आवश्यकता है। हम क्या थे, क्या हैं, क्या होंगे, इस संबंध में चिंतन करने की आवश्यकता है। जाति-प्रथा टूट रही है। अंतर्जातीय विवाह बढ़ रहे हैं, फिर भी मतदान के समय हम जाति के उम्मीदवार के समर्थक हो जाते हैं। दहेज प्रथा कम रही है, पर शादी-ब्याह के अवसर पर फिजूलखर्ची बढ़ रही है। देश के प्रति, समाज के प्रति हमारे क्या कर्तव्य हैं, इसकी जानकारी हमें ठीक से नहीं है।

देश में सभी पर अनुशासन है, पर पुस्तकों पर नहीं है, उनका कोई आयोग नहीं है और परिणामस्वरूप, कोई व्यक्ति अपने मन, बुद्धि के मुताबिक कुछ भी छाप देता है, जो देशद्रोह का काम करते हैं और हम कुछ नहीं कर सकते। यह भी कह सकते है कि, हममें वो अनुशासन, जागरूकता, निष्ठा, कर्मठता नहीं है, जो होनी चाहिए। सबको मिलकर विचार करना चाहिए। कैसे आत्म-बल बढ़े? चलें, ताकि हमें सुख, शांति मिले, समाज का कल्याण हो, देश का विकास हो। हम अकर्मण्यता, निजी-स्वार्थ, पर-निंदा, पर-अपमान, भ्रष्टाचार, कदाचार, व्यभिचार से बचें। हमें सद्बुद्धि प्राप्त हो, कर्तव्य-भावना जगे, हमारी सोच सकारात्मक हो, हमारा योगदान उल्लेखनीय हो। अधिक दिनों तक हम सकारात्मक मूल्यों की उपेक्षा कर आगे नहीं बढ़ सकते। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अखिल भारतीय सन्त समिति द्वारा आयोजित यह विचारणीय कार्यक्रम ”धर्मादेश-2022” हमारे लिए विचारणीय और देश एवं हिंदू संस्कृति के लिए पथ प्रदर्शक होगा।

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