बांसी। विकास खण्ड बांसी के ग्राम पंचायत किशुंधरजोत में शुक्रवार को इन -सीटू फसल अवशेष प्रबंधन योजना के अंतर्गत आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र सोहना सिद्धार्थनगर के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन पर गाँव स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिक डॉ शेष नारायण सिंह ने फसल अवशेष के जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया की पर्यावरण में कार्बनऑक्साइड, कार्बनमोनो ऑक्साइड जैसे हानिकारक पदार्थ घुल कर पशुओ एवं मनुष्यों में स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न करते हैं इसलिए किसान भाई फसल अवशेष नहीं जलाये। कृषि वैज्ञानिक डॉ सर्वजीत नें किसानों को बताया फसल अवशेषों को खेत में ही डिकम्पोज़र की सहयता से सड़ाये।
25 लीटर पानी में एक से दो किलोग्राम गुड़ को मिलाकर हल्की आंच पर उबालें, उबालनें के बाद ठण्डा करें इसके बाद डिकंपोज़र की एक कैप्सूल को घोलें और फिर घोल को तीन से चार दिन के लिये रख दें इसके बाद 10 लीटर प्रति एकड़ प्रयोग करें जिससे 20 से 25 दिन में फसल अवशेष सड़कर खाद बन जायेगा। कार्यक्रम सहायक डॉ एस के मिश्रा ने बताया की नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश सल्फर और सूक्ष्म पोषक तत्व फसल अवशेष जलाने से नष्ट हो जाते हैं यदि किसान धान के अवशेष को प्रभावी तरीके से अपने खेत में ही कृषि यंत्रो से या डीकम्पोज़र की सहायता से खेतों में ही मिलाकर सड़ाते हैं।
अगली फसल की शुरुआती अवस्था में लगभग 40 प्रतिशत नत्रजन, 30 से 35 प्रतिशत फासफोरस, 80 से 85 प्रतिशत पोटाश और 40 से 45 प्रतिशत सल्फर की पूर्ति हो जाती है इसलिए किसान भाई फसल अवशेष न जलाकर खेत में ही सड़ाये। प्रगतिशील किसानों ने भविष्य में भी फसल अवशेष को ना जलाने के लिए सभी किसान भाई के साथ ही संकल्प लिया कि हम फसल नहीं जलाएंगे। कार्यक्रम में दिनेश पांडेय,ओम प्रकाश,महेश, राम नेवासा, सिराजुद्दीन, राधेश्याम,मोतीलाल बलराम शिव पूजन बाल केश गजेंद्र रामचंद्र राधेश्याम पांडे राम संवारे अजीत मौर्य आदि किसान उपस्थित रहें।