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 विभाजन की विभीषिका-एक दर्द भरी दास्तान

14 अगस्त 1946 की रात थी। आसमान में चाँद लहूलुहान सा लटका था, मानो वह भी उस धरती की त्रासदी का गवाह बनने से कतरा रहा हो। गाँव की गलियाँ, जो कभी हँसी-खुशी और बच्चों की किलकारियों से गूँजती थीं, अब चीखों, आग की लपटों और तलवारों की झनझनाहट से थर्रा रही थीं। भारत का […]

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